तिलाड़ी काण्ड के अठ्ठासी बरस

30 मई उत्तराखंड के इतिहास में एक रक्तरंजित तारीख है. इसी दिन 1930 में तत्कालीन टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह ने रंवाई के तिलाड़ी के मैदान में अपना लोकल जलियांवाला बाग काण्ड रच डाला था. जंगलों पर अपने अधिकारों के लिए तिलाड़ी मैदान में जमा हुए सैकड़ों लोगों को राजा की फ़ौज ने तीन तरफ से घेर लिया. चौथी तरफ यमुना नदी अपने प्रचंड वेग से बहती है. बिना किसी चेतावनी के राजा की फ़ौज ने निहत्थे लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. कुछ गोलियों का शिकार हुए, कुछ ने बचने के लिए यमुना में छलांग लगा दी. वे नदी की तेज धारा में बह गए.

वनों पर अपने नैसर्गिक अधिकारों का दावा करने वालों को सबक सिखाने के लिए टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने अपने दीवान चक्रधर जुयाल के मार्फत यह लोमहर्षक हत्याकांड रचा. राजशाही के इस क्रूर दमन के कारण, सैकड़ों मारे गए और सैकड़ों शहीद हुए.कामरेड विद्यासागर नौटियाल का उपन्यास “ यमुना के बागी बेटे ” इस घटना का वृहद औपन्यासिक विवरण है.

“ओड़ाथली के डांडे” को नरेन्द्रनगर के रूप में बसाने के लिए, अन्य लोगों की तरह ही रवांई के लोगों को भी कैसे भूखे-प्यासे रह कर बेगार करने के वृतांत से शुरू हो कर,तिलाडी काण्ड तक यह उपन्यास राजशाही के क्रूर काल की एक तरह की रनिंग कमेंट्री यानि आँखों देखा विवरण जैसा है. स्वयं विद्यासागर जी ने लिखा कि इस उपन्यास के लिए सामग्री जुटाने और कथा को उपन्यास के रूप में ढालने में उन्हें 28 साल से अधिक लगे.

आज 88 साल बाद जब हम उस तिलाड़ी काण्ड को याद कर रहे हैं तो देख रहे हैं कि जंगल, जमीन, पानी जैसे संसाधनों तो आज भी वैसे सरकारी चंगुल में हैं और सरकारों लोगों का उनपर अधिकार कायम करने के लिए देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बेच रही हैं. तिलाड़ी में हमारे बहादुर पुरखों ने जंगलों पर अपने अधिकारों के लिए सैकड़ों की तादाद में शहादत दी. देश आजाद हुआ, राजशाही ख़त्म हुई पर जंगल, जमीन, पानी पर लोगों का अधिकार बहाल नहीं हुआ. हालांकि राजशाही अपने आप ख़त्म नहीं हुई.

तिलाड़ी की शहादत से आगे चलते हुए 1944 में श्रीदेव सुमन शहीद हुए और देश की आजादी के आठ महीने के बाद 11 जनवरी 1948 को कामरेड नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत के बाद ही राजशाही का खात्मा हो सका.

यह अलग बात है कि लोकतंत्र स्थापित होने के बाद भी सत्ताधीशों का इन राजाओं के प्रति असीम प्रेम कायम रहा. इसलिए तिलाड़ी के शहीदों के खून से रंगे, श्रीदेव सुमन,नागेन्द्र सकलानी के खून से सने हाथों के साथ ही, टिहरी का यह राजपरिवार पहली लोकसभा से आज तक (बीच के थोड़े अंतराल को छोड़ कर) निरंतर संसद पहुँचता रहा है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने रक्तरंजित इतिहास वाले इस राजपरिवार को लोकसभा पहुंचाने में अपनी वर्गीय पक्षधरता का स्पष्ट प्रदर्शन किया.

राजशाही शहीदों के खून के वेग में बह गयी. पर हमारे लोकतंत्र के खेवनहारों ने राजाओं के गुण बखूबी आत्मसात किये. उन्हें जंगल, जमीन, पानी के लिए लोगों का खून बहाना मंजूर है पर संसाधनों पर जनता का अधिकार मंजूर नहीं है.

-इन्द्रेश मैखुरी

तिलाड़ी का शहीद स्मारक

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

2 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

6 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

6 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

6 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

6 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

6 days ago