समाज

असल पहाड़ी ही जानता है भांग के ऐसे गुण

आज बात हो जाय भांग की और भांग के उस पक्ष की जिसे पहाड़ी आदमी तो बखूबी समझता, जानता है पर मैदानी लोगों के लिए नया है. अक्सर भांग को एक नशा करने वाली चीज ही समझा जाता है. पर भांग तो पहाड़ की एक बहुउपयोगी फसल है जिसके बीज एक खाद्य पदार्थ हैं.
(Bhang Traditional Food Uttarakhand)

कुदरत ने हर जगह अलग-अलग मौसम बनाया है तो अपने अनमोल खजाने से वहां के अनुरूप खाद्य पदार्थ और फल वगैरह दिये हैं ताकि मनुष्य उस वातावरण से सामन्जस्य आसानी से बिठा ले जिस तरह राजस्थान एक गरम प्रदेश है तो वहां पर तरबूज, खरबूज, ककड़ी की अनेक किस्में है जिनमें जल की प्रचुरता है तो उसी तरह पहाड़ी प्रदेशों में गर्म तासीर वाली चीजों की प्रचुरता प्रदान की है. भांग के पौधों से जो बीज निकलते हैं उन्हें निकालकर साफ किया जाता है यही बीज आम बोल-चाल में भांग कहलाते हैं.

भांग भी एक गर्म तासीर वाला खाद्य पदार्थ है. खाने में इसका सबसे प्रचलित और लोकप्रिय प्रयोग है. भांग के नमक को भांग-क-लूण कहते हैं. भांग के नमक के साथ आप रोटी खा लीजिये या सलाद में छिड़किये, मजा दोगुना आ जाता है. मडुवे की रोटी के साथ तो भांग का नमक सर्वोत्तम जोड़ीदार माना जाता है. भांग को हल्का भून लिया जाता है फिर सिलबट्टे पर नमक के साथ बारीक पीस लिया जाता है और हो गया पहाड़ का प्रचलित भांग-क-लूण तैयार.

पहाड़ में जब कोई सब्जी बनाने का समय न हो तो रोटी के साथ थोड़ा घी डालकर खा लो. रोटी के अन्दर घी और भांग का नमक डालकर गोल-गोल मोड़कर खाया जाता है. लोग आजकल रेस्टोरेंट में काठी रोल बोलकर खा रहे हैं, मुझे लगता है कि हमारे बचपन की भांग और घी मिली गोल रोटी ही इस काठी रोल का पूर्वज है.

पहाड़ का एक और लोकप्रिय पदार्थ नीबू सना (सानि निम्मू) तो भांग के नमक के बिना बन ही नहीं सकता. खट्टे नीबू को छीलकर उसमें भांग का नमक, गुड़, मूली, दही और खुश्याणी मिलाकर जो चीज तैयार होती है उसके क्या कहने. मेरे तो यहां लिखते हुए भी मुंह में पानी आ रहा है. इसके चटखारे का मुकाबला किसी अन्य चाट में नहीं.
(Bhang Traditional Food Uttarakhand)

भांग के बीजों का एक और उपयोग है- सब्जी की ग्रेवी में डालना. पहाड़ में पुराने दिनों की एक कहावत है. रिस्यार से पूछा जाता था भांग डालला या भुटण मतलब- सब्जी में भांग डालोगे या घी तेल (भुटण). अगर सब्जी में भांग डालनी हो तो आप तेल न भी डालें तब भी चलेगा. भांग के बीजों को पीसकर उससे दूध जैसा पानी निकालकर छानकर सब्जी में डालते हैं फिर अच्छी तरह पका लिया जाता है. यहां तारीफ भांग को पीसने और पकाने की है. भांग बहुत बारीक पिसा हो और अच्छी तरह मन्द आंच में बांज के कोयलों में पका हो.

भांग को लाई सरसों का साग हो या आलू हो या गडेरी या गदुवा या लौकी लगभग हर सब्जी में डाला जा सकता है. भांग सब्जी के स्वाद में दोगुनी वृद्धि कर देगा. आप तरी को पतली बनायें या लटपट यह आप पर निर्भर है. पहाड़ में मीठा कद्दू बनाना हो तो उसमें भांग भूनकर जरूर डाली जाती है

धनिया पुदीना और नीबू के साथ इसकी चटनी बनी हो और खाने वाला उंगलिया न चाटते रह जाय. ऐसा असंभव है. आप पहाड़ की यात्रा कर रहे हों तो आप चाहे पकौड़ी खायें या आलू के गुटके या गरम-गरम चने. उसमें दुकानदार भांग की चटनी जिसे खट्टै कहते हैं, डालेगा ही डालेगा. यही वह जायका है जो पहाड़ के नाश्ते या खाने को अलग स्तर पर पहुंचा देता है. आप दाल-भात के साथ भांग की चटनी ओल कर (मिलाकर) खाकर तो देखिये ये स्वाद अलग ही लेवल का होगा.

अगर घर में कोई साग सब्जी न हो तब भी खाली भांग पीसकर उसका पानी उबाल लो. जीरा या साबुत धनिये का छौंका लगाकर मिर्च डालकर जिसे भगझावा कहते हैं, सब्जी का एक बेहतरीन विकल्प है. आपने दो तीन कटोरी भंगझाव पी लिया तो पेट पूजा के साथ सरदी भी छूमन्तर जानिये.
(Bhang Traditional Food Uttarakhand)

भांग का इसके अतिरिक्त और भी प्रयोग पहाड़ी किसानों के लिए अत्यन्त लाभदायक है. भांग के पौधों को फसल निकालकर तालाब में भिगोकर उसके रेशे निकाल लिये जाते हैं. जिनसे काश्तकार ज्यौड, गयां, बल्दों के माव (रस्सी वगैरह) बनाये जाते हैं. इसकी डन्डियां खेतों में अगझाव करने, लूटे की टानि मानि बनाने आदि में भी किया जाता रहा है. भांग के बीज बेचकर किसान अच्छा मुनाफा भी कमा लेते हैं.

अगर कोई पहाड़ी परदेश (यानि मैदान) जा रहा हो तो उसके बैग में एक एक पुन्तुर भांग का जरूर होगा. मैदान में आकर वो जब भी इसका नमक या चटनी बनाकर खाता है तो स्वाद लेने के साथ वो पहाड़ की नराई भी इस भांग के माध्यम से फेड़ता है. घर से कोई आने वाला हो तो वहां से भांग जरूर मगाई जाती है.
(Bhang Traditional Food Uttarakhand)

विनोद पन्त_खन्तोली

वर्तमान में हरिद्वार में रहने वाले विनोद पन्त ,मूल रूप से खंतोली गांव के रहने वाले हैं. विनोद पन्त उन चुनिन्दा लेखकों में हैं जो आज भी कुमाऊनी भाषा में निरंतर लिख रहे हैं. उनकी कवितायें और व्यंग्य पाठकों द्वारा खूब पसंद किये जाते हैं. हमें आशा है की उनकी रचनाएं हम नियमित छाप सकेंगे.

इसे भी पढ़ें: ताकुला की आमा का होटल और पहाड़ियों की बस यात्रा

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