उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के बागेश्वर जिले में है बैजनाथ. लोकप्रिय पर्यटन स्थल कौसानी से इसकी दूरी 18 किमी की है. बैजनाथ पौराणिक गारुड़ी और गोमती नदी के संगम स्थल पर बसा है. बैजनाथ का पौराणिक नाम बैद्यनाथ बताया जाता है. बैजनाथ उत्तराखण्ड के पौराणिक व धार्मिक महत्त्व के कस्बों में से एक है.
बैजनाथ को 7वीं शताब्दी में कत्यूरियों की राजधानी के रूप में विकसित किया गया था. बताया जाता है कि कत्यूरी राजा नर सिंह देव ने यहाँ मौजूद करवीनगर के खंडहरों पर ही राजधानी का निर्माण किया था. 7वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक कत्यूरी शासन की राजधानी रहने के दौरान वैद्यनाथ को कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था. उन दिनों कत्यूरी राजा कुमाऊँ-गढ़वाल के अलावा नेपाल के डोटी क्षेत्र तक शासन किया करते थे.
नेपाली राजा क्रंचलदेव ने 1190 में कार्तिकेयपुर पर आक्रमण कर कत्यूरों को हराया. इस हार से छिन्न-भिन्न होकर कत्यूरी राज्य आधा दर्जन से ज्यादा अलग-अलग रियासतों में बंट गया. फिर भी 1565 तक यहाँ कत्यूरी वंशजों का ही शासन रहा. 1565 में अल्मोड़ा के राजा कल्याण चन्द द्वारा कब्ज़ा कर लिए जाने तक यहाँ कत्यूरों का ही शासन रहा.
1790 में गोरखाओं ने आक्रमण कर पूरे कुमाऊँ पर अपना आधिपत्य जमा लिया. 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखाओं को हरा दिया और सुगौली संधि ने इस पर अंग्रेजों का शासन स्थापित कर दिया.
बैजनाथ अपने पौराणिक मंदिरों के लिए भी जाना जाता है. कत्यूरी शासकों के अलावा चन्द एवं मणिकोटी शासकों द्वारा यहाँ पर अनेकों मंदिरों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण किया गया था. यहाँ पर 18 मंदिरों का एक समूह था जिसके केंद्र में भगवान शिव (वैद्यनाथ) का मंदिर हुआ करता था, जिसके अब अवशेष मात्र ही हैं. बैजनाथ से 10 किमी की परिधि में आज भी पौराणिक मंदिरों और मूर्तियों के अवशेष पाए जाते हैं.
आज भी बैजनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा यहाँ सूर्य, ब्रह्मा, कुबेर, चंडी, काली आदि के मंदिर हैं. यहाँ मौजूद अधिकांश देवी-देवताओं की मूर्तियों को पुरातत्विक संग्रहालय में रखा गया है.
बैजनाथ के मंदिरों के ऐतिहासिक धरोहर होने की वजह से इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा उत्तराखण्ड में मौजूद राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक का दर्जा दिया गया है. यह भारत सरकार द्वारा शिव हैरिटेज सर्किट के तहत जोड़े जाने वाले देश के चार स्थानों में से भी एक है.
सरकार और विभागों की उदासीनता की वजह से बैजनाथ में मौजूद बची-खुची ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है, अधिकांश नष्ट हो ही चुकी है.
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