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2 Comments

  1. dps

    लेखिका भूल गई है की वह स्वयं एक प्राइवेट संस्थान द्वारा संचालित फाउंडेशन के लिए काम कर रही है। यदि अजीम प्रेमजी के समस्त उद्योग सरकारी ढर्रे पर चल रहे होते तो न फाउंडेशन होती न ये लेख लिखने को मिलता। आवश्यक ये है कि केंद्र से पूछा जाए कि समस्त आबादी का मुफ्त टीकाकरण अभियान क्यों सम्भव नही है। ना कि ये कि जिस टीके की research development पर सरकार ने एक पाई भी खर्च न की तो वह किस तरह इन कम्पनियों पर दबाव डालेगी, जो दबाव डाला तो अंजाम देख लिया, पूनावाला लंदन जा बैठा है। ग्लोबलाइजेशन के ज़माने में जब सरकारें विज्ञान पर शोध पर खर्चा न कर पुराने फार्मूलों पर ही चलेंगी तो यही होगा।

  2. deven mewari

    लेख के शुरू में दूसरे वाक्य में लिखा गया है- ‘वर्ष 1918 में हिंदुस्तान में स्पैनिश इन्फ्लूएंजा (प्लेग)’ लिखा गया है। इन्फ्लुएंजा प्लेग नहीं है। इन्फ्लूएंजा वायरस से होता है जबकि प्लेग जीवाणु यानी बैक्टीरिया से। ये दो अलग बीमारियां हैं। संशोधन करके प्लेग की जगह ‘फ्लू’ लिख दें।

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