आने वाली 23 और 24 तारीख़ के दिन उत्तराखंड में गढ़वाल स्थित हर्षिल घाटी में एप्पल फेस्टिवल (सेब महोत्सव) आयोजित करने वाली है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री इसमें स्वयं शामिल होंगे. सरकार ने इस महोत्सव के प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ी है. (Apple of Uttarakhand suffers from Disease)
जमीनी हक़ीकत यह है कि हर्षिल घाटी में इस साल हर्षिल घाटी में 80 प्रतिशत सेब की खड़ी फ़सल बर्बाद हो गयी है. इसका कारण सेब में लगने वाला एक रोग स्कब है. काश्तकारों का आरोप है कि सरकार ने जो दवा वितरित कराई वह मिलावटी है. (Apple of Uttarakhand suffers from Disease)
डाउन टू अर्थ में मनमीत सिंह की एक रिपोर्ट छपी है. मनमीत अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि
वक्त से पहले सेब के पेड़ों से पत्ते झड़ गये और उसके बाद जब अक्टूबर में सेब तोडऩे की बारी आई तो उनमें गंभीर बीमारी पाई गई. मंडी व्यापारियों ने सेब लेने से हाथ खड़े कर दिये हैं. काश्तकारों के बीच नाराजगी है कि जो दवा सरकार ने वितरित करवाई थी, वो मिलावटी निकली.
उत्तराखंड सेब के उत्पादन में देश में तीसरे नंबर पर है. इस साल कश्मीर में धारा 370 लगने के बाद यहां के काश्तकारों को भी उम्मीद थी कि इस साल अच्छा मुनाफ़ा होगा. इस साल उत्पादन भी मिछ्ले सालों से बेहतर होने के कारण स्थानीय काश्तकार बेहद खुश था.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उत्तराखंड के हर्षिल घाटी में सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन होता है. इसे सेबों की घाटी के नाम से भी जाना जाता है.
डाउन टू अर्थ में छपी रिपोर्ट के अनुसार ही स्थानीय काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से आने कर्मचारी प्रशिक्षित नहीं होते हैं. जिसके कारण फ़सल बर्बाद होने का डर हमेशा बना रहता है. अभी भी सरकार चाहे तो हमारा सेब खरीद कर फ़ूड प्रोसेसिंग वालों को बेच सकती है.
हर्षिल में होने वाले वाले महोत्सव पर स्थानीय काश्तकारों का कहना है कि यह सब उनके साथ मजाक जैसा है. हमारी खड़ी फसल खराब हो गई और सरकार सेब महोत्सव बना रही है.
-काफल ट्री डेस्क
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…
यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…
गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…
पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…
घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…
-रामचन्द्र नौटियाल अंग्रेजों के रंवाईं परगने को अपने अधीन रखने की साजिश के चलते राजा…
View Comments
सरकारें सिर्फ मीडिया में छाने को काम मानने लग गई हैं । इतना पैसा अगर जमीनी स्तर पर तरीके से खर्च हो तो कायापलट हो जाए