‘मैने प्यार किया’ के प्रोड्यूसर बड़जात्या को कौन भूल सकता है. वे निर्देशक सूरज बड़जात्या के पिता थे. बड़जात्या की फिल्मों के बारे मे यह आम राय कायम होकर रह गई कि, वे रामचरितमानस के आदर्शों को आधार मानकर फिल्म-निर्माण करते हैं. रामकथा उनकी आदर्श कथा रही- संयुक्त परिवार, आदर्श पिता, आदर्श पुत्र, आदर्श बहू. कनिष्ठ भ्राता के अग्रज के प्रति दायित्व. पिता-पुत्र के परस्पर संबंध. एकदम आदर्श व्यवस्था. समवयस्क होने के बावजूद भाभी का देवर के प्रति मातृवत् स्नेह. देवर का भाभी के प्रति मातृत्व सम्मान.
मसाला फिल्मों के दौर में उन्होंने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि, पौर्वात्य उद्धरणों पर भी सिनमा बनाया जा सकता है, वो भी ऐसा कि, जो औरों पर भारी पड़े. दर्शकों को अपने करीब का लगे. अपनी संस्कृति सा लगे.
भाग्यश्री, उस फिल्म की ऐसी नायिका रही, जिसकी कामना उस दौर हर युवा ने अपने वायव्य संसार में किसी-न-किसी रूप में अवश्य की होगी. फ्रेंड्स की कैप पहने भाग्यश्री का वह दृश्य आज भी दर्शकों को याद है. कन्या का निर्धन पिता, किंतु अपार स्वाभिमानी. मैत्री में जीवन अर्पण करने की भावना रखनेवाला. स्वाभिमान को चोट पहुँचे, तो सर्वस्व दाँव पर लगानेवाला. स्मितहास्य मधुर वाणी बोलने वाली नायिका. अंत में सत्य की जय. सत्यमेव जयते.
‘हम आपके हैं कौन’ ‘नदिया के पार’ की रीमेक होने के बावजूद सफलता में उससे रंचमात्र भी पीछे नहीं रही. भाभी के किरदार को ‘रेणुका शहाणे’ ने यकायक ग्लोरिफाई करके रख दिया. फिर वही पौर्वात्य आदर्श. बड़ी बहू का स्मितहास्य. सरल, निर्मल और स्नेही स्वभाव. जिम्मेदारी वहन से लेकर परिवार को एकसूत्र में पिरोकर रखनेवाली आदर्श नारी. त्याग-बलिदान-समर्पण पर आधारित परिवार. लावण्यमयी साली (माधुरी दीक्षित). उस दौर में ऐसा कौन सा विवाह-समारोह रहा होगा, जिसमें ‘जूते दो पैसे लो…’ गीत न बजा हो.
कुल मिलाकर, बड़जात्या ने भारतीय परिवार की रस्मों को सहसा इवेंट बनाकर रख दिया. नोक-झोंक, मजाक और शरारत का सिलसिला फिल्म में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता था, चाहे वो समधी-समधन की चुहल हो या जीजा-साली-संवाद अथवा छोटे भाई का भाभी की छोटी बहन के प्रति गहन अनुराग. प्रथम दर्शन में ही उसके प्रति यकायक गंभीर हो जाना. ये रोजमर्रा के उदाहरण ओरिएंटल सोसायटी में बहुतायत में बिखरे पड़े रहते हैं. इन्हें सामने लाने का साहस बड़जात्या में रहा. इसीलिए ऑडिएंश ने उसे बखूबी कनेक्ट किया. खास बात यह थी कि, उनकी फिल्मों में प्रेम तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता था. साथ ही प्रेम नाम का नायक अनिवार्य रूप से मौजूद रहता था. पैरोडी आधारित अंत्याक्षरी भी संयुक्त परिवार के साथ प्रायः देखने को मिलती थी. इन फिल्मों में नायक की अग्नि परीक्षा की घड़ी और अंत में उसका बेबाक साबित होना दर्शकों को प्रभावित करता .अंत में सहमति और आशीर्वाद से सब समस्याओं का समाधान सर्वमान्य समाधान के रूप में देखने को मिलता रहा.
आलोक नाथ, मोहनीश बहल, रीमा लागू, सलमान खान और कई अन्य आर्टिस्ट उनकी फिल्मों में अक्सर देखने को मिल जाते थे. ‘हम साथ साथ हैं’ फिल्म भरे-पूरे परिवार की फिल्म थी. मैं प्रेम की दीवानी हूँ, प्रेम रतन धन पायो और विवाह उनकी प्रोड्यूस्ड फिल्मों में से रही. समीक्षकों द्वारा अक्सर उनकी फिल्मों को फेमिली ड्रामा कहकर रेखांकित किया गया, लेकिन इन फिल्मों में आमजन को भारतीय संस्कृति के ब्लॉकबस्टर दर्शन कराने में कभी चूक नहीं की. खास बात यह थी कि, उनकी अधिकांश फिल्मों के रोचक और रोमानी दृश्यों में राम-लक्ष्मण का संगीत अनिवार्य रूप से रिपीट देखने को मिलता था.
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ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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