(पोस्ट को रुचिता तिवारी की आवाज़ में सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें)
मेलोडेलिशियस-11
ये ऑल इंडिया रेडियो नहीं है. ये ज़ेहन की आवाज़ है. काउंट डाउन नहीं है ये कोई. हारमोनियम की ‘कीज़’ की तरह कुछ गाने काले-सफेद से मेरे अंदर बैठ गए हैं. यूं लगता है कि साँसों की आवाजाही पर ये तरंगित हो उठते हैं. कभी काली पट्टी दब जाती है कभी सफेद. इन गानों को याद करना नहीं पड़ता बस उन पट्टियों को छेड़ना भर पड़ता है.
गुलज़ार साहब सच ही कहते हैं-
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
बारिश की दो दिनों से लगातार चलती ये टप-टप मुझे एक बहुत पुराने और दुर्लभ तराने को सुनने के लिए आकर्षित कर रही है जिसे एक शहद भरी, दक्ष आवाज़ ने गाया है जो इस उत्कृष्ट रचना को निभा सकने में पूरी तरह से समर्थ थी.
हाल-ए-दिल उनको सुनाना था
सुनाया ना गया, सुनाया ना गया
फिल्म ‘फ़रियाद’ 1964 के इस गाने के बोल लिखे हैं किदार नाथ शर्मा ने जिन्हें केदार शर्मा के नाम से जाना जाता था और धुन बनाई है स्नेहल भटकर ने और गाया है सदा सुरीली सुमन कल्याणपुर ने.
जो ज़ुबाँ पर मुझे लाना था
वो लाया ना गया, वो लाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको ...
ये गाना जेब रहमान और किदार शर्मा के पुत्र अशोक शर्मा पर फिल्माया गया है. केदार शर्मा के ही अनुयायी स्नेहल भटकर का सुरीला संगीत और मो. रफ़ी, सुमन कल्याणपुर, मुबारक़ बेगम और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गजों के गाए बेहतरीन गानों के बावजूद फिल्म नहीं चली. लेकिन मीठी आवाज़ की धनी सुमन कल्याणपुर के गाए सबसे अच्छे गानों में से एक ये अनोखा गीत मेरे अंदर हमेशा एक तार छेड़ देता है और मैं उनकी आवाज़ की मधुरता में भीग जाती हूँ.
खेलती आँख मिचोली रही नज़रें अपनी
जिनको पलकों में छुपाना था
छुपाया ना गया, छुपाया ना गया
सुमन कल्याणपुर, जिनका वास्तविक नाम सुमन हेमाडे है का जन्म ढाका, बांग्लादेश में एक मंगलौरी परिवार में हुआ था जो इनकी छह बरस की उम्र होते-होते बॉम्बे आ गया. यहीं उनकी संगीत की शिक्षा शुरू हुई. वो अक्सर पारिवारिक या स्कूल के कार्यक्रमों में नूरजहाँ के गाए गानों की नक़ल किया करती थीं. ऐसे ही किसी आयोजन पर प्रभात फिल्म कम्पनी के संगीतकार और आल इंडिया रेडियो में कार्यरत केशवराव भोले जिन्हें आधुनिक मराठी संगीत का अगुआ समझा जाता था ने उन्हें गाते सुना. उनकी वजह से ही 1952 में आकाशवाणी पर पहली बार सार्वजनिक रूप से गाने का मौक़ा मिला. और इस परफोर्मेंस की वजह से ही 1953 में रिलीज़ हुई मराठी फिल्म `शुक्राची चांदनी से’ में पार्श्व गायन की शुरुआत हुई.
स्कूल स्टाफ और बच्चों द्वारा प्रायोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में श्रोता के तौर पर मौजूद मशहूर गायक तलत महमूद और मोहम्मद शफी मात्र सत्रह बरस की कम उम्र सुमन के बेहतरीन गायन से अत्यधिक प्रभावित हुए. तलत साहब ने मो. शफी को उनकी फिल्मों में सुमन को गाने का मौक़ा दिए जाने के लिए आग्रह किया और साथ ही साथ उनके लिए रिकॉर्डिंग कम्पनी एच एम वी से भी सिफारिश कर दी जहां वो अपनी ग़ज़लें रिकॉर्ड करवाते थे. नौशाद के सहायक रह चुके शफी साहब खुद उनकी गायकी से इतने प्रभावित हुए कि वहीं मौके पर ही अपनी अगली फिल्म ‘मंगू’ में गाने के लिए कॉन्ट्रेक्ट पेश कर दिया. इस तरह से सुमन ने पहला पार्श्वगीत फिल्म मंगू के लिए एक लोरी `कोई पुकारे धीरे से तुझे’ रिकॉर्ड करवाया. इस फिल्म के नायक-निर्माता शेख़ मुख्तार `शुक्राची चांदनी से’ के गानों से पहले से ही प्रभावित रहे थे उन्होंने सुमन कल्याणपुर को फिल्म के तीन गाने दिए. हालांकि दुर्भाग्य से किसी कारणवश इस फिल्म के संगीतकार मो. शफी को हटना पड़ा और उनकी जगह ओ.पी. नय्यर फिल्म के संगीतकार हो गए, जिन्होंने सुमन कल्याणपुर की सिर्फ एक लोरी को ही फिल्म में रक्खा. ये और बात है कि बदले में उनसे फिल्म आरपार के एक गाने का एक भाग और कोरस गवाया. मो. रफ़ी और गीता दत्त के साथ सुमन ने भी इस गाने का एक स्टैंजा गाया.
मोहब्बत कर लो जी भर लो अजी किसने रोका है
इस तरह से ये गाना युगलगीत नहीं बल्कि त्रयीगीत या ट्राईएड है जिसमें सुमन ने दूसरा स्टैंजा गाया है-
मुहब्बत क्या है सुनो जी हमसे
सब कुछ है इसी के दम से
और दूसरे स्टैंजा से आगे-
शिक़ायत कर लो जी भर लो अजी किसने रोका है
हो सके तो दुनिया छोड़ दो दुनिया भी धोखा है
गीता दत्त और सुमन कल्याणपुर ने मिलकर गाया है. आरपार 1954 में रिलीज़ हुई संभवतः इसके संगीत की सफलता ही वो कारण रहा होगा कि फिल्म मंगू जो इसके छह-आठ महीने बाद रिलीज़ होनी थी उसमें मो. शफी की जगह ओ पी नय्यर को संगीतकार बनाया गया. इसलिए आरपार का गाना `मोहब्बत कर लो जी भर लो अजी किसने रोका है’ सुमन कल्याणपुर का पहला रिलीज़ गाना बना. एक रोचक बात और. फिल्म आरपार के रिकॉर्ड पर सुमन कल्याणपुर का नाम नहीं आया. बताते हैं कि उनके माता-पिता ने ओ पी नय्यर से नाम न देने के लिए निवेदन किया सम्भवतः इसलिए क्योंकि उस वक्त तक सुमन स्कूल जाने वाली छात्रा थीं. तो इस तरह से फिल्म मंगू के गाने को ही सुमन कल्याणपुर के पहले रिकॉर्डेड एकल गीत का श्रेय जाता है.
जिन्हें ये जानने में दिलचस्पी है कि ओ पी नय्यर के संगीत के साथ लता मंगेशकर की आवाज़ किस तरह से लगती, क्योंकि दोनों ने अपने पूरे कैरियर में एक भी गाना साथ नहीं बनाया है, तो इस आरपार के गाने में सुमन कल्याणपुर की आवाज़ को सुनें. हूबहू लता की आवाज़. अगर आवाजों का प्रतिबिम्ब बनता हो तो ऐसा ही होता होगा. मज़े की बात ये कि सुमन कल्याणपुर ने भी इस गाने के अतिरिक्त कोई और गाना ओ पी नय्यर के साथ रिकॉर्ड नहीं किया.
सुमन ने अमूमन शास्त्रीय संगीत वाले गाने नहीं गाए. अपवाद के तौर पर अब्दुल रहमान खान के कहने पर एच एम वी के लिए दो ठुमरियां ज़रूर गाईं. शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में शास्त्रीय संगीत पर आधारित मो. रफ़ी साहब के साथ गाया इनका फिल्म `सांझ और सवेरा’ का वो गाना याद कीजिये जिसमें महमूद और शोभा खोटे कॉमिक सिचुएशन में हैं.
अजहूँ न आए बालमा, सावन बीता जाए
ये कहीं से भी क्लासिकल गानों से कमतर नहीं है. इसी तरह से शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फिल्म रेशम की डोरी 1974 के उनके गाए रक्षाबंधन के गाने को कौन भूल सकता है. इसे सुनकर मेरी आँखे हमेशा ही नम हो जाती हैं क्योंकि इसकी मिठास में बचपन के अल्हड़ दिन और भाई की याद, एक साथ आ जाती है-
बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है
प्यार के दो तार से, सँसार बाँधा है
रेशम की डोरी से
रेशम की डोरी से सँसार बाँधा है
और इस अमर गाने को कौन भूल सकता है-
मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा
होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर
मेरे महबूब न जा ...
नौशेर इंजीनियर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नूरमहल’ 1965 के लिए गीतकार सबा अफगानी और संगीतकार जानी बाबू कव्वाल एक रहस्यमयी रोमांचक गाना बनाना चाहते थे और देखिये! वो वाकई सफल रहे! इस गाने में मुख्य भूमिकाओं में जगदीप और चित्रा हैं. इसकी अच्छी लिखाई, अच्छी धुन और उतने ही अच्छे गायन की वजह से एक बहुत कम पहचान की अभिनेत्री पर फिल्माए जाने के बाद भी ये गाना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ. ये गाना सही मायनों में गाने में उस प्रभाव का ध्वजवाहक है जिसे `सुमन इफेक्ट’ कह सकते हैं, और वस्तुतः यही वो गाना है जिसने मंगेशकर बहनों के प्रभुत्व के बावजूद सुमन कल्याणपुर को स्थापित किया, यही वो गाना है जो आज भी मंगेशकर बहनों की गायकी के बरक्स सुमन कल्याणपुर की गायकी के महत्व को रेखांकित करता है.
सुमन युगल गीतों के लिए ज़्यादा पहचानी गईं, विशेष तौर पर रफ़ी के साथ गाए डूएट्स के लिए, जिनमें से कुछ तो अत्यधिक लोकप्रिय हुए-
ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे
करना था इनकार, मगर इक़रार तुम्हीं से कर बैठे
अन्ताक्षरी में बहुधा गाया जाने वाले फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ के इस गाने का संगीत कल्याण जी आनंद जी द्वारा बनाया गया है और ये गाना शशि कपूर और नंदा पर फिल्माया गया है. युगल गीतों की सफलता का राज़ गाने वालों की आवाजों के बीच संतुलन, आपसी समन्वय और कैसे वो एक दूसरे के पूरक बनते हैं, इन बातों पर निर्भर करता है. सुमन कल्याणपुर अपने साथी गायक की आवाज़ के साथ न केवल बढ़िया तालमेल बिठाती हैं बल्कि हर गाने में कुछ अलहदा, सुंदर और चिरस्थाई प्रभाव जोड़ देती हैं.
पर्वतों के पेड़ो पर शाम का बसेरा है
सुरमई उजाला है, चम्पई अंधेरा है
रफ़ी के साथ गाया ये गाना फिल्म ‘शगुन’ (1964) का है जिसका संगीत खय्याम ने दिया था. राग पहाड़ी पर आधारित इस गाने का फिल्मांकन कमलजीत और वहीदा रहमान के ऊपर सुरम्य पहाड़ी स्थल नैनीताल में हुआ है. नैनीताल की खूबसूरत वादियों से इश्क़ सा करता ये गाना मुझे नोस्टाल्जिया से भर देता है क्योंकि नैनीताल मेरा घर है.
साठ के दशक में जब किन्ही कारणों से लता मंगेशकर और मो. रफ़ी साथ नहीं गा रहे थे, उस दौरान सुमन कल्याणपुर ने रफ़ी के साथ बहुत से शानदार गाने गाए. लेकिन उन्हें सुनकर कोई बावला ही कहेगा कि दोनों की जुगलबन्दी के लिए संगीतकारों के सामने सिर्फ यही एक कारण रहा होगा.
जहां उनके रफ़ी के साथ गाए ज्यादातर गाने लक्ष्मी-प्यारे या शंकर-जयकिशन अंदाज़ के चुलबुली रंगत के हैं वहीं बहुत से गाने मधुर और भावपूर्ण भी हैं. सुचित्रा सेन और धर्मेन्द्र द्वारा अभिनीत राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त बंगाली फिल्म उत्तर फागुनी 1963 की हिन्दी रीमेक ‘ममता’ (1966) के गाने `रहे न रहे हम’ के दो वर्ज़न हैं. एक लता मंगेशकर का अकेला गाया हुआ और दूसरा रफ़ी और सुमन कल्याणपुर की जुगलबन्दी. लता के गाने के बाद जब ये समझा जाता हो, कि इससे बेहतर तो दूर, आस-पास भी किसी का पहुंचना सम्भव नहीं, ऐसे में इस डुएट में सुमन कल्याणपुर न केवल इस गाने को अपना बना लेती हैं, बल्कि अपनी अलहदा छाप भी छोड देती हैं. मजरूह के लिखे रूहानी बोल और रोशन के संगीत से रौशन इस गाने के दोनों ही वर्ज़न, आज भी बनके सबा महक रहे हैं.
है खूबसूरत ये नज़ारे
ये बहारें हमारे दम-क़दम से
ज़िंदा हुई है फिर जहाँ में
आज इश्क़-ओ-वफ़ा की रस्म हम से
यूँही इस चमन, यूँही इस चमन की
ज़ीनत रहेंगे, बन के कली बन के सबा बाग़-ए-वफ़ा में
रहें ना रहें हम
मुकेश के साथ उनके युगल गीत बहुत मीठे, कानों में शहद घोलते हुए से हैं-
चुरा ले ना तुमको ये मौसम सुहाना
खुली वादियों में अकेली न जाना
लुभाता है मुझको ये मौसम सुहाना
मैं जाउंगी तुम मेरे पीछे न आना
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि तीसरी कसम फिल्म का गाना –
दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समायी
काहे को दुनियाँ बनायी, तूने काहे को दुनियाँ बनायी
– दरअसल एक डुएट सॉन्ग के रूप में रिकॉर्ड किया गया था और फिल्म में मुकेश के गाए तीन अंतरे के बाद आख़िरी एक अंतरा सुमन कल्याणपुर ने गाया है. जाने क्यों इसे रिकॉर्ड में रिलीज़ नहीं किया गया. जो लोग इस स्टैंजा के बारे में याद करते हैं, उनमें से बहुत सम्भव है कि लोग इसे लता का गाया समझें क्योंकि फिल्म में लता और आशा के बहुत अच्छे एकल गीत हैं.
साठ के दशक में सुमन कल्याणपुर और शंकर जयकिशन जोड़ी ने साथ-साथ बहुत से हिट गाने हमें दिए. ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म सांझ और सवेरा के गाने `चंद कमल मेरे चंद कमल’ से सुमन हमें बाँध ही लेती हैं. शानदार ओर्केस्ट्रा से सजे इस गाने से एक संगीतकार के रूप में इस जोड़ी के बारे में तो पता चलता ही है, ये गाना एक गायिका के रूप में सुमन कल्याणपुर के बारे में भी बहुत कुछ कहता है क्योंकि बहुत ऊंचे ऑक्टेव का होने की वजह से इसे निभाना बहुत मुश्किल है. मो. रफी या महेंद्र कपूर जैसे गायकों तक के लिए इस गाने की स्केल ऊंची ही प्रतीत होती है लेकिन सुमन कल्याणपुर जिस सहजता से इसे गा ले जाती हैं उससे उनकी रेंज और काबिलियत का मुज़ाहिरा होता है.
यह अत्यंत दुखद भी है कि इतनी अकूत प्रतिभा से भरी इस गायिका को उसका उचित देय नहीं मिल सका. लता की आवाज़ के साथ उनकी आवाज़ की समानता ही एक तरह से उनका अभिशाप भी बन गई. हालांकि स्वयं सुमन कल्याणपुर इससे बेफिक्र रहीं और संगीत की दुनिया में अपने बनाए स्थान में खुश रहीं.
ताजगी उनकी आवाज़ की मूलभूत विशेषता है. मीठी ताज़ी हवा की तरह उनकी आवाज़ कानों की प्यास बुझाती भी है, बढ़ाती भी है. ऐसा लगता है जैसे वो अपने गानों को बहुत सुंदर अदायगी के चटक रंगों से पेंट कर देती हैं और जिसके ऊपर आंतरिक भावनाओं का चमकीला लेप सा लगा होता है.
उनकी अदायगी ही है कि फिल्म ‘भीगी रात’ 1965 का ये डुएट रिलीज़ होते ही हरसूं चर्चा का विषय बन गया-
ऐसे तो न देखो के बहक जाएं कहीं हम
आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हम
हाय, ऐसे न कहो बात के मर जाएं यहीं हम
आखिर को इक इनसां हैं फ़रिश्ता तो नहीं हम
जिस अदा से सुमन इस गाने में ‘हाय’ कहती हैं कौन संगीत प्रेमी होगा जो मर न मिटे?
कहना गलत नहीं है कि गायकी में सुमन और लता, दोनों को ही ईश्वरीय वरदान प्राप्त हुआ, लेकिन शोहरत और सम्मान लता जी को ज़्यादा मिला. उनके बहुत से गाने लता की स्टाइल के हैं और काबिलियत में अगर उन्हें श्रेष्ठ नहीं, तो लता से कमतर भी किसी हालत में नहीं कहा जा सकता. उनकी गायकी के अंदाज़ को लता के अंदाज़ से अलगाना दो कारणों से मुश्किल हो जाता है. पहला, शायद वो स्वयं अचेतन में, अनायास ही लता की नक़ल किया करती थीं और दूसरा ये कि संगीतकार भी उन्हें लता के विकल्प के रूप में देखा करते थे. हालांकि लता की आवाज़ के साथ साम्य के बारे में बात करते हुए वो खुद बहुत असहज हो उठती हैं. एक इंटरव्यू में इस विषय पर बात करते हुए उन्होंने बताया `मैं उनसे बहुत प्रभावित थी. अपने कॉलेज के दिनों में उनके ही गाने गाया करती थी. मेरी आवाज़ पतली और नाज़ुक थी. मैं क्या करती?’ इसके अलावा लोगों को हमेशा दोनों की आवाज़ को लेकर एक भ्रान्ति बनी रही क्योंकि उन दिनों रेडियो सीलोन बिना नाम बताए गाने रिले करता था. यहाँ तक कि रेकॉर्ड्स पर भी अक्सर गलत नाम छप गए. इससे भ्रान्ति बनी रही. हालांकि जानकारों का मानना है कि अत्यधिक साम्यता के बावजूद सुमन कल्याणपुरी के अंदर संगीत की निर्दोष अनुभूति, गहरी समझ और सुरों का बारीक ज्ञान उनके वैशिष्ट्य के प्रतीक चिन्ह या हॉलमार्क हैं.
उनमें से एक गाना जिसने सुमन को लता की छाया से बाहर आकर म्यूज़िक इंडस्ट्री में स्थान पक्का करने की सहूलियत दी वो है-
आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर (अच्छा?)
सबको मालूम है और सबको खबर हो गई (तो क्या?)
भप्पी सोनी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ 1968 का ये गाना जिसे लिखा हसरत जयपुरी ने है और संगीत दिया है शंकर जयकिशन ने, शम्मी कपूर और मुमताज़ की जोशीली जोड़ी, उनके शानदार डांस स्टेप, मुमताज़ की आइकोनिक नारंगी साड़ी-ब्लाउज़ जिसे भानु अथैया ने डिज़ाइन किया था और बातचीत के खिलंदड़ अंदाज़ की गायकी के लिए जाना जाता है. सुमन की कोई भी कहानी इस गाने के बिना पूरी नहीं हो सकती क्योंकि गाना बनाने और फिल्माने के लगभग सभी पहलुओं पर ये पार्टी सॉंग या डांस नम्बर खरा उतरता है.
अपनी अलहदा मिठास और मधुर आवाज़, जो हमेशा हमारे अन्दर गूंजती रहेगी, की वजह से सुमन हमारी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित हो चुकी हैं. उनके लिए हमारे दिल हमेशा ‘अप्रैल फूल’ 1964 का ये गाना गुनगुनाते रहेंगे-
तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगे
कि दिल बन के दिल में धड़कते रहेंगे
हमारा आज का गाना सुमन कल्याणपुर की अद्भुद गायकी तो दिखाता ही है उन्हें अपनी समकालीन गायिकाओ के समकक्ष स्थापित भी करता है.
एक ही वार में हाथों से जिगर छीन लिया
हाय जिस दिल को बचाना था
बचाया ना गया, बचाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको ...
मुझे लिरिक्स के साथ इस गाने की धुन का कंट्रास्ट खींचता है. कोई एक चीज़ थी जिसका इज़हार होना था, प्रेमी को बताया जाना था, एक तरह से पहली बार ये बात उनके सामने खुलनी थी कि प्रेमिका उनसे कितना प्यार करती है, हाल-ए-दिल उनको सुनाना था और ये हो न सका. उन्हें जताया न जा सका, बताया न जा सका. इस बताए न जाने को किस तरह से सुमन कल्याणपुर बुलंद आवाज़ में ऐलान सा करते हुए कहती हैं- सुनाया ना गया, सुनाया ना गया! ऐसा ही कंट्रास्ट इस गाने के फिल्मांकन में भी दिखता है. अँधेरे और उजाले का कंट्रास्ट. ये कंट्रास्ट उसी तरह का है कि जिससे प्रेम करने से आप रह न पाएं, उसी से कहने से रह जाएं. ये वही कंट्रास्ट है जो अहमद नदीम कासमी के इस शेर में उभर आता है-
तुझ से किस तरह मैं इज़हारे तमन्ना करता
लफ्ज़ सूझा तो मानी ने बगावत कर दी
एक और अनोखी बात इस गाने के साथ है. गाने का म्यूज़िक मिसरे को बीच से तोड़ता है. एक ही लाइन में `जो ज़ुबाँ पर मुझे लाना था’ दो बार कहने के बाद अचानक ठक करके इंस्ट्रूमेंट बंद हो जाते हैं और सुर ऊंचा हो जाता है, `वो लाया ना गया, वो लाया ना गया.’ ऐसा लगता है अचानक गाना बदल गया हो. लेकिन सौन्दर्य इसी बात में है, कि दूसरे मिसरे के पहले ताल पर लय जब लौटती है तो वापस उसी धज में होती है. मुझे लगता है इस गाने को अगर आम गानों की तरह एक ही सिलसिले में गाया गया होता तो वो बात न होती जो अब है.
तो अगर आप भी चाहते हैं कि हिन्दी फिल्म गीतों के स्वर्ण काल की कोई आवाज़, आपके कहे-अनकहे प्रेम की आवाज़ बने, तो सुमन कल्याणपुर की मीठी आवाज़ में, न सुनाकर भी हाल-ए-दिल उनको सुनाने की अदा देखिये, जो बात जुबां पर लानी थी उसे न लाकर भी लाना देखिये और देखिये कि कैसे बहुत बचाने के बाद भी प्यार में दिल को बचाना मुश्किल हो जाता है.
हाल-ए-दिल उनको सुनाना था -२
सुनाया ना गया, सुनाया ना गया
जो ज़ुबाँ पर मुझे लाना था -२
वो लाया ना गया, वो लाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको ...
प्यार में सीने पे सर रख के तो दिल क़दमों पर -२
आप को अपना बनाना था -२
बनाया ना गया, बनाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको ...
खेलती आँख मिचोली रही नज़रें अपनी -२
जिनको पलकों में छुपाना था -२
छुपाया ना गया, छुपाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको ...
एक ही वार में हाथों से जिगर छीन लिया -२
हाय जिस दिल को बचाना था -२
बचाया ना गया, बचाया ना गया
हाल-ए-दिल उनको
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रुचिता तिवारी/ अमित श्रीवास्तव
यह कॉलम अमित श्रीवास्तव और रुचिता तिवारी की संगीतमय जुगलबंदी है. मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा यह लेख रुचिता तिवारी द्वारा लिखा गया है. इस लेख का अनुवाद अमित श्रीवास्तव द्वारा काफल ट्री के पाठकों के लिये विशेष रूप से किया गया है. संगीत और पेंटिंग में रुचि रखने वाली रुचिता तिवारी उत्तराखंड सरकार के वित्त सेवा विभाग में कार्यरत हैं.
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता). काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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