आज उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला है. आज की सुबह हरेला काटे जाने के बाद सबसे पहले अपने इष्टदेव के मंदिर में चढ़ता है साथ में चढ़ते हैं पारम्परिक पकवान. उसके बाद घर के बुजुर्ग हरेला लगाने के शुरुआत करते हैं. घर के बड़े अपने से छोटों को पाँव से सिर की तरफ हरेला लगाते हुए उसे आशीर्वचन देते हैं. उनके जीवन में हमेशा हरियाली की कामना करते हुये कहते हैं
(Uttarakhand Harela Festival 2021)
लाग हरैला, लाग बग्वाली
जी रया, जागि रया
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया
साल का पहला त्योहार होने के कारण चौमास में मनाये जाने वाले हरेला को पहाड़ी खूब धूम-धाम से मनाते हैं. इस दिन सुबह से ही घरों में चहल-पहल रहती है. पौं फटने के साथ ही पहाड़ों में आज पारम्परिक पकवानों की सुगंध बिखरने लगती है. आज के दिन सेल, पूरी, खीर आदि पकवान बनाये जाते हैं.
आज के दिन सभी पहाड़ी कोई न कोई पेड़ जरुर लगाते हैं. पेड़ लगाने को हरेला देना कहा जाता है. माना जाता है कि आज के दिन लगाया गया पेड़ सूखता नहीं है. इसलिए पहाड़ी आज अपने खेतों की मेड़ों पर कोई न कोई पेड़ जरुर डोब आते हैं.
(Uttarakhand Harela Festival 2021)
कुछ साल पहले तक घर से दूर रहने वाले प्रवासी पहाड़ी और फ़ौजी भाई अन्तर्देशी लिफाफों में हरेले की चिठ्ठी का बेसब्री से इंतजार करते थे. भारतीय डाक की मोहर के साथ लगे पीले पिठ्या वाले अन्तर्देशी लिफाफों के भीतर रखी उस पीली घास की पत्तियों का मोह और महत्व केवल एक पहाड़ी समझ सकता है.
हमारे लोकपर्व कहीं गुजरे जमाने की बातें रहकर महज सरकारी छुट्टी के औपचारिक लिफ़ाफे में न बंद हो जायें इसके लिये हमें खूब धूम-धाम से इन्हें मनाना चाहिये. यह शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिये.
(Uttarakhand Harela Festival 2021)
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