यति या मिच कांगामी (भयंकर हिममानव) सदियों से मनुष्य के लिए एक कौतुहल का विषय रहा है. अनेक देशों में हिम मानव पर शोध कार्य चल रहा है, लेकिन बिना प्रमाणिक तथ्यों के अभाव में यह रहस्यमय प्राणी पकड़ में नहीं आया है. चीनी वैज्ञानिकों की धारणा है कि इस विचित्र प्राणी का अस्तित्व अवश्य है. यती के बारे में नैपाल, भारत, तिब्बत और चीन में अनेक दंत कथाएं प्रचलित हैं. यह विश्वास किया जाता है कि जिस आदमी को यती दिखाई दे उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है.
(Yeti in Uttarakhand)
काठमांडू मठ में तिब्बत के मुख्य प्रतिनिधि और मठाधीश लामा पून्या बाजरा के अनुसार हिम मानव सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है. उनके अनुसार हिम मानव तीन प्रकार के होते हैं:
1. लामा न्यालमो जाति का
2. रिमि जाति का
3. बोम्युल जाति का
प्राप्त सूचना के अनुसार यति या हिम मानव का सबसे पहले विवरण 1848 में मिला था. जब कैलीफोर्निया के कुछ लोगों ने सूचित किया कि उन पर कुछ विचित्र किस्म के प्राणियों ने हमला किया. इस हमले में दो-तीन लोग मार डाले गये. इन आक्रमणकारियों के पैर के निशान आदमी के पद चिन्हों से बड़े थे.
सन् 1925 में इटली के एक पर्वतारोही ए.एस. टोम्बाजी को हिमालय के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित सिक्किम के पास जेमू ग्लेशियर के करीब 10 मील आगे घाटी में छ: सौ फुट नीचे एक आकृति दिखाई दी जो किसी मनुष्य से मिलती जुलती थी. यह विचित्र प्राणी अपने दो पैरों पर एकदम सीधा चल रहा था और बिल्कुल नंगा था.
(Yeti in Uttarakhand)
1935 में चीन के कांसी प्रांत में हिम मानव के दांत और खोपड़ी के पुरावशेष पाये गये थे. 1936 में ही ब्रिटिश शाही विमान सेवा के एक अधिकारी ने सूचित किया कि हिमालय श्रृंखला के केन्द्र स्थल नंदा देवी के पास उसे एक विचित्र प्राणी के पद चिन्ह दिखाई दिये. 16 से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर भालू नहीं पाये जाते, इसलिए ये निशान किसी अन्य प्राणी के हो सकते हैं.
स्मिथ नाम का एक पर्यटक अपने तीन शेरपा साथियों के साथ गढ़वाल क्षेत्र की ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ा. उसको 16 हजार फुट ऊंचे स्थान पर किसी प्राणी के विशाल पंजे के निशान दिखाई पड़े. स्मिथ ने इन पद चिन्हों के फोटो खींचे. सन् 1938 में प्रसिद्ध पर्वतारोही एच. डब्लू. टिलमैन ने कंचनजंघा पर्वत शिखर और सिमबू पर्वत शिखर के बीच जैमू दर्रे के पास चढ़ते समय देखा कि कोई प्राणी कुछ समय पहले उसके आगे चला है. निशान बिलकुल ताजे थे. कुछ दूर चलने के पश्चात टिलमैन ने देखा सिमबू पहाड़ी के बाद निशान गायब हो गये थे. अगर निशान पुराने होते तो बाद में पड़ने वाली बर्फ से ढक गये होते. टिलमैन से कुछ महिने पहले ब्रिगेडियर हंट ने जैमू दर्रे पर चढ़ते समय ऐसे ही रहस्यमय निशान देखे थे.
(Yeti in Uttarakhand)
4 सन् 1951 में एवरेस्ट अभियान के दिनों में एरिक शिप्टन ने भी एक फुट लम्बे पदचिन्ह देखे. उन्होंने उनके चित्र भी लिए. एक भारतीय-ब्रितानी अभियान दल ने 1954 में यती के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हिमालय के क्षेत्रों का भ्रमण किया. उनको भी यती के पैरों के निशान देखने को मिले. सन् 1957 में एक अमेरिकी उद्योगपति इस रहस्यमय प्राणी की खोज में निकला. मौसम की खराबी के कारण वह खोज पूरी न कर सका.
प्रसिद्ध पर्वतारोही तेनजिंग के पिता ने पहली बार जब इस रहस्यमय प्राणी को देखा तो उसको लगा कि इस भयानक आकृति वाले प्राणी की शक्ल बंदर से मिलती-जुलती है. तेनजिंग ने इस प्राणी को कभी नहीं देखा. लेकिन 1952 में स्विस अभियान दल के साथ तथा 1964 में जेमू हिमनद में उनको साढ़े ग्यारह इंच लम्बे और पाँच इंच चौड़े पैर के निशान मिले.
सोवियत युवकों के अखबार ‘काम्सोलस्विया प्रावदा’ में छपी एक रपट के अनुसार बोल्गा के सारातोव क्षेत्र में बागों में काम करने वाले कुछ युवकों ने इस अद्भुत प्राणी को 21 सितम्बर 1989 को देखा. युवकों ने उस प्राणी को बांध कर एक कार में डाल दिया. कुछ देर के पश्चात इस प्राणी ने अपने को बंधन मुक्त कर लिया और बाग में घुस गया. इस प्राणी के पांव भारी थे. देखने वालों ने इसकी तुलना यती से की है.
(Yeti in Uttarakhand)
19-10-1980 को चीन के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार मध्य चीन के हुबई प्रांत में एक्सिन पर्वतमाला में एक हजार विशाल पैरों के निशान पाए गये जो 48 सेंटीमीटर लम्बे, 23 सेंटीमीटर आगे की तरफ चौड़े और 16 सेंटीमीटर एड़ी की ओर चौड़े थे. ये पैरों के निशान विज्ञान अकादमी के बूशन संस्थान के अभियान दल के नेता लिमू मिशै को यती के खोज के दौरान मिले.
जब एक दिन हिम मानव मनुष्य के पकड़ में आ जाए तभी इस रहस्यमय प्राणी के विषय में प्रमाणिक जानकारी मिल सकेगी. चौदह साल तक हिममानव पर शोध करने वाले रूसी इतिहासकार कुर्सनेव का विचार सही जान पड़ता है कि हिम मानव का अस्तित्व मात्र कल्पना नहीं है.
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श्री लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब) अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित, ‘पुरवासी‘ पत्रिका के चौतीसवें अंक में प्रकाशित लेख. पुरवासी में यह लेख लक्ष्मण सिंह पांगती द्वारा लिखा गया है.
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