फोटो: राजेन्द्र सिंह बिष्ट 'बबली'
उत्तरायणी (Uttarayani) के अवसर पर हल्द्वानी (Haldwani) नगर में एक जुलूस (Procession) निकाला जाता है. इस मौके पर नगर और आसपास के लोगों की बड़ी भीड़ जुटती है और विविध झांकियां सजाई जाती हैं. आज यानी 14 जनवरी को निकले इस जुलूस की कुछ सुन्दर तस्वीरें देखिये.
उत्तरायण को शुभ माना जाता है. इसीलिए महाभारत में भीष्म जब अर्जुन के बाणों से घायल हुए तो दक्षिणायण की दिशा थी. भीष्म ने अपनी देह का त्याग करने के लिए उत्तरायण तक सर शैय्या पर ही विश्राम किया था. माना जाता है कि उत्तरायण में ऊपरी लोकों के द्वार पृथ्वीवासियों के लिए खुल जाते हैं. इस समय देश के सभी हिस्सों में विभिन्न त्यौहार मनाये जाते हैं.
देश में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है मकर संक्रान्ति का त्यौहार
इस मौके पर ही उत्तराखण्ड में उत्तरायणी का त्यौहार मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति से पूर्व की रात से ही त्यौहार मनाना शुरू हो जाता है. इस दिन को मसांत कहा जाता है, यानि त्यौहार की पूर्व संध्या. इस दिन हर शुभ अवसर की तरह बड़ुए और पकवान बनाये-खाए जाते हैं. इसी रात हर घर में घुघुत बनाये जाते हैं और बच्चों के लिए घुघुत की मालाएं भी तैयार कर ली जाती हैं.
मकर संक्रान्ति पर कमल जोशी के भकार से काले कौव्वा
पुराने समय में इस दिन रात भर जागकर आग के चारों ओर लोकगीत व लोकनृत्य आयोजित किये जाते थे. रात भर जागकर अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में आस-पास की नदी, नौलों व गधेरों में नहाने के लिए निकल पड़ने की परंपरा हुआ करती थी. रात्रि जागरण की यह परंपरा अब लुप्त हो चुकी है लेकिन सुबह स्नान करने की परंपरा आज भी कायम है. इस दिन उत्तराखण्ड की सभी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में लोग स्नान के लिए जुटते हैं. कई नदियों के तट पर ऐतिहासिक महत्त्व के मेले भी लगा करते हैं.
स्नान करने के बाद घरों में पकवान बनना शुरू हो जाते हैं. मसांत में बनाये गए घुघुतों को सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है. घुघुतों को घर, आंगन, छत की ऊंची दीवारों पर कौवों के खाने के लिए रख दिया जाता है. इसके बाद बच्चे जोर-जोर से ‘काले कौव्वा का-ले, घुघुति माला खाले!’ की आवाज लगाकर उन्हें बुलाते हैं. बच्चे मनगढ़ंत तुकबंदियां बोलकर कौवों से तोहफे भी मांगते हैं.
उत्तराखण्ड का लोकपर्व उत्तरायणी
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