अरे! तुम तो एक हफ्ते में निबटा देने वाले ठैरे ‘वैलन्टाइन डे’ का जश्न, हमारे टैम पर तो सालों भी लग जाने वाले हुए ‘वैलेन्टाइन डे’ के इन्तजार में. किसम-किसम की सेरेमनी और रिचुवल्स होने वाले हुए, तब जाकर जो दिलों का लेन-देन होने वाला ठैरा. दिल जैसी नाजुक चीज के लेन-देन गुपचुप तरीके से नहीं, सब लोगों के राय मशविरे के साथ होने वाले हुए और कल कोई मुकर न जाय, बकायदा साक्षी भी होने वाले ठैरे. (Valentine Day in Uttarakhand)
किसी रिश्तेदार या शुभचिन्तक सम्पर्क सूत्र का काम करने वाले हुए और सब कुछ अनुकूलता पर पण्डित जी से चिन्ह (कुण्डली) मिलायी जाने वाली हुई. कुण्डली मिल गयी तो आगे का रास्ता खुलने वाला हुआ. फिर रिश्तेदारी की तलाश होने वाली हुई, माकोट कहां है? भाई बहिनों का ससुराल कहां हैं? कहीं-कहीं तो बुढ़ माकोट तक की छानबीन होने वाली हुई. घर-बर की जानकारी ली जाने वाली ठैरी किसे भेदिये से. सब कुछ मनमाफिक होने पर दिन तय किया जाने वाला हुआ लड़की देखने का.
लड़की वालों के घर जब देखने वालों के आने का दिन होने वाला हुआ तो सुबह से सकपकाट पड़ जाने वाला हुआ घर के लोगों में. चाय पानी की व्यवस्था, खातिरदारी, लड़की कुछ खास संजने, संवरने वाली तो नहीं हुई लेकिन बोल-चाल, उठने-बैठने का सलीका सिखाया जाने वाला हुआ उसे घर के सयानों द्वारा. वह सहमी सी घर के किसी कोने में दुबकी रहने वाली हुई. घर के चाक में बैठने वालों को लिए सलीके से दरी कालीन बिछाकर स्वागत की पूरी तैयारी होने वाली हुई.
मेहमानों की एन्ट्री बकायदा फल व मिठाई के डिब्बों के साथ होने वाली हुई. कुछ क्षण के लिए खुशी के बीच एक खामोशी छा जाने वाली हुई. फिर औपचारिक बात शुरू होते होते कब अनौपचारिक हो गयी, पता ही नहीं चलने वाला हुआ. दोनों एक दूसरे की रिश्तेदारी में अन्दर तक घुस जाने वाले हुए. मूल स्थान कौन हुआ? मित्रामी किन लोगों में होने वाली हुई. पढ़ाई-लिखाई, संस्कार और गुणों का बखान तो बाद की बात हुई. संबंधों/रिश्तेदारी को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाने वाली हुई, बाकी सब तो एडजस्ट हो ही जाने वाला हुआ. इन सब चर्चाओं के बीच मेहमानों की खातिरदारी में चाय बनकर तैयार हो जाने वाली हुई. चाय तो एक लड़की दिखाने का फैशन शो में रैम्प की तरह होने वाला हुआ. घर के बड़े-बूढ़े अन्दर कमरे को आवाज लगाने वाले हुए, हेमा! चाय बन गई तो ले आ. अब चाय अकेली हेमा लाये तो समझ में आये कि यही दुल्हन होगी यदि उसकी सहेली भी इसमें मदद करने लगी तो लड़के के लिए अन्दाजा लगाना मुश्किल ठैरा कि कौन उसकी होने वाली दुल्हन होगी. ऐसी सिचुऐशन आने पर लड़की के पिता-चाचा आँखों से इशारा कर अगले को बताने देन वाले हुए की होने वाली दुल्हन यही है. लड़की अपने हाथों से आये मेहमानों के हाथ में चाय का गिलास थमा कर नागिन सी चाल में सरपट अन्दर को निकल जाने वाली हुई.
लड़की का चाय का गिलास लड़के को थमाना ही आज की भाषा में ‘रोज डे’ होने वाला हुआ. लड़की अगर शर्मीली हुई तो उसकी एक ‘झउक’ (झलक) देख पाना भी इतना आसान नहीं हुआ. इस एक ‘झउक’ में ही लडके को अपनी पसन्द, नापसन्द का फैसला लेना हुआ. लड़की का पसन्द नापसन्द तो मां-बाप पर ज्यादा निर्भर करने वाला हुआ. औपचारिकता के तौर पर लड़की से पूछ जरूर लिया जाने वाला ठैरा, लेकिन संकोचवश व हाँ-ना का निर्णय मां-बाप पर ही छोड़ देने वाली हुई.
सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो टिक-पिठ्यां का दिन भी तय हो जाने वाला ठैरा. यह हफ्ते-पन्द्रह दिन से लेकर छः महीने बाद भी तय किया जाने वाला हुआ. दूसरी जगह रिश्तों की तलाश इसके बाद खत्म हो जाने वाली हुई. टिक-पिठ्या की रस्म वैधानिक न होते हुए भी इसे वैधानिकता से कम दर्जा नहीं दिया जाने वाला हुआ. इस दिन लड़के के पक्ष के लोग लड़की के घर मिठाई, उपहार लेकर लड़की का टिक-पिठ्यां करने वाले हुए और रिश्ता पक्का माना जाने वाला हुआ. यानि प्रपोज डे, चॉकलेट डे और टैडी डे सब एक साथ ही हो जाने वाला हुआ.
‘हग डे’ तो एक घृणित कल्पना होने वाली ठैरी. इस प्रकार सात फेरों के साथ वैलेन्टाइन डे तो मन जाने वाला ठैरा, लेकिन अब तक देानों के बीच रस्मों का बन्धन होने वाला ठैरा.
प्यार की एन्ट्री तो दोनों के दिलों में शादी के बाद होने वाली हुई. प्यार धीरे-धीरे ऐसा उपजने वाला ठैरा कि जन्म-जन्मान्तर क्या सात-सात जन्मों तक साथ निभाने की भावना होने वाली हुई. आज प्यार के बाद वैलन्टाइन डे मनाने वाले ठैरे, लेकिन हमारे टैम में तो वैलेन्टाइन डे के बाद प्यार धीरे-धीरे उपजने वाला ठैरा और ताउम्र बढ़ते रहने वाला हुआ.
अतीत में बहुत स्वावलम्बी था हमारा पहाड़ी जनजीवन
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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