उत्तराखण्ड को ग्रीन बोनस दिये जाने के संबंध में 15वें केंद्रीय वित्त आयोग ने ग्रीन बोनस पर रुख साफ नहीं किया है. ग्रीन बोनस के सवाल पर आयोग अध्यक्ष ने स्पष्ट आश्वासन देने की जगह कहा कि इस मुद्दे पर आयोग अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है. 70 फीसद से ज्यादा वन क्षेत्र और बर्फ से ढका बड़ा हिमालयी क्षेत्र व ग्लेशियरों के चलते हिमालयी पारिस्थितिकी संतुलन को कायम रखने व पर्यावरण सुरक्षा के रूप में उत्तराखंड देश को तकरीबन तीन लाख करोड़ की सेवाएं मुहैया करा रहा है.
आयोग ने राज्य के पर्यावरण व पारिस्थितिकीय संतुलन में योगदान को माना और सराहा लेकिन इस योगदान के लिए ग्रीन बोनस देने को लेकर आयोग का रुख साफ नहीं है. आयोग अध्यक्ष एनके सिंह ने माना कि ग्रीन बोनस पर निर्णय लेने और किस प्रणाली के तहत इसका आकलन किए जाय, को लेकर आयोग अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच नहीं पाया है.
उत्तराखण्ड पिछले कई सालों से ग्रीन बोनस की मांग कर रहा है 14 वें वित्त आयोग ने उत्तराखण्ड को किये जाने वाले वित्तीय हस्तारण के संबंध में केवल वन क्षेत्रफल को ही आधार माना था जिसका अर्थ है कि बुग्याल, हिमाच्छादित क्षेत्र, ग्लेशियर आदि को शामिल नहीं किया गया. यह सभी को ज्ञात है कि पर्यावरणीय महत्व के कारण इन क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाकलाप नहीं हो सकते इसलिए राज्य सरकार वित्तीय हस्तांतरण के संबंध में इस क्षेत्र को शामिल किये जाने को कहती रही है. वर्तमान मुख्यमंत्री ने इस संबंध में वित्त आयोग से कहा कि हिमाच्छादित भू-भाग एवं बुग्याल पूरे उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में जनमानस, पशु और कृषि के लिए जल की आपूर्ति करते हैं, इसलिए इनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. 15वें वित्त आयोग की टीम से उत्त्तराखंड के वित्त मंत्री ने राज्य की विषम परिस्थितियों, निर्माण कार्यो में अधिक लागत, आपदा के प्रति राज्य की संवेदनशीलता को भी आयोग के समक्ष रखा.
ग्रीन बोनस को लेकर एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि यह अनुदान केंद्र द्वारा राज्य सरकार को देगी जिसे राज्य सरकार खर्च कहाँ करेगी यह तय नहीं है. इस पर एक लम्बे समय से सुझाव यह दिया जा रहा है कि केंद्र सरकार यह अनुदान सीधा संबंधित पंचायत स्तर पर दे ताकि पंचायतों को अधिक से अधिक पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. एक अन्य सुझाव यह भी है कि ग्रीन बोनस को धरातल की स्थिति से जोड़कर दिया जा सकता है जैसे किसी वर्ष में पंचायत क्षेत्र में वन भूमि बढ़ती है तो उसे उस वर्ष पर्यावरण बोनस बड़ा कर दिया जाय ठीक इसी तरह से पंचायत क्षेत्र में वन भूमि में कमी होने पर उसके ग्रीन बोनस में कटौती की जाये.
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