पिथौरागढ़ जिले के जाजरदेवल निवासी संदीप नाथ ने बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली, बेड़ीनाग निवासी विनोद कुमार टम्टा ने जहर खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, विनोद स्नातक था और बेरोजगारी के चलते तनाव में था. काशीपुर निवासी अमित यादव बेरोजगारी के कारण पंखे पर झूलकर मर गया. अमित अच्छे नंबरों से बीटेक पास था. बहुत भागदौड़ करने पर भी नौकरी नहीं मिली तो पिता ने अमित को तनावग्रस्त देख डेयरी खुलवा दी. यहाँ भी नाकामयाबी मिलने पर तीन बहनों का इकलौता भाई अमित अपने ही घर पर पंखे में लटक गया.
यह पिछले 3 दिनों में पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं की आत्महत्या की खबरें हैं. उत्तराखण्ड की यह तस्वीर दिल दहलाने वाली है. प्रदेश में हजारों युवा रोज सुबह सेना में भर्ती होकर देश के लिए मर-मिटने की चाहत से भर्ती की दौड़ लगते हैं. साल भर सीमाओं से शहीदों के ताबूतों के आने का सिलसिला चलता रहता है. ऐसे जज्बे और जुनून वाले उत्तराखण्ड में आज युवा इतना निराश और हताश क्यों दिखाई दे रहा है कि आत्महत्या जैसे कदम उठा रहा है.
अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. राज्य के 17.4 फीसदी शिक्षित युवा बेरोजगार हैं. उत्तराखण्ड में बेरोजगारी की दर 7.5 फीसदी है जो कि राष्ट्रीय औसत 7.4 से ज्यादा है. आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि स्वरोजगार मैं भी 12 प्रतिशत तक की कमी आई है. मतलब साफ़ है कि स्वरोजगार की विभिन्न योजनाएँ हवाई साबित हो रही हैं.
सरकारी नौकरियों में कुछ ही पदों के लिए लाखों की संख्या में आवेदन पहुँच रहे हैं. सिडकुल में पहले ही गिरी-पड़ी तनख्वाह में युवा 12-14 घंटे की मजदूरी कर रहे हैं. स्वरोजगार के अवसर इसलिए भी कम हैं कि जिस भी सेक्टर में आप जाओ वहां पहले से ही जरूरत से ज्यादा लोग मौजूद हैं. गली-मोहल्लों तक में हर किस्म की दुकानें खुल चुकी हैं. सड़कों पर इंसानों से ज्यादा टेम्पो और टैक्सी दौड़ रही हैं.
इन हालातों में युवा आत्महत्या न करे तो क्या करे. उन्हें यही एक रास्ता दिख रहा है जिस पर वे बढ़ रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय देश में दुर्घटनाओं और बीमारियों से ज्यादा युवा आत्महत्या के कारण मर रहे हैं.
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