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वृद्ध जागेश्वर जहां विष्णु रूप में पूजे जाते हैं भगवान शिव

अल्मोड़ा से छत्तीस किलोमीटर दूर पूर्व उत्तर दिशा में देवदार के घने पेड़ों की घाटी में एक सौ चौबीस छोटे बड़े मंदिरों का समूह जागेश्वर है. यहाँ देवदारु के पेड़ हैं इसलिए यह ‘दारूकावन ‘कहलाता है. योगियों के योग के कारण इसे ‘यागेश्वर’ का नाम मिला तो यहाँ शिवरात्रि के महापर्व व सावन में पार्थिव पूजा के महात्म्य और इन पर्वों में लगने वाले मेलों के उत्सव से इसे ‘हाटेश्वर’नाम मिला.
(Vriddha Jageshwar Temple Almora)

जागेश्वर मंदिर समूह से उत्तर की ओर बांज, बुरांश और काफल के घने जंगल हैं. यहीं चार किलोमीटर की पैदल दूरी चढ़ते पगडण्डी पर चलते, हर धार में उन्हें बदलते आता है ऊँचाई पर वह अति रमणीक सुरम्य स्थल जहां विष्णु रूप में पूजे जाते हैं शिवजू . किंवदंती है कि युद्ध की ओर प्रस्थान करते चंद राजा ने इस स्थल पर देखा कि एक शिला पर गाय दूध की धार दे रही है. समीप आने पर पाया कि वहां स्वयंभू शिव लिङ्ग विद्यमान है.राजा ने उस स्थल पर पूजा अर्चना की और उचेण रखा.वचन दिया कि युद्ध में विजयी होने के पश्चात् यहाँ मंदिर की स्थापना करेगा.तदन्तर इस स्थली में स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना भगवान विष्णु के रूप में किए जाने की विशिष्ट परंपरा विद्यमान है.

अल्मोड़ा से घाट के पथ में पनुआनौला से आगे वृद्ध जागेश्वर-जागेश्वर-झाकर सेम का मंदिर परिपथ बनता है. वृद्ध जागेश्वर के लिए आर्तोला मोड़ से आगे सड़क कटती है जो बांज बुरांश और काफल की गहन वन सम्पदा से परिपूर्ण है. यहाँ की नयनाभिराम धरती हरी भरी घास, लता कुंज और भेषजों के साथ सीढ़ी दार खेतों, जगह जगह से वर्षा ऋतु में फूटते धारों के विहंगम दर्शन कराती है. घने जंगलों में नाना प्रकार की वनस्पति है, भेषज हैं. कई सर्पिल मोड़ों की दूरी तय करने के बाद वृद्ध जागेश्वर मंदिर का परिसर काफी ऊंचाई पर सड़क के दायीं ओर स्थित है. आसपास कुछ दुकानें हैं जिनमें पूजन सामग्री मिलती है. जलपान की व्यवस्था के लिए स्थानीय निवासियों ने होटल खोले हैं.
(Vriddha Jageshwar Temple Almora)

जागेश्वर मंदिर समूह के मुख्य मंदिर के ठीक उत्तर की ओर लगभग चार किलोमीटर की दूरी तय कर कई पगडंडियों से गुजरते चढ़ाई चढ़ भी वृद्ध जागेश्वर पहुंचा जा सकता है. इसके दूसरी तरफ जागेश्वर से दक्षिण दिशा की ओर शिव रूप में पूजे जाने वाले सैम देवता का मंदिर है. यहाँ के पुजारी पांडे जी बताते हैं कि सदियों पहले जब जागेश्वर मंदिर बनाना आरम्भ हुआ तब निर्माण में कोई न कोई विघ्न बाधा आती थी. जब सैम के इस स्थान पर बलिदान किया गया तब से काज सफल हुए. यहाँ भगवती का थान है जिसमें बलिदान होता रहा. पर सैम देवता को तो बस दाल भात का भोग लगता है, मिर्च तक नहीं चढ़ती. सैम देवता को जब भोग लग जाता है तब उसके बाद बलि नहीं होती.

प्रायः अधिकांश शिव मंदिरों में दाल-भात का ही भोग चढ़ता है पर वृद्ध जागेश्वर में विष्णु रूप में पूजे गये शिव जी को मालपुए का भोग दिन में एक बार अर्पित किया जाता है. विष्णु भगवान के रूप में शिव को पूजे जाने से यहाँ बलि नहीं होती. नारियल भी नहीं तोड़ा जाता. रीठागाड़ खांकरी गाँव के भट्ट ब्राह्मण वृद्ध जागेश्वर मंदिर में परंपरागत रूप से पूजा अर्चना संपन्न कराते रहे हैं.

इस मंदिर में कई अनुष्ठान एवं विवाह संपन्न होते हैं. मंदिर के अहाते में हनुमानजी, कालिका माता, भैरव व कुबेर स्थापित हैं. मान्यता है कि विशेष पर्व में संतान प्राप्ति के लिए मंदिर के प्रांगण में महिलाएं रात्रि भर हाथ में जलता दीप लिए खड़ी रह प्रार्थना करतीं हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर में चांदी के छत्र व ताम्र पात्र चढ़ाए जाते हैं.

वृद्ध जागेश्वर का मंदिर पहाड़ी में ऊँचाई पर स्थित है. यहाँ से दूर दूर तक की पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देतीं हैं. आस पास घने वन हैं. जंगलों में पशु पक्षी व जानवर भी काफी हैं. जागेश्वर में आने वाले पर्यटक वृद्ध जागेश्वर व झाकर सैम तक आ इन पुरातन और विशिष्ट परंपरा वाले थान के दर्शन के साथ पैदल भ्रमण व ट्रेकिंग का भी आनंद ले सकते हैं. वृद्ध जागेश्वर-झाकर सेम-डंडेश्वर व जागेश्वर का छोटा पर्यटन सर्किट मंदिरों की विविधता के दर्शन के साथ फ़्लोरा फोना व स्थानीय व्यवसाय की विविधता से परिचित कराता है.

पनुआ नौला के समीप ही मिरतोला आश्रम है जहां वर्षों पहले स्वामी माधवशीष का वास रहा. वह कृष्ण भक्त थे. पहाड़ की खेती, फल फूल, सब्जी मसाले और पशुपालन पर उन्होंने पहाड़ की आत्मनिर्भर खेती का अनूठा मॉडल विकसित किया. उन्होंने डॉ जैक्सन के साथ मिल कर धारक क्षमता का मॉडल विकसित किया. योजना आयोग भारत सरकार में विशेषज्ञ रहे. कृष्ण भक्ति में रम गोपालन में सुधरी सरल तकनीक के सूत्र इस पूरे इलाके के आर्थिक सांस्कृतिक विकास के लिए विकसित किए. जागेश्वर मंदिर समूह से वृद्ध जागेश्वर के विस्तृत इलाके में शिव के साथ नारायण की लीला यहाँ के ग्राम्य जीवन में अनेक रूपों में दिखाई देती है.
(Vriddha Jageshwar Temple Almora)

प्रोफेसर मृगेश पाण्डे

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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