करवा चौथ से ही मिलता-जुलता त्यौहार हैं वट सावित्री. इस त्यौहार को उत्तराखण्ड समेत कुछ राज्यों में पारंपरिक रूप से मनाया जाता रहा है. यह कहना गलत न होगा कि अब यह त्यौहार विलुप्त होने की कगार पर पर है. यह त्यौहार ज्येष्ठ मास, कृष्णपक्ष में मनाया जाता है. पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य, पुत्र-पुत्रों द्वारा वंश वृद्धि और परिवार की सुख, शांति, समृद्धि के लिए महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है.
इसमें वट वृक्ष और सावित्री दोनों का अपना विशिष्ट महत्त्व है. वट वृक्ष अपनी विशालता और चिरायु के लिए जाना जाता है. भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यथा इसे ज्ञान एवं निर्वाण का प्रतीक भी माना जाता है. पुराणों में वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का वास बताया गया है. इसीलिए भी पति की दीर्घायु और सौभाग्य के लिए इसे पूजे जाने की परंपरा है. इस त्यौहार में महिलायें व्रत रखकर वट वृक्ष की परिक्रमा कर इसके चारों ओर सूत का धागा लपेटती हैं.
वट सावित्री में वट वृक्ष का पूजन कर सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है. हिन्दू परंपरा में सावित्री को एक ऐसी सौभाग्यशाली महिला के रूप में जाना जाता है जिसने यमराज से अपने पति को छीन लिया था. वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवित किया था. सावित्री की पूजा किये जाने के विधान के कारण इसे वट सावित्री कहा जाता है. सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी माना जाता है.
हल्द्वानी में आज वट सावित्री की तस्वीरें देखिये :
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
आज है आंचलिक त्यौहार वट सावित्री
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