यदि आपके पास पासपोर्ट और वीजा नहीं है, कोई टेंसन की बात नहीं, आप बेखौफ अमरीका की सैर कर सकते हैं. यहां तक कि आपकी जेब खाली हो तो भी. चौंक गये न! लेकिन चौंकने वाली बात कुछ नहीं है. यदि आप देवभूमि उत्तराखण्ड के वाशिन्दे हैं तो अमरीका आपसे बहुत दूर नहीं है.
(Amrika Village Uttarakhand)
बात उस सात समन्दर पार के अमरीका की नहीं हो रही. जानना चाहेंगे बात कि अमरीका की हो रही है? ये अमरीका कोई देश नहीं बल्कि आपके उत्तराखण्ड के एक गांव का नाम है. अल्मोड़ा जनपद में मासी के पास दौला-पाली रोड पर स्थित है यह अमरीका गांव. अब भला इसे अमरीका नाम देने की क्या सूझी? ये सवाल आपके दिमाग में भी तैर रहा होगा. दरअसल इस गांव में अमर सिंह नाम के कोई व्यक्ति हुआ करते थे. हमारे पहाड़ के गांवों में आज भी हर व्यक्ति को उम्र के हिसाब से रिश्ते से संबोधन की परम्परा है. जैसे- फलां जेठ बौज्यू-जेड़जा, फलां कका-काखी, फलां आमा-बबू, फलां ददा-भौजी आदि-आदि. इसी तरह अमर सिंह बच्चों के कका (चाचा) अथवा कका का संक्षिप्त रूप में ‘का’ हो गया और अमर सिंह बच्चों के अमरी का हो गये. अब उस गांव में किसी ने जाना हुआ तो पूछने पर उत्तर मिला ’अमरी का’ का गांव जाना है. धीरे-धीरे उस गांव का ही नाम ’अमरी का’ का गांव और बाद में अमरीका गांव ही नाम मशहूर हो गया.
केवल एक यही नाम नहीं बल्कि उत्तराखण्ड में और भी कई जगहों के नाम ऐसे हैं, जिनके नाम सुनकर आपको आश्चर्य होगा. श्रीलंका भले एक देश हो लेकिन गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी में जाड़ गंगा के पास भैरों घाटी में एक गांव का नाम भी लंका है. जहां अब वन विभाग द्वारा हिम तेंदुओं संरक्षण केन्द्र बनाया जा रहा है. इसका नाम लंका क्यों रख दिया गया इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन अपने उत्तराखण्ड में लंका नाम सुनकर कौतुहल होना स्वाभाविक है.
(Amrika Village Uttarakhand)
नैनीताल जनपद में ही लंका टापू भी है. इसके नाम का इतिहास अभी चार दशक भी पूरा नहीं कर पाया है. हल्द्वानी विकासखण्ड में लालकुंआ के समीप गौला नदी से सटा हुआ एक गांव हुआ करता था जो खुरियाखत्ता के नाम से जाना जाता था. वर्ष 1985 में गौला नदी ने जब भीषण रूप लेकर अपना रूख बदला तो खुरियाखत्ता गांव के बीच से होकर बहने लगी. इससे खुरियाखत्ता गांव दो भागों में बंट गया. गांव का पूर्वी हिस्सा बाढ़ के पानी से कटकर अलग-थलग हो गया और एक टापू बन गया. आज खुरियाखत्ता गांव का पूर्वी हिस्सा बरसात में गौला नदी के उफान पर होने पर शेष दुनियां से अलग-थलग हो जाता है तथा इस गांव तक पहुंचने के आवागमन के कोई साधन न होने से इस टापू का नाम लोगों ने लंका टापू रख दिया.
लद्दाख का नाम सुनते ही बर्फ से ढके रहने वाले भूभाग का चित्र उभरकर सामने आता है , लेकिन नैनीताल जनपद में ही एक जगह लद्दाख के नाम से भी जानी जाती है. हालांकि यह कोई राजस्व गांव नहीं है, लेकिन यहां बसासत वर्षौं से है. भवाली के प्रसिद्ध क्षयरोगाश्रम (सेनेटोरियम) के पैताने पर पसरा यह स्थान लद्दाख कहलाता है. अब किसने इसे ये नाम दिया और क्यों दिया? यह जिज्ञासा का विषय हो सकता है.
(Amrika Village Uttarakhand)
भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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