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महाभारत के वनपर्व में उत्तराखंड

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यह बात कोई नहीं जानता कि उत्तराखंड में तीर्थ यात्रा कब से चल रही हैं. धर्मशास्त्र, पुराण आदि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संभवतः सृष्टि के प्रारंभ से ही यहां तीर्थों की कल्पना की गयी है. बौधायन स्मृति, मनु स्मृति, वशिष्ठ स्मृति और वृहद पाराशरीय स्मृति आदि में इस क्षेत्र को सृष्टि के पवित्र खण्डों में गिना गया है. व्यासस्मृति और शंखस्मृति में बड़े साफ शब्दों में हरिद्वार, केदार, भृगुतुंग आदि की महिमा का उल्लेख है.  
(Uttarakhand in Mahabharat)

उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ के चारों युगों के नाम का उल्लेख स्कन्दपुराण में है. स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग में इसका नाम मुक्तिप्रदा, त्रेतायुग में योग सिद्धिदा, द्वापर में विशाला और कलयुग में बदरिकाश्रम है –

कृते मुक्तिप्रदा प्रोक्ता त्रेतायां योग सिद्धिदा
विशाला द्वापरे प्रोक्ता कलौ बदरिकाश्रमः         

ब्रह्म पुराण, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण, शिव पुराण, अग्नि पुराण, मार्कण्डेय पुराण, पद्म पुराण, बारह पुराण सभी में उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों पर खूब जानकारी है. मान्यता है कि भगवान राम ने उत्तराखंड यात्रा के समय श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मंदिर में शिव की आराधना हेतु एक सहस्त्र कमल पुष्प अर्पित किये.
(Uttarakhand in Mahabharat)

महाभारत के वन पर्व में पांडवों की नंदादेवी की यात्रा का वर्णन है. कनखल से बदरिकाश्रम तक की यात्रा का विशद वर्णन वन पर्व के 139वें अध्याय में है. वन पर्व के इस अध्याय में लोमस ऋषि कहते हैं –

युधिष्ठिर, ये कनखल की पर्वत मालायें हैं. जो ऋषियों को बहुत प्रिय लगती है. यह महानदी गंगाजी सुशोभित हो रही हैं. इस गंगा में स्नान करके तुम लोग पापों से मुक्त हो जाओगे.

भरतनन्दन, अब तुम उशीरध्वज, मैनाक, श्वैत और कालशैल नामक पर्वतों को लांघकर आगे बढ़ आओ. देखो! गंगाजी सात धाराओं में सुशोभित हो रही हैं. यह रजोगुण रहित पुण्य तीर्थ है, जहाँ सदा अग्नि-देव प्रज्ज्वलित रहते हैं. यह देवताओं की क्रीड़ा स्थली है जो उनके वरण चिन्हों से अंकित हैं. एकाग्रचित होने पर तुम्हें इसका भी दर्शन होगा.

कुन्तीनन्दन, इसके पश्चात् हम श्वैतगिरी तथा मन्दराचल पर्वत में प्रवेश करेंगे, जहां यक्ष और यक्षराज कुबेर का निवास है. राजन! यहाँ तीव्र गति से चलने वाले अट्ठासी हजार गन्धर्व और उनसे चौगुने किन्नर तथा यक्ष रहते हैं. उनके रूप एवं आकृति अनेक प्रकार की हैं. राजन, उधर छः योजन ऊंचा कैलास पर्वत है, जहाँ देवता आया करते हैं. उसी के निकट विशालापुरी अर्थात् बदरिकाश्रम तीर्थ है.
(Uttarakhand in Mahabharat)

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