समुद्र तल से दस हजार मीटर की उंचाई पर स्थित यमनोत्री धाम उत्तरकाशी जिले में है. चार धाम यात्रा की शुरुआत यमनोत्री से ही शुरू होती है.
यमुना सूर्य की पुत्री मानी जाती है और मृत्यु के देवता यम की बहिन मानी जाती है. इसीकारण यमुना नदी को सूर्यतनया और यमी भी कहा जाता है. कहा जाता है कि यमुनोत्री धाम के पास असित मुनि का निवास था कहा जाता है कि असित मुनि ने यमुना की खोज की थी.
यमनोत्री मंदिर का अधिकांश हिस्सा गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था. मंदिर का वर्तमान स्वरूप गढ़वाल नरेश प्रतापशाह ने बनवाया था. एक भूकम्प में मंदिर को हुई क्षति के बाद जयपुर की महारानी गुलेरिया ने इसका पुनर्निर्माण कराया.
यमनोत्री धाम के पास ही एक तप्त कुंड है. इसे सूर्यकुंड कहा जाता है. इसी के पास एक ठंडे पानी का कुंड भी है इस कुंड को गौरी कुंड है.
यमनोत्री धाम के कपाट प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं. इस वर्ष अक्षय तृतीया 7 मई को है इस तरह साल 2019 में यमनोत्री धाम के कपाट 7 मई को खलेंगे. यह रोचक विषय है कि इस वर्ष गंगोत्री धाम के कपाट भी 7 मई को ही खुलने हैं.
यमनोत्री में स्थित सभी तप्त कुंडों में सबसे तप्त कुंड सूर्यकुंड ही है. यमनोत्री धाम में प्रसाद के रूप चावल और आलू को एक कपड़े की पोटली में रखा जाता है. इन्हें सूर्य कुंड में डाला जाता है जिससे आलू और चावल पक जाते हैं जिसे प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है.
यमुनोत्री में सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त हो जाते हैं.
– काफल ट्री
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