हर गांव के बसने की एक कहानी होती है. उत्तराखंड में भी बहुत से ऐसे गांव हैं जो पिछले दस-एक दशकों पूर्व ही बसे हैं. पिथौरागढ़ जिले में डीडीहाट क्षेत्र में एक गांव है सौगांव. सेलकुड़ीधार से तड़केश्वर गाड़ को पार कर छः किमी की दूरी पर बसा यह गांव उत्तराखंड की सबसे उपजाऊ घाटियों में माना जाता है. इस गांव में मौर या महर और खोलिया जाति के लोग रहते हैं. गोविन्द सिंह द्वारा लिखे इस लेख में पढ़िये कि किस तरह खोलिया और मौर जाति के लोग सौगांव में बसे : संपादक
खोली में एक बूढ़े खोलिया के चार के बेटे थे. जिनमें सबसे छोटे का नाम था पुटकिया. पुटकिया लाटा था जिसके कारण तीनों भाई और उसका पिता उसे परिवार पर बोझ मानते थे. पुटकिया को हर रोज डंगर चराने जंगल भेजा करते. जंगल में एक तरफ तो घासी पातल तो दूसरी ओर चिरकटड़ा का धुरा था. बांज-बुरांश के इस जंगल में हेमशा बाघ-भालू का खतरा था.
पुटकिया के परिवार को उसकी कोई चिंता नहीं थी उनकी बाला से बाघ खाए तो खाए. इन्हें लगता लाटा-काला तो है ही बाघ खा लेगा तो जमींन का एक हिस्सा बच जायेगा. पिता और भाइयों के इस व्यवहार को देखकर पुटकिया एक दिन गांव से भाग गया.
चलते चलते पहले वह जौराशी पहुंचा और फिर वहां से तड़खेत. तड़केश्वर गाड़ के किनारे बसे एक सुंदर से गांव में इन दिनों एक ब्राह्मण का राज था. इस ब्राह्मण का नाम था बयाल. तड़खेत, सौगांव, चिटगालगांव, अगड़ाखन, कन्यूरा, खांकर, भाटिगांव, पतलिया और कांडा इन सब गांवों पर बयाल ब्राह्मण का ही राज था. तड़खेत और चिटगालगांव में उसके अपने लोग रहते बाकि के गांवों में खेती होती.
पुटकिया की कद-काठी अच्छी थी इसलिये बयाल ने उसे अपना हलिया रख दिया. दो वक्त की रोटी के बदले पुटकिया बयाल के खेतों में खूब मेहनत से काम करता. न पुटकिया ने कभी बयाल के काम को नौकरी समझा न बयाल ने कभी पुटकिया को नौकर समझा.
एक दिन जब पुटकिया खेतों में हल चला रहा था तो बयाल के दो छोटे लड़के उसे खाना देने खेत पर आये. उन्होंने मजाक मस्ती में पुटकिया को खाना नहीं दिया और सोचा की देखें अब पुटकिया क्या करता है. ऐसा वे पहले भी एक दो बार कर चुके थे. पुटकिया छोटी-मोटी बातों का कभी बुरा न मानता.
भूख से जब पुटकिया बेहाल हो गया तो बयाल के लड़के उस पर हंसने लगे. पुटकिया को अपनी स्थिति के ऊपर बेहद गुस्सा आया और उसने पास में रखे मिट्टी के ढेले बराबर करने वाले यंत्र (डलौट) से अपने ही सर पर मार दिया. लड़के डर गये और घर जाकर अपनी मां को सब बता दिया.
वह घबराकर अपने पति के पास गयी दोनों ने बच्चों को खूब डांट लगाई और खेत की तरफ़ दौड़े. पुटकिया का मुंह काला पड़ा था और आंखें लाल थी. उसने इशारों में कहा कि बहुत हुआ अब वह चला अपने घर. बयाल परिवार ने खूब अनुनय-विनय किया पर पुटकिया न माना.
बयाल ब्राह्मण ने पुटकिया के सामने खांकर और कन्यूरा गांव लेने का प्रस्ताव रखा. पुटकिया ने यह कहकर प्रस्ताव नहीं माना कि कौन कन्यूर गांव जायेगा वहां तो बाघ खा जायेगा. फिर उसे एक बड़ा गांव कांडा देने का प्रस्ताव दिया तो उसने वह भी यह कहकर मंजूर नहीं किया कि कांडा ऊंचाई पर वहां हौलिया बाग आता है. बयाल ब्राह्मण इसपर नाराज हो गया और पुटकिया को दो दिन जेल में डाल दिया.
पुटकिया महाहठी था उसने तब भी बयाल ब्राह्मण की बात नहीं मानी. फिर उसे सौगांव की थात देने की बात हुई इस पर पुटकिया मान गया. सौगांव पहुंच कर वह वहां दो दिन रहा लेकिन उसे वहां डर लगने लगा तो वह वहां से जमतड़ा गया.
जमतड़ मौर या महर लोगों का गांव था. जमतड़ के मौर लोगों से पुटकिया की बचपन से पहचान थी. उसने एक मौर के बेटे से अपने साथ चलने को कहा. उसने प्रस्ताव रखा की गांव के चार दुकड़े करेंगे एक टुकड़ा तेरा बाकि तीन मेंरे. मौर का बेटा मान गया और तभी से सौगांव में दो जातियां महर और खोलिया रहती हैं.
पहाड़ के पिथौरागढ़-चम्पावत अंक में गोविन्द सिंह के लेख बचपन की छवियां के आधार पर.
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