अपनी समस्याओं को लगातार पत्र और सभाओं के माध्यम से दरबार को बताने के प्रयासों के बाद भी अहंकारी दीवान चक्रधर जुयाल और महत्वाकांक्षाओं से भरे डीएफओ पदमदत्त रतूडी, रंवाई और जौनपुर के जन आक्रोश और जन भावनाओं की अनदेखी कर रहे थे. नवंबर 1929 को पदम दत्त रतूड़ी ने कृषि और पशुपालक समाज में 12 नए करों का एलान किया. इससे 16 पट्टी रवाई घाटी तथा 9 पट्टी जौनपुर घाटी तथा बिष्ट पट्टी परगना उदयपुर के लोग, जो पूरी तरह कृषि और पशुपालक समाज थे, प्रभावित हुए. उनकी न केवल कृषि बल्कि उनके समाज और संस्कृति (मौण, मदिरा, नृत्य, मिलन व चूल पर कर) पर भी रियासत ने इन करों के बहाने हमला किया.
(Tiladi Kand Uttarakhand)
जनता लगातार प्रतिकार कर रही थी. मार्च के माह में राजा नरेंद्र साह अपने गले का इलाज कराने यूरोप गए. सत्ता काउंसिल के हाथों में थी. जिसके मुखिया दीवान चक्रधर जुयाल और हरि कृष्ण रतूड़ी थे. हरीकृष्ण रतूड़ी बुजुर्ग और पूरे राज्य में प्रभाव रखने वाले व्यक्ति थे. उनके इस प्रभाव से चक्रधर रंज रखते थे. लगातार अपना दबदबा बनाए रखने के लिए षड्यंत्रकारी कदमों को बढ़ावा देते थे.
20 मई को राड़ी घाटी में 2 निर्दोष ग्रामीणों की डीएफओ पदम दत्त रतूड़ी द्वारा हत्या किए जाने के बाद भी रियासत द्वारा जनता के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं दिखाई. जबकि वजीर हरीकृष्ण रतूड़ी वहां जनता से संवाद स्थापित कर दिल जीतने का प्रयास कर रहे थे. तभी भोला नाथ पंत के नेतृत्व में 25 सशस्त्र सैनिकों को कार्रवाई के लिए तिलाड़ी भेजे जाने के समाचार ने जनता का मोह पूरी तरह भंग कर दिया.
लोगों को यह विश्वास हो गया कि टिहरी रियासत में उनकी कोई कदर नहीं है. उन्हें जानवर ही समझा जा रहा है. तब गांव-गांव में लोग सशस्त्र विद्रोह के लिए संगठित होने लगे. विद्रोह की सभाएं और रणभेरी आम हो गई. हालांकि हरि कृष्ण रतूड़ी जन विश्वास जीतने में कामयाब हो रहे थे. लाला राम प्रसाद मध्यस्थ की भूमिका में कारगर हो रहे थे. जनता और दरबार के बीच संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे थे. तिलाड़ी के गोली कांड के दिन भी रामप्रसाद संदेश लेकर नरेन्द्र नगर गए थे.
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काउंसिल और दरबार में अपना प्रभाव बड़ाने के लिए चक्रधर जुयाल षडयंत्र कर रहे थे. कूटनीतिक रूप से अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दीवान चक्रधर जुयाल नैनीताल में पोलिटिकल एजेंट मिस्टर स्टाइफ से डीएफओ, पदम दत्त रतूड़ी के साथ मिले. रंवाई घाटी के जनता के बगावती तेवर डीएफओ तथा रियासत कर्मचारियों के ऊपर हो रहे हमलों की मनगढ़ंत कहानी सुना कर पोलिटिकल एजेंट की तिलाड़ी के क्रूर दमन हेतु मौन सहमति प्राप्त कर ली. अपने कूटनीतिक मिशन में कामयाब होते ही डीएफओ पदम दत्त और चक्रधर जुयाल आनन-फानन नैनीताल से नरेंद्र नगर पहुंचे और वापस पहुंचते ही दीवान ने पूर्व में किए गए राजनीतिक प्रयासों की कोई समीक्षा किए बगैर ही सेना को बैरक से निकाल लाइन आफ होने का आदेश किया.
26 मई को ही दीवान चक्रधर और डीएफओ पदम दत्त नैनीताल से नरेंद्र नगर पहुंचे थे. उसी अपराहन सेना के साथ रंवाई के लिए कूच कर दिया, भल्डियाणा नामक स्थान पर दीवान ने फौज की जांच की तो आगम सिंह बखरेटी, जीत सिंह, मालचंद, सीताराम नगाण गांव, झूम सिंह सैपाल सिंह लखीराम निवासी काली बाजरी कुल 7 सिपाही रंवाई क्षेत्र के पाए गए जिन्हें वापस भेज दिया गया.
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28 मई को दीवान चक्रधर फौज के साथ राजगढ़ी पहुंच गए. तब टाटाव गांव में ढंडकियों की बैठक चल रही थी. ढंडकियों को भी सेना के आने की भनक लग गई तो उन्होंने 29 मई को टाटाव गांव छोड़ दिया और तिलाड़ी सेरा में एकत्रित होने लगे. इस अफरातफरी का फायदा उठाकर थोकदार रणजोर सिंह महत्वपूर्ण कागजों को लेकर दीवान के पास भाग गया. ढंडकियों की रणनीति, शस्त्रों का ब्यौरा दीवान को दिया. बताया कि ढंडकियों के पास खुकरी, तलवार, डांगरे हैं. भूतपुर्व दीवान सदानंद पत्रकार विशंभर दत्त चंदोला का भी समर्थन ढंडकियों को प्राप्त है.
2 दिन दीवान चक्रधर ने खुद को सामरिक और कूटनीतिक तौर पर खुद को मजबूत करने के लिए दिए. क्षेत्र के प्रतिनिधियों को महाराज के यूरोप प्रवास का हवाला देकर ढंडक खत्म कर देने की बात कही. बातचीत का प्रस्ताव भेजा. लेकिन ढंडकियों ने बातचीत को तब तक मना कर दिया, जब तक क्षेत्र में सेना की मौजूदगी है. सेना की वापसी पहली शर्त रखी गई.
चक्रधर ने पैंतरा बदला और संदेश दिया कि वह उन अपराधियों को पकड़ना चाहते हैं, जिन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. डिप्टी कलेक्टर सुरेंद्र दत्त नौटियाल पर जानलेवा हमला किया. चेतावनी दी कि तिलाड़ी सेरा में एकत्रित लोग अगर 29 मई की शाम तक तितर-बितर नहीं हुए तो सैनिक कार्रवाई की जाएगी. 30 मई की सुबह फिर चपरासी भेज कर संदेश दिया लेकिन ढंडकियों की संख्या और हौसला लगातार बढ़ता गया.
तब 2:00 बजे दिन बहुत प्रभावी सैनिक कार्रवाई की गई. पहाड़ की चोटी पर सेनाध्यक्ष नत्थू सिंह ने पोजीशन ली. तो उत्तर पूरब की तरफ से ग्राम छटांगा से ग्राम किसना तक तिलाड़ी सेरा को सेना ने घेर लिया था. बेतहाशा गोलियों की बौछार हुई, निर्दोष ग्रामीणों के साथ ही नदी के पार मुर्दा ले जा रहे, लोगों तक भी गोलियां पहुंची. भयभीत दर्जनों ग्रामीण यमुना के तेज बहाव में कूद बह गए, कुछ ने किन्सेरु के पेड़ों में आड़ ली तो वही चिपक गए. नदी के पार ग्राम सुनाल्डी में चर रहे गाय बकरियां, तथा ग्रामीण भी इस गोलीबारी से घायल हुए. इस बीच चक्र गांव के धूम सिंह दीवान के नजदीक पहुंच गए और उसके माथे पर बंदूक रख दी लेकिन खुद का अंगूठा गवा बैठे.
दीवान चक्रधर इस घटना के कूटनीतिक प्रभाव को जानता था. इसीलिए घटना पोलिटिकल एजेंट स्टाइफ की जानकारी में भी थी. इसलिए घटना के साथ ही उसने इसकी गंभीरता को कम करने के लिए गलत रिपोर्ट पेश की मौके से शवों पर कालिख पोत यमुना नदी में प्रवाहित किया. मात्र 20 राउंड गोली चलाने की बात कही जबकि चश्मदीद गवाह एक घंटे से अधिक लगातार गोलीबारी का जिक्र करते हैं.
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घटना से सीधे तौर पर जुड़े रहे गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला इस घटना में एक सौ से अधिक निर्दोष ग्रामीणों के मारे जाने और 194 व्यक्तियों की गिरफ्तारी की रिपोर्ट करते हैं. सरकारी रिपोर्ट मात्र 2 कहीं 4 व्यक्तियों के मारे जाने की बात करती है जबकि कई स्थानीय ग्रामीण सतानंद ग्राम भाटिया सते सिंह बड़थ्वाल ग्राम बगासू जो कि इस संघर्ष में शामिल थे मृतकों की संख्या 67 बताते हैं.
जून प्रथम सप्ताह तक पूरे क्षेत्र में दमन और लूट का सरकारी क्रम चलता रहा. थोकदार रणजोर सिंह और लखीराम राम की भूमिका खलनायक की रही. वह ग्रामीणों को गिरफ्तार करवाते रहे 298 व्यक्तियों की गिरफ्तारी का उल्लेख मिलता है. लेकिन इस गोलीकांड के बाद भी ग्रामीणों का हौसला पस्त नहीं हुआ. चंदा डोकरी, थाबला अडूर-बडासू में हजार से अधिक की संख्या में लोग आजाद पंचायत में जुटते रहे. इस कांड की गूंज पूरे उत्तर भारत में हुई.
7 जुलाई 1930 को महाराजा यूरोप से लौटे और 9 जुलाई को पोलिटिकल एजेंट स्टाइफ से नैनीताल में बात की. पोलिटिकल एजेंट के समक्ष चक्रधर जुयाल पहले ही मजबूती से अपना पक्ष रख चुके थे. इस कारण चक्रधर जुयाल महाराज के विश्वास पात्र बने रहे. 24 जुलाई से 26 जुलाई 1930 तक रवांई जौनपुर क्षेत्र का नरेंद्र साह ने भ्रमण किया, तब भी चक्रधर जुयाल साथ बना रहा तांकि सच्चाई सामने न आए.
धीरे-धीरे नरेंद्र शाह सच्चाई समझ गए, उन्होंने डीएफओ पदम दत्त द्वारा लगाए गए अधिकांश करों को वापस ले लिया. राज प्रतिष्ठा बचाए रखने की खातिर गिरफ्तार सभी ढंडकियों को 3 माह 10 दिन तक अनिवार्य रूप से जेल में रखा. उसके बाद 70 ढंडकियों को 4 माह से 10 वर्ष तक अलग-अलग श्रेणी की सजा से दंडित किया गया.
तिलाड़ी गोलीकांड एक दिन की अचानक घटित घटना नहीं थी, यह डीएफओ पदम दत्त रतूड़ी और दीवान चक्रधर जुयाल की महत्वाकांक्षा और अहंकार में जन उपेक्षा का परिणाम थी. जिस कारण चार-पांच वर्ष से रंवाई घाटी सुलग रही थी. इस घटना से पूर्व ही विशंभर दत्त चंदोला संपादक गढ़वाली तथा शिमला, देहरादून के कई अखबार रंवाई घाटी पर नजर रखे हुए थे.
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इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना जिसे की उत्तराखंड का जालियांवाला बाग कांड कहा गया में हर जुर्म के बाद शासन सत्ता द्वारा जो हथकंडे अख्तियार किए जाते हैं. वह अख्तियार किए गए तथ्यों को छुपाया गया और घटना के तुरंत बाद जब ग्रामीण भाग गए तो सशस्त्र सैनिकों ने पूरे क्षेत्र को अपने काबू में लिया. शवों को गुमनाम दर्शाने के लिए उनके चेहरे पर कालिख पोत नदी में बहा दिया गया. क्षेत्र की परंपरा पुरुषों के स्वर्ण आभूषण पहनने की थी अधिकांश शवों से स्वर्ण आभूषण सेना द्वारा लूट लिए गए. दमन से घाटी को शांत किए जाने के सारे प्रयास विफल हो गए. साथ ही रंवाई घाटी से बाहर देहरादून, शिमला यहां तक कि दिल्ली के अखबारों में भी इस घटना को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया. जिससे टिहरी रियासत की साख को धक्का लगा.
अंग्रेजों की नजर में रियासत की साख बचाने के लिए और इस कांड में गौ हत्या के आरोप से मुक्त होने के लिए पंजाब सनातन धर्म के प्रतिनिधि पंडित गणेश दत्त शास्त्री, पंडित शिवानंद थपलियाल अवकाश प्राप्त प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया गया. जांच आयोग ने सभी संबद्ध पक्षों के बयान दर्ज किए, माना यह जाता है कि इसकी रिपोर्ट चक्रधर जुयाल और रियासत के खिलाफ थी. इस कारण यह रिपोर्ट दबा दी गई.
महाराज, दीवान चक्रधर जुयाल की अंग्रेजी भाषा और शैली से इतने प्रभावित थे. उन्होंने रंवाई की यात्रा व जांच में भी मुख्य आरोपी चक्रधर जुयाल को खुद से अलग नहीं किया चीफ सेक्रेटरी सुरेंद्र रिपोर्ट दीवान चक्रधर की रिपोर्ट पर ही आधारित थी जिसमें ढंडकियों को मुख्य रूप से हमलावर माना गया. परिणाम स्वरूप सही तथ्य महाराज नरेंद्र शाह तक नहीं पहुंचें.
इसके साथ ही दबाव बनाने के लिए दीवान चक्रधर जुयाल द्वारा गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला तथा इंडियन स्टेट रिफॉर्म्स के संपादक अनंत नारायण पर मानहानि का मुकदमा चलाया. जिसमें विशंभर दत्त चंदोला और अनंत नारायण राम दोनों को एक वर्ष की सजा हुई.
रियासत के विरुद्ध भड़काऊ भाषण दिए जाने के लिए अधिवक्ता तारा दत्त गैरोला पर भी मानहानि का मुकदमा चलाया गया. लेकिन यह मुकदमा असफल हुआ दीवान चक्रधर जुयाल के उपर मुकदमे के खर्च की भरपाई करने के आदेश तारा दत्त गैरोला के पक्ष में किए गए. तमाम कोशिशों और बढ़ते जन दबाव के बाद के बाद 1 जुलाई 1939 को चक्रधर जुयाल को पद से हटाया गया. साथ ही उसका देश निकाल कर कालसी से ऊपर राज्य प्रवेश की अनुमति भी प्रतिबंधित कर दी गई थी. यहां सच्चाई जानने के बाद राजा द्वारा चक्रचाल आंखें निकाल देने का उल्लेख होता है. लेकिन उसके कोई प्रमाण नहीं मिलते. इस घटना से टिहरी रियासत की साख तार-तार हो चुकी थी. राज्य में प्रजामंडल के प्रवेश की परिस्थितियां भी बनी.
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तिलाड़ी घटना के तुरंत बाद गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला ने अखबार में 100 लोगों के शहीद होने का जिक्र किया था. यह भी कहा कि अधिकांश मृतकों को राजा की सेना ने चेहरे में पहचान छुपाने के लिए कालिख पोत यमुना में बहा दिया, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शतानंद, गोलीकांड के शहीदों की संख्या 67 बताते हैं. अधिकांश सेनानी इसकी पुष्टि करते हैं.
प्रमाणिक तौर पर 9 शहीदों का विवरण उपलब्ध होता है.
तुलसी ग्राम पंडारी जौनपुर
किसिया ग्राम पांडे खनेती
मोर सिंह ग्राम बड़ोंगी, दशमी
नारायण सिंह ग्राम कामदा
भागीरथ ग्राम कामदा
हरिराम गौरव पुत्र बडली ग्राम कुमाडी मुगरसंती
गंदरू ,ज्वाला सिंह, चमन सिंह ,ज्वाला सिंह, मदन सिंह ,रूद्र सिंह व गुलाब सिंह आदि कुल 7 लोग जेल में शहीद हुए. लंबी जद्दोजहद के बाद महाराजा नरेंद्र शाह ने रंवाई चार्टर की सभी 12 मांग जो कि पदम दत्त के नए कर प्रणाली से उत्पन्न थे, को वापस ले लिया. लेकिन राजा व्यर्थ में की गई इस कवायद की सही समीक्षा नहीं कर पाए और लगातार दीवान चक्रधर जुयाल के चंगुल में ही फंसे रहे.
तिलाड़ी के शहीदों को नमन.
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प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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