हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई और भी न जाने कितने ही धर्म के लोग ख़तरे की दहलीज़ पर खड़े हैं. यह ख़तरा धार्मिक नही बल्कि स्वजनित है. यह ख़तरा पानी का है. पीने के साफ़ पानी की अनुपलब्धता ने भारत के कई राज्यों में दस्तक दे दी है. पिछले साल ही गर्मियों में हिमाचल प्रदेश में पानी की भारी क़िल्लत देखी गई जिस वजह से न सिर्फ सैलानियों को दिक्कत का सामना करना पड़ा बल्कि स्थानीय लोगों, अस्पतालों व होटलों को भी खासी मुसीबत झेलनी पड़ी. जिसके चलते लोगों ने प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया व पानी की कालाबाज़ारी होते देख जाम भी लगाया. इस वर्ष जून माह में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में जल संकट देखने को मिला जिसके चलते 100 हॉस्टल बंद करने पड़े. स्थानीय लोगों को पीने के पानी के लिए घंटों लाइन लगाकर इंतज़ार करना पड़ा.
हरियाणा के 11 गाँवों के किसान भाखड़ा नहर से साफ पानी की मांग को लेकर 20 जून से धरने पर बैठे हैं. उन्होंने अर्धनग्न होकर विरोध प्रदर्शन किया और सिर तक मुंडवा दिया. अब ये किसान ज़हरीला पानी पीने की जगह इच्छामृत्यु चाहते हैं. उन्हें लगता है कि हरियाणा सरकार पीने व सिंचाई के लिए साफ़ पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है. अगर सरकार इन किसानों की मॉंगों पर ग़ौर नहीं करती तो वो आगामी विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे. किसानों ने धमकी दी है कि यदि साफ़ पानी मुहैया नहीं कराया गया तो वो पंजाब में भी शामिल हो सकते हैं. महाराष्ट्र के लातूर, मराठवाड़ा और विदर्भ में सूखे की मार व किसानों की आत्महत्या एक आम ख़बर सी बन गई है. महाराष्ट्र सरकार के आँकड़ों के अनुसार 2015 से 2018 के बीच 12000 किसानों ने आत्महत्या की है. कहीं न कहीं सूखे की मार व क़र्ज़ के बोझ ने किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया है.
गर्मी बढ़ने के साथ ही राजस्थान हर साल पानी की समस्या से जूझने लगता है. इस साल अब तक 9 जिले सूखे की चपेट में आ चुके हैं जहॉं लोगों को बूँद-बूँद पानी के लिए मोहताज होना पड़ रहा है. उत्तर प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश तक फैले बुंदेलखंड के 13 जिलों में पानी को लेकर हाहाकार मचना हर वर्ष की बात है. ट्रेन द्वारा पानी की सप्लाई किया जाना दर्शाता है कि बुंदेलखंड जल संकट के किस दौर से गुज़र रहा है. उत्तराखंड जल संस्थान की रिपोर्ट पर अगर ग़ौर किया जाए तो लगभग 500 से अधिक जलस्रोत राज्य में सूखने की कगार पर हैं. 1544 क्षेत्र जल संकट के लिए चिन्हित किये गए हैं जिनमें सबसे ज़्यादा देहरादून, नैनीताल व टिहरी में हैं.
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 तक चेन्नई पानी की भयावह समस्या से जूझता नजर आएगा. 2020 तक देश के 11 शहर (जिसमें बैंगलुरू, दिल्ली, हैदराबाद शामिल हैं) पूरी तरह भूजल विहीन हो जाएँगे. 2030 तक 40% भारतीयों के पास पीने के साफ पानी की उपलब्धता नहीं होगी. 2040 तक पूरे भारत में पीने के पानी की अनुपलब्धता हो जाएगी.
पानी की समस्या सिर्फ भारत तक सीमित हो ऐसा नहीं है. दुनिया के कई बड़े शहरों में पानी की समस्या ने दस्तक दे दी है. दक्षिण अफ़्रीका का शहर केपटाउन पानी की समस्या को लेकर बुरी तरह जूझ रहा है. हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि जब भारतीय क्रिकेट टीम 2018 में टेस्ट मैच खेलने केपटाउन गई तो खिलाड़ियों को सख़्त हिदायत दी गई की पानी का कम से कम इस्तेमाल करें और नहाने के लिए शॉवर का इस्तेमाल 2 मिनट से ज़्यादा न करें. इसी तरह चीन का बीजिंग शहर प्रदूषित जल की मार झेल रहा है. सरकारी ऑंकड़ों के अनुसार बीजिंग में पानी इतना प्रदूषित है कि वह खेती के लिए भी इस्तेमाल करने योग्य नहीं है. नील नदी के किनारे बसे मिस्र का शहर काहिरा भी जल संकट से जूझ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मिस्र उन देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल है जहां जल प्रदूषण से संबंधित मृत्युदर सबसे अधिक है. रूस के मॉस्को शहर का हाल यह है कि यहां पीने के पानी के स्रोत के 35 से 60 फ़ीसदी स्वच्छता मानकों पर खरे नहीं उतरते. मैक्सिको शहर में 20 फ़ीसदी जनता को दिन में सिर्फ कुछ घंटों के लिए पानी उपलब्ध कराया जाता है. ब्रिटेन का लंदन शहर आबादी के हिसाब से अपनी क्षमता पूरी कर चुका है. शहर 2025 तक गंभीर पानी की समस्या से जूझने लगेगा और 2040 तक हालात बेहद ख़राब हो जाएँगे. इसके अलावा दुनिया के बहुत से छोटे-बड़े शहर हैं जो साफ पानी की समस्या से जूझ रहे हैं.
पीने के साफ पानी व दैनिक इस्तेमाल होने वाले पानी के पूरी तरह समाप्त हो जाने की स्थिति को ‘ज़ीरो डे’ कहा जाता है.
भारत में हम ज़ीरो डे की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं. पानी की अनुपलब्धता एक गंभीर समस्या हो सकती है जिसे हम अभी स्वीकार करने में समय लगा रहे हैं. किसी भी चीज़ की असल क़ीमत उसके समाप्त होने के बाद ही पता चलती है. ऐसा पानी को लेकर न हो तो बेहतर होगा. हम अपनी दैनिक दिनचर्या में बिना सोचे समझें हज़ारों लीटर पानी यूँ ही बहा देते हैं. उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में पानी की उपलब्धता अधिक है तो बहुत से किसान साल भर में 3 से 4 फ़सल उगाने से भी नहीं हिचकिचाते. धान की फ़सल का साल में दो बार उत्पादन का मतलब हैं लाखों लीटर पानी की बर्बादी. भूजल स्तर लगातार कम होता जा रहा है और उस पर भी जल संचय के लिए बने तालाबों को लगभग हर गॉंव, शहर, क़स्बे में पाट दिया गया है. अब गाँवों में तालाब बहुत कम देखने को मिलते हैं जिनकी वजह से भूजल का स्तर कभी ऊँचा रहता था. अनुपम मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में बताया है कि देश में कहॉं-कहॉं कितने तालाब थे और उनकी वर्तमान में क्या गति हुई. उन्होंने जल संरक्षण के लिए तालाबों की महत्ता का विस्तृत वर्णन किया है.
समय आ गया है कि हम जल संचय को लेकर गंभीर हो जाए. पानी के दुरुपयोग से बचें और कम से कम पानी में अधिक से अधिक काम चलाएं. दुनिया में पीने योग्य मीठा पानी सिर्फ 3% है और इसी पानी पर दुनिया की पूरी आबादी निर्भर है. मंगल पर पानी की खोज जारी है. ऐसा न हो कि मंगल के पानी की आस में पृथ्वी का पानी भी समाप्त हो जाए.
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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