Featured

क्या है रूप कुंड की मानव अस्थियों का सच

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल की हिमालयी झील रूप कुंड के पास पाया गया हड्डियों और मानव कंकालों का ढेर हाल के वर्षो की रोमांचकारी ऐतिहासिक खोज है. 18000 फीट की ऊंचाई पर साल भर बर्फ से ढंके रहने वाले इस कुंड में पौराणिक काल के इन अवशेषों के बारे में इस क्षेत्र के ग्रामीणों के बीच कई कहानियां प्रचलित हैं.

इनमें एक इस तरह है. कन्नौज के राजा और राज्य पर देवी भगवती का प्रकोप हुआ. अच्छा धान बोने पर भी सोला उगता. अच्छे गेहूं की फसल की उम्मीद पर बैठे किसानों के खेतों से गोबरी पैदा होती. चने के खेत में सिर्फ काले छिलके पैदा होते. जौ के खेतों में खर-पतवार का साम्राज्य उग आया करता.

लोहाजंग के प्रदेश में बर्फीली हवा इस वेग से चला करती कि लोगों के कान ही फट जाएंगे. बेदिनी में जहरीला धुंआ पसर गया था, जिससे लोगों के सर में भीषण दर्द उठा जाया करता था. गिंगटोली के पहाड़ों में इतनी बर्फ जम गयी कि लोगों का चलना दूभर हो गया. गाय पांड़वों (भैंस के बच्चों) को जनती और भैंस बछड़ों को. मनुष्य की संतानें भी लुंज-पुंज जन्मती. सारा पानी तक लाल हो गया. देवी का प्रकोप सर्वत्र था. कन्नौज के राजा जसदल ने विद्रूप के साथ जनता से कहा ‘देवी भगवती के दर्शन के लिए तुमने तीर्थयात्रा नहीं की, यह उसी का परिणाम है. चलो यात्रा के लिए तुरंत कूच करें.

प्रजा की राय से राजा ने भोजपत्र के छत्र बनवाये. लोगों ने भी नए कपडे बनवाए, गंदे कपड़ों को साफ़ किया.

सभी यात्रा पर चल दिए. ढोला समुद्र, मावाभवर और पीत्वाभूवा होते हुए यात्रा चामू ढांटा पहुंची. वहां से दिल्ली फिर हल्द्वानी होते हुए सोमेश्वर, बैजनाथ, ग्वालदम, लोहाजंग होते हुए बेदिनी पहुंचे. बेदिनी में कुछ दिन भगवती की पूजा की गयी और उसे बलि चढ़ाई गयी.

जात्रा जब बेदिनी से पातरनचौनिया होते हुए गिंगटोली पहुंची तो कन्नौज की रानी को प्रसव पीड़ा हुई. अतः सारी जात्रा को यहीं रुकना पड़ा. गिंगटोली घने बादलों और कोहरे के अँधेरे में डूब गया. यहाँ पर एक चट्टान के पास ही बल्पा रानी ने एक बच्चे को जन्म दिया. यही जगह आज भगुआबासा के पास बल्पा-सुलेड़ा नाम से जानी जाती है, सुलेड़ा मतलब प्रसूति गृह.

जब देवी भगवती को अपने वासस्थल के पास एक बच्चे के जन्म का समाचार मिला तो उन्होंने हंस को इसकी जानकारी लाने भेजा. हंस ने गिंगटोली जाकर यात्री दल के बारे में जानकारी इकठ्ठा की. उसने वापस लौटकर भगवती को कन्नौज के राजा-रानी व उनके अंगरक्षकों के होने की सूचना दी. उसने देवी को यह भी नाट्य कि बल्पा रानी भगवती की ही धरम बहन है. तभी देवी के एक अन्य सेवक देव सिंह ने कहा कि ‘माता, तुम्हारा कैलास अपवित्र हो गया.’

देवी ने अपने 2 दूतों रनखल और भैरियाल को आज्ञा दी कि वे राजा, रानी और उसके साथियों को वापस कन्नौज भेज दें. दूतों ने राजा के अंगरक्षकों के दर से आज्ञा पालन में आनाकानी दिखाई.

इसके बाद भगवती ने लाटू को बुलाकर कहा कि मेरा वास स्थान अपवित्र हो गया है, अतः तुम मेरे पवित्र स्थान का अपमान करने वाले राजा, रानी और उनकी सेना को नष्ट कर दे. लाटू ने कहा कि वे मेहमान हैं इसलिए उनका आदर-सत्कार करना चाहिए, न कि उन्हें नष्ट करना चाहिए. लेकिन देवी अपने इरादे पर अटल थी, उन्होंने लाटू को कई लालच दिए— में तुम्हें दैवीय शक्ति से संपन्न कर दूंगी. अपने दाहिने हाथ के पास जगह दूंगी. भक्तगण तुम्हारी वंदना करेंगे. मैं बेदिनी में तुम्हारी पूजा की आज्ञा निकालेगी. तुम्हारे सेवकों का किसी से बलपूर्वक कुछ भी छीन लेते हैं तो पाप नहीं माना जायेगा. इसके बावजूद भी लाटू नहीं माना.

तब भगवती ने उससे कहा कि मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं. भविष्य में तुम मेरे गण रहोगे. सभी उत्सवों में मेरे आगमन की घोषणा करोगे. अब जाओ और मेरे सम्मान की रक्षा करो. सिर्फ ब्राह्मण भक्तों को आने दो अन्य को नष्ट कर दो. जल्दी जाओ क्योंकि आधी सेना रूपकुंड पहुँच चुकी है हालांकि बल्पा रानी अभी अभी गिंगटोली में ही है. लाटू ने उनकी आज्ञा का पालन किया और वह ज्योरान्गली पहुंचा जहाँ उसने राजा को सेना के साथ देखा.

लाटू ने राजा के सैनिकों और ब्राह्मणों का पता लगाया. ब्राह्मणों में से चन्द्र ऋषि ने ब्राह्मणों के बारे में बताया. लाटू ने उन्हें आगे बढ़ने को कहा. शेष को लाटू ने दैवीय दंड दिया. बादल, बिजली और बर्फ़बारी ने कहर ढाया और घोर अँधेरा छा गया. ऊपर से लाटू ने पत्थर और लोहे के टुकड़े बरसाना शुरू कर दिया. रूपकुंड पहुंचे हुए लोगों में कोई नहीं बचा. गिंगटोली की नदियों में बाढ़ आ गय९इ जिसमें बल्पा-सुलेड़ा बह गया. बाद में ग्वालों को रानी की अस्थियाँ कुम्बागढ़ से मिलीं.

इस कहानी के अनुसार रूपकुंड में कन्नौज के राजा और उनके सैनिकों की ही अस्थियाँ हैं.

(पहाड़ के अंक 18 में डी. एन. मजूमदार के लेख ‘रूपकुण्ड रहस्य’ के आधार पर)              

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago