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1 Comments

  1. संतोष ध्यानी

    अगर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के आज के हालातों को देखते हुए कहूं तो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य बनना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अगर किसी के लिए साबित हुआ तो वह हैं उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिले… आज खून के आंसू रो रहे हैं यहां कि वह आंदोलनकारी जिन्होंने अपना तन मन धन सब न्योछावर कर दिया था एक अलग पर्वतीय राज्य गठन करने के लिए और भटक रही हूं कि वह आत्माएं जिन्होंने प्राणों की आहुति दे दी अलग उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए…
    आज सत्ता की चासनी का मजा वह ले रहे हैं जिनके खानदान में देश सेवा और या सामाजिक आंदोलन में किसी की भागीदारी ना रही हो… शायद इसीलिए सता में बैठे इन सता के लोभियों को पर्वतीय जिलों की कठिनाइयों और समस्याओं की जानकारी मिलने के बावजूद भी इन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है इन्हें तो बस अपने स्वार्थ और कमीशन से मतलब है इसलिए यह पर्वतीय जिलों में शराब की फैक्ट्री लगा सकते हैं नए नए ठेके खुलवा सकते हैं यह शराब मोबाइल वैन से बिकवा सकते हैं!
    कुछ ऐसी ही पानी और पगडंडियों की समस्याओं से चार पांच साल पहले तक पिछले दस पंद्रह साल से हमारा गांव भी जूझ रहा था बार-बार जनप्रतिनिधियों और ब्लॉक ऑफिस में शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी आखिरकार हम प्रवासी ध्यानी बंधुओं ने अपने स्तर पर ग्राम विकास फंड का गठन किया और उससे अपने गांव की पुरानी बेतरतीब और गलत तरीके से बिछाई गई पाइप लाइन के स्थान पर मुख्य जल स्रोत से (जो कि हमारे गांव से लगभग दो-तीन किलोमीटर दूर हैं) एकदम नई पाइपलाइन गांव के एक प्राइमरी स्कूल से होते हुए अपने घरों तक बिछाई जिस का खर्चा लगभग 35 से 40 हजार रुपए के आसपास आया था और इस कार्य के हो जाने के एक डेढ़ साल बाद जल विभाग से फिटर हमारी पुरानी शिकायत पर सर्वे करने आया जिसमें उसने हमारी शिकायत को सही पाया और साथ ही साथ आश्वासन देकर चला गया था कि मैं आपको आपके द्वारा बिछाई गई नई पाइप लाइन का कुछ खर्चा सरकार से दिलवा दूंगा इस बात को भी आज 3 साल पूरे हो गए हैं और उस फिटर के भी तीन-चार ट्रांसफर हो गए होंगे या फिर हो सकता है कि उन पैसों से फिटर साहब या उनके अफसरों के घरों में स्विमिंग पूल बन गए होंगे! या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तत्कालीन ग्राम प्रधान से सांठगांठ करके कोई सेटलमेंट हो गई होगी! खैर हमें इन सब से कुछ लेना देना नहीं क्योंकि हमारा मुख्य मुद्दा था कि हमारे गांव के प्राइमरी स्कूल के बच्चे पढ़ाई करने के समय में पानी लेने स्कूल से दो-तीन किलोमीटर दूर ना जाए बल्कि उन्हें स्कूल में ही पानी मिल जाए और हम जैसे प्रवासियों को साल 2 साल में हफ्ते भर गांव जाने की पर गांव में पानी की समस्या ना हो! क्योंकि मेरा मानना है कि हम संपन्न प्रवासी जरूर हैं मगर अर्पणता ही संपन्नता की निशानी है!

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