लगभग शाम का 6 बज गया था जब मैं हिमांचल प्रदेश में चूड़धार का ट्रेक करके बिजट महाराज के मंदिर पहुंची. ये मंदिर हिमांचल प्रदेश की हेम्बल घाटी के चौपाल कस्बे से 26 किलोमीटर दूर है. मंदिर की दो बिल्कुल एक जैसी लकड़ी की बनी इमारतों ने दूर से ही मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया. जब नजदीक पहुँची तो इसकी भव्यता देखती ही रह गयी. इतना प्राचीन होने के बाद भी मंदिर में कहीं भी कोई खराबी नहीं आयी है.
दो टावरों के बीच बने गेट से जब अंदर पहुंची तो मंदिर की असली भव्यता नजर आयी. बड़े से प्रांगण के चारों ओर लकड़ी से बनी इमारतें हैं. जो अलग—अलग कार्यों के लिये उपयोग में आती हैं. मंदिर के अंदर प्रवेश लेने से पहले गार्ड ने मेरा कैमरा और मोबाइल बाहर जमा करवा लिये क्योंकि मंदिर के अंदर इन चीजों को ले जाने की मनाही है.
मंदिर के अंदर पहुँची तो ऊपर जाने के लिये लकड़ी की ही सीढ़ियां हैं जो दीवार से चिपकी हुई हैं इनमें चढ़ के ऊपर जाना भी एक आर्ट है. दो—तीन माले ऊपर चढ़ के जाने के बाद एक माले में मंदिर है जिसमें बिजट महाराज के अलावा और भी कई मूर्तियाँ रखी हुई हैं.
मंदिर के पुजारी ने मुझे मंदिर के बारे में बताया — यहाँ बिजट महाराज के दो छ: मंजिले भवन हैं जिन्हें “शाठी” और “पाशी” के नाम से जाना जाता है. दोनों मंदिर एक ही शैली में निर्मित हैं और लकड़ी से बनाये गये हैं पर बिजट महाराज एक ही मंदिर में रहते हैं जहाँ उनकी प्रतिमाएं विद्यमान हैं. पाशी मंदिर की पहली तीन मंजिलो में कोई श्रद्धालु नहीं जाता. इस मंदिर में 25 से अधिक अष्टधातु और पीतल की मूर्तियां हैं. बिजट महाराज की प्रतिमा इन मूर्तियों के मध्य भाग में रहती है. दूसरे छ: मंजिले भवन को शाठी कहते हैं जिसे भण्डार के लिए प्रयुक्त किया जाता है.
पुजारी जी ने यह भी बताया कि मंदिर का काफी हिस्सा जमीन के नीचे भी है जिसे भंडार ग्रह के रूप में इस्तेमाल करते हैं और उस समय जब विदेशियों ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया था तब मंदिर का सारा स्वर्ण और धन इन तहखानों में ही छिपाया गया था. इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि इसमें भूकम्प का भी कुछ असर नहीं होता है. पुजारी जी के घर जाने का समय हो गया था इसलिये जल्दी—जल्दी में उन्होंने बताया — बिजट महाराज को ब्रजेश्वर महादेव के नाम से पुकारा जाता है और इसे ‘बिजली के भगवान’ माना जाता है. ये चौपाल क्षेत्र के लोगों के इष्ट देव हैं. फिर मुस्कुराते हुए बोले — हमारे भगवान भी हमारे जैसे ही हैं. देखों मंदिर के चारों ओर ओर देवदार का घना जंगल है, छोटे—छोटे गांव हैं और सेव के बागीचे हैं. जैसे हम लोग रहते हैं वैसे ही हमारे भगवान भी रहते हैं.
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
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