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3 Comments

  1. [email protected]

    चिंता पहाड़ की कब?
    जब सड़क बनने में डायनामाइट से छलनी होते गये पहाड़
    जब वन कानून के संशोधन से बर्बाद हुए वनवासी
    जब बेहिसाब पर्यटको की भीड़ बिगाड़ गई पर्यटक नगरी
    जब धार्मिक स्थलों में अजब बदहवासी उपजी
    जब गैर आबाद गावों में खंडहर में तब्दील हो गई घरकुड़ी
    तब कौन सी यात्रा ऐसी थी जिससे नीतियों में सुधार की मंशा बदली?
    ???

  2. Pahadi

    कौन सा इन अखबारों और पोर्टलों ने उत्तराखंड की दशा सुधार दी? इनको चलाने से कौन से प्रयोजन हल हो रहे? नीति निर्माताओं के विज्ञापनों पर नाचने वाले अखबारों ने ऐसा क्या भला कर दिया जो यात्राओं पर सवाल दागे जा रहे?

  3. कमल कुमार लखेड़ा

    राजीव पांडे जी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इस यात्रा के बहाने उत्तराखंड की मूलभूत समस्याओं को फिर से पटल पर रखा । हालांकि हासिल तो किसी भी मंच, क्रिया कलाप, रिपोर्टिंग से कुछ भी नहीं हो रहा है । कारण व्यवस्था ही ऐसी बना दी गई है कि जन प्रतिनिधि नवाबों सा बर्ताव करते हैं और जनता भी गुलामों (राजनीतिक दलों के गुलाम) से कम नहीं रह गई है । फिर उपाय क्या हो ? क्योंकि ये समस्या सिर्फ उत्तराखंड की नहीं पूरे देश की है, हां उत्तराखंड की राजनीति में निकम्मों और भ्रष्टों का बोलबाला बाकी राज्यों से अधिक है ।

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