गोरखों की कुलदेवी मां उल्का देवी को मानते हुए पिथौरागढ़ में मां उल्का देवी मंदिर की स्थापना की थी. गोरखों ने अपने समय में इसकी स्थापना राज्य के पर्वत शिखर पर की थी. आज यह मंदिर पिथौरागढ़ मुख्यालय से एक किमी की दूरी पर चंडाक जाने वाली सड़क पर स्थित है.
इस मंदिर का जीर्णोद्धार बाद में सेरा गांव के मेहता परिवार द्वारा किया गया था. इस मंदिर में पांडे गांव के पुनेठा पुजारी नियुक्त किये गये. आज भी हर दिन यहां पुजारी सुबह शाम दीया जलाते हैं.
कहा जाता है कि कैप्टन शेरसिंह मेहता पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मंदिर के वर्तमान स्वरूप के लिये सबसे पहले दान किया. कैप्टन शेर सिंह मेहता ने संतान प्राप्ति का वर मांगा था और मां उल्का देवी के समक्ष प्रण लिया था कि सन्तान प्राप्ति होने पर यहां भव्य मंदिर का निर्माण करेंगे.
1960 के में जिला अधिकारी ने यहां एक धर्मशाला का निर्माण कराया था. यह धर्मशाला जन मिलन केंद्र के रूप में बनायी गयी थी. वर्तमान में यह जन मिलन केंद्र पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त हो गया है.
चैत के महिने लगने वाले चैतोल के उत्सव पर यहां विशेष उत्सव होता है. इस मंदिर के पिथौरागढ़ शहर में बहुत मान्यता है. यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है.
चंडाक रोड पर स्थित इस मंदिर के मुख्य मंदिर पर दोनों और शेर की मूर्तियां लगीं हैं. सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर मां का सुंदर देवालय है. इस मंदिर में लोग फूल इत्यादि के अतिरिक्त घंटी भी चढ़ाते हैं. मंदिर में अनेक लगी हुई घंटियां देखने को मिलती हैं जिनपर दान करने वालों के नाम भी गुदे रहते हैं.
मंदिर के परिवेश से पिथौरागढ़ शहर की शानदार छवि दिखती है. यहां बहुत से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त के देखने के लिए आते हैं.
पर्यटन दृष्टि से यह मंदिर पिथौरागढ़ का एक महत्त्वपूर्ण व्यू पाइंट माना जाता है. इसी वजह से यह फोटोग्राफी के शौक़ीन लोगों की एक पंसदीदा जगह भी है.
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पिथौरागढ़ के रहने वाले कार्तिक भाटिया ट्रेकिंग के शौक़ीन है. फिलहाल पिथौरागढ़ में कालेज पढ़ रहे कार्तिक ने कम उम्र में ही कुमाऊं के बहुत से ट्रेक अकेले पूरे किये हैं.
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