कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन में आप खुद को जिस मकसद के लिए तैयार कर रहे थे वह आपकी जिंदगी को मायने नहीं दे पायेगा. ऐसा सभी की जिंदगी में होता है लेकिन सालों की मेहनत को छोड़कर किसी नए गोल के लिए खुद को तैयार करना हर किसी के बस की बात नहीं होती. ज्यादातर लोग अतीत के साथ चिपककर जीने का रास्ता चुनते हैं. (Ameesha Chauhan who conquers Everest)
कुछ विरले ही होते हैं जो पुरानी इबारत को मिटाकर जिंदगी की स्लेट में कुछ नया लिख डालने का इरादा करते हैं. नयी चुनौतियां और लक्ष्य तय कर दोगुने जोश के साथ जुट जाते हैं. दोबारा मेहनत कर कामयाबी की बुलंदियों तक जा पहुँचते हैं. ऐसे ही चंद विरले लोगों में से एक हैं उत्तराखण्ड की अमीषा चौहान. अमीषा ने पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद 2 साल सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम किया. जब जीवन में यह काम सार्थक नहीं लगने लगा तो कुछ नया करने का इरादा किया. ऐसा कुछ जिससे जीवन बेसबब न लगे और अगले तीन सालों में एवरेस्ट समेत दुनिया के 3 महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियां फतह कर डालीं.
मूल रूप से दसजुला जौनपुर, तहसील धनौल्टी जिला टिहरी गढ़वाल की रहने वाली अमीषा की शुरूआती पढ़ाई-लिखाई विभिन्न शहरों के केन्द्रीय विद्यालयों में हुई. पिता सेना में थे तो उनके तबादलों के साथ शहर और स्कूल बदलते रहे.
स्कूली पढ़ाई ख़त्म करने के बाद पुणे से बीसीए, देहरादून से एमसीए और रुड़की से कम्प्यूटर साइंस में एमटेक की डिग्री हासिल की. ऐसी डिग्रियां जुटाकर अपना कैरियर बनाना इस देश के ज्यादातर युवाओं का सपना हुआ करता है. इसके बाद अमीषा ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर दिल्ली एनसीआर में काम करना शुरू किया.
दो साल बाद ही अमीषा को लगा कि उनका काम उनके जीवन को सार्थक नहीं कर रहा है. बचपन से पायलट बनकर आसमान नापने का सपना देखने वाली इस जिद्दी लड़की ने 2016 में अपना जॉब छोड़ दिया. अमीषा मेडिकली अनफिट होने के चलते पायलट नहीं बन पायी सॉफ्टवेयर इंजीनियर वे बनना नहीं चाहती थीं.
वापस उत्तराखण्ड लौटकर वे उत्तरकाशी के एक हिमालयी ट्रैक पर निकल पड़ीं. हिमालय की ऊंचाई ने उन्हें अपने जीवन का मकसद दिया.
अमीषा ने तय किया कि वे पर्वतारोहण को ही अपना शौक भी बनाएंगी और करियर भी. अपने पहले ट्रैक के दौरान बछेंद्री पाल के संपर्क ने उन्हें इस निर्णय के लिए प्रेरित किया. अमीषा बछेंद्री पाल को अपना आदर्श और प्रेरणास्रोत मानती हैं. उत्तराखण्ड का नाम सगरमाथा के माथे पर लिख देने वाली महिला
2017-18 में अमीषा ने देश के विभिन्न नामी संस्थानों से स्कीइंग और माउंटनियरिंग के बेसिक और एडवांस कोर्स कर डाले. शुरुआती झिझक के बाद घर वालों ने माउंटनियरिंग के बेसिक कोर्स में बेटी के प्रदर्शन को देखा तो उनकी आशंकाएँ जाती रहीं.
सितम्बर 2017 में अमीषा ने लेह लद्दाख की चोटी गोलप कांगड़ी (5900 मीटर) पर चढ़ाई की और 3 महीने बाद वे अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो (5895 मी.) फतह कर चुकी थीं. मई 2018 में अमीषा ने यूरोप महाद्वीप का सर्वोच्च शिखर माउंट अल्ब्रुश (5642मी.) अगस्त 2018 में माउंट मनिरंग (6593मी.) हिमाचल प्रदेश, जनवरी 2019 में लेह लद्दाख के एक अनाम पर्वत (6011 मी.) और अप्रैल 2019 में नेपाल के माउंट लोबुचे को समिट किया.
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उनका अगला सपना वही था जो हर पर्वतारोही का होता है, दुनिया और एशिया महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट समिट करना. 16 मई 2019 को माउंट एवरेस्ट (8848 मी.) फतह करने का उनका पहला प्रयास असफल रहा. चोटी से 100 मीटर पहले 8748 मी. की ऊंचाई पर उनके शेरपा का ऑक्सीजन ख़त्म हो गया. 500 मीटर पीछे दूसरा सिलिंडर होने के बावजूद अमीषा शेरपा को अकेले पीछे लौटने के लिए इसलिए नहीं कह सकती थीं कि वापसी में उन्हें खुद उस सिलिंडर जरूरत पड़ने वाली थी. लिहाजा भारी मन से उन्हें लौटना पड़ा.
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कैम्प-फोर में वापसी पर नयी चुनौतियां उनका इंतजार कर रही थीं. उनके शेरपा को स्नो ब्लाइंडनेस ने जकड़ लिया. ऊपर से कैम्प में ईधन सुलगाने का कोई जरिया न होने के कारण खाना-पीना मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी. किसी तरह अपने कपड़ों पर जमी बर्फ से प्यास बुझाई.
17 मई को कैम्प-फोर से वे वापस बेस कैम्प के लिए चलीं और 18 को पुनः बेस कैम्प पहुँच गयी. उन्होंने फैसला किया कि वे अगली विंडो में फिर एवरेस्ट की चोटी के लिए निकल पड़ेंगी. ये एक नामुमकिन चुनौती थी. कुछ ही दिनों बाद फिर से एवरेस्ट की दुरूह चढ़ाई चढ़ना बहुत जोखिम भरा हो सकता था. वहां मौजूद अन्य पर्वतारोहियों ने अमीषा को इस दुस्साहस के लिए हतोत्साहित भी किया. लेकिन उनका जुनून सब पर भारी था. उन्हें नया शेरपा ले जाने और दोबारा अभियान शुरू करने के आर्थिक बोझ को भी जुटाना पड़ा. उनके पिता ने लोन लेकर बेटी के सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाया.
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20 मई को अमीषा पुनः बेस कैम्प से अपनी दूसरी कोशिश के लिए निकल पड़ी. 22 तारीख को वे कैम्प-4 पहुंचीं. पहले अभियान की थकान को उन्होंने बेस कैंप में ही छोड़ दिया, उनके साथ संकल्प की नयी ऊर्जा थी. जिस महिला पर उत्तराखण्ड हमेशा नाज करेगा
22 मई की शाम 6 बजे वे कैम्प-फोर से एवरेस्ट समिट के लिए चल पड़ी. पूरे रास्ते पर कई पर्वतारोहियों के शव बिखरे हुए थे. 22 मई 2019 को एवरेस्ट के रास्ते पर लगे जाम में कई पर्वतारोही मारे गए थे, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी. एक जगह अमीषा को एक पर्वतारोही के रस्सी के सहारे लटके शव को पार कर भी आगे जाना पड़ा.
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22 मई की शाम को कैम्प-फोर से चलने के बाद 23 मई की सुबह 8 बजकर 20 मिनट में अमीषा ने एवरेस्ट फतह करने का कारनामा कर अदम्य जिजीविषा का परिचय दिया. पर्वतों की चोटियों पर अपने हौसलों का परचम लहराने वाली उत्तराखण्ड की बेटियों में अमीषा चौहान भी शुमार हो गयीं.
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अमीषा का सफ़र यहीं नहीं रुकने वाला है, वे दुनिया के 7 महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने का इरादा रखती हैं. इनमें से 3 वे फतह कर चुकी हैं. काफल ट्री आने वाले साहसिक अभियानों में उनकी सफलता की कामना करता है. उत्तराखण्ड की एक और बेटी ने किया एवरेस्ट फतह
(काफल ट्री के लिए अमीषा चौहान से सुधीर कुमार की बातचीत के आधार पर)
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