Featured

मीना रौतेला के सपनों में पहाड़ की हजारों-हजार स्त्रियों के सपने शामिल हैं

उस दोपहर जब मीना से हमारी पहली मुलाक़ात हुई तो वह धान की पौधों का गठ्ठर टोकरी में लादे नंगे पैर सीढ़ीदार खेतों की ढलान पर उतर रही थी. उसकी वेशभूषा की स्थित बता रही थी कि वह सुबह से काम कर रही है. हमारे हाथों में कैमरे देख कर उसे शुरू में थोड़ी झेंप हुई सो हमने कैमरे झुका लिए. धान के खेतों में रोपाई का काम जोरों पर चल रहा था और करीब पचास-साठ महिलाएं और तीन-चार पुरुष रोपाई के कार्य में व्यस्त थे. हल में जुते एक जोड़ा बैल भी नीचे दिखाई दे रहे थे. (Meena Rautela Someshwar Valley)

कुछ ही पलों में मीना नीचे एक खेत में पौध की उस खेप को डालकर वापस चढ़ रही थी जहां ऊपर के खेत से उसने अपनी टोकरी को फिर से लाद कर लाना था. दूसरी बार हमें देख कर वह ज़रा भी नहीं झेंपी और नैसर्गिक देहभाषा के साथ अपने काम में लगी रही. अब उसने हमारे कैमरों पर ध्यान देना भी बंद कर दिया था. (Meena Rautela Someshwar Valley)

हम लोग काफी देर तक रोपाई करती महिलाओं के फोटो खींचने में व्यस्त रहे लेकिन मैं कनखियों से उसे बिना थके अनवरत काम करते देखता रहा था.

काम निबट चुकने के बाद वापसी में एक बार फिर से मीना से सामना हो गया. इस बार मैंने उसे गौर से देखा. सिर पर धरी हुई भारी टोकरी, घुटनों तक उठी हुई सलवार, पिंडलियों में लगी हुई सूख कर पपड़ा गयी मुलायम मिट्टी, कीचड़ से गीले पैर, चेहरे पर मिट्टी के सूखे छींटों के बीच से होकर बह रहा पसीना और बेहद संकरे-फिसलनभरे रास्तों पर चल रहे पाँवों की गति में एक आत्मविश्वास और आँखों में विनम्रता.

एकबारगी मेरे मस्तिष्क में अपने खुद के परिवार और मित्र-परिचितों के परिवारों के किशोर और युवा बच्चे तैर आये जिन्होंने खेत तो क्या कभी ढंग से गाँव भी नहीं देखे हैं.

मैंने इन्तजार किया कि वह पौधों को खेत में डालकर वापस आए. मुझे वहीं ठहरा हुआ देख इस बार वह ज़रा भी विचलित नहीं हुई. तनिक संकोच के साथ मैंने उस से पूछ ही लिया कि क्या मैं उससे कुछ सवाल पूछ सकता हूँ. वह राजी हो गयी.

अपनी उर्वर भूमि के लिए जानी जाने वाली सोमेश्वर घाटी के गाँव खाड़ी की रहने वाली मीना रौतेला सोमेश्वर के डिग्री कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा हैं. इधर आम तौर पर यह धारणा बन गयी है कि इस उम्र के बच्चे घरों में रहना पसंद नहीं करते और उनकी दुनिया मोबाइल फ़ोनों के भीतर सीमित रहने लगी है जिसके भीतर बहुत सारे वर्चुअल दोस्त और बड़ों की समझ में न आने वाले एप्स और अजीबोगरीब संगीत भरा होता है. लेकिन मीना से मिलकर समझ में आया कि शहरी और ग्रामीण युवाओं को एक ही पैमाने से नहीं तौला जा सकता.

मीना के घर में उनके अलावा मम्मी और दादी रहते हैं. पापा और भाई जॉब करते हैं जबकि बड़ी दीदी की शादी हो चुकी है. तीन किलोमीटर दूर नजदीकी गाँव सलौंज, झुपुलचौरा के जीआईसी से इंटर किया था. इसका मतलब हुआ हर रोज स्कूल आने-जाने के लिए छः किलोमीटर पैदल चलना सालों तक उसकी दिनचर्या का हिस्सा था.

मीना के परिवार के पास करीब पंद्रह-बीस नाली जमीन है. उनके खेत एक जगह पर नहीं अलग-अलग खत्तों में स्थित हैं – कहीं पांच नाली, तो कहीं तीन. इन खेतों में धान के अलावा भट और गेहूं भी उगाये जाते हैं.

मीना ने उन्नीस साल की अपनी उम्र में हल्द्वानी, बागेश्वर और रानीखेत जैसे शहर देख रखे हैं और वह हल्द्वानी से आगे अब तक नहीं गयी है. फिर वह जोड़ती है – “धौलादेवी भी देख रखा है! एनसीसी और स्काउट-गाइड के कैम्प किये थे वहां!”

“गाँव में ऐसा ही होने वाला हुआ!” वह मिट्टी सने हाथों से अपने माथे पर आ गयी एक लट को सम्हालती हुई दार्शनिक अंदाज में कहती है.

मीना टीचर बन कर बच्चों को पढ़ाना चाहती है. फिलहाल उसकी योजना है कि बीए के बाद बीएड एंट्रेंस की सरकारी परीक्षा देगी. उसमें निकल गयी तो ठीक वरना भूगोल से एमे करेगी. फिलहाल वह एकल विद्यालय में पार्ट टाइम जॉब भी करती है. बच्चों को उन प्राचीन संस्कारों के बारे में सचेत कराना उसके इस जॉब का हिस्सा है जिनमें इस समय के बच्चे भूलते जा रहे हैं.  

मैं उस से पूछता हूँ कि अगर वह टीचर बन गयी तो क्या करना चाहेगी. मीना कहती है उसे बाहर दुनिया देखने जाना है – हल्द्वानी से बहुत आगे तक.

लम्बी सांस लेकर वह कहती है – “हम गरीब लोग हुए न! गाँव में ऐसे ही होने वाला हुआ! जमीन तो हुई हमारे पास लेकिन पैसा नहीं ठहरा!”

उसे अभी बहुत सारा काम निबटाना है. वह हमसे इजाजत मांगती है. मैं एक आख़िरी सवाल करता हूँ – “बीएड कर सकने का सपना पूरा हो गया तो!”

“तब अगर कोई मदद कर देगा तो यहीं गाँव में स्कूल खोल कर बच्चों को पढ़ाऊँगी! गांव में बच्चों की पढ़ाई का सिस्टम अच्छा नहीं है न!”

मीना टोकरी को अपने सिर पर धर रही है. मैं नजरें उठा कर उसे देखता हूँ – उसे लगता है कि वह गरीब है लेकिन उसके उसके ऊर्जावान सुन्दर चेहरे पर मेहनत और सपने देख सकने की काबिलियत का दर्प चस्पां है! वह पहाड़ की मेहनतकश स्त्री का एक युवा चेहरा है – श्रम में विश्वास रखने वाला और निष्कलुष. उसके सपनों में पहाड़ की हजारों-हजार स्त्रियों के सपने शामिल हैं.

सरकारें ब्रांड एम्बेसेडर नियुक्त करने के लिए अपने राज्यों से निकले स्टार्स को खोजती-फिरती हैं. उन्हें गाँवों में निकला कर देखना चाहिए जहां मीना रौतेला जैसे कितने ही युवा अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ विश्वास से मिसालें रच रहे हैं.

हम सब की बच्ची है मीना रौतेला! वह हम सब की साझा जिम्मेदारी है. पहाड़ी मूल की किसी भी मिस वर्ल्ड या मिस यूनीवर्स से कहीं अधिक वह हमारे पहाड़ की स्त्रियों की ब्रांड एम्बेसेडर है – उनसे अधिक खूबसूरत, उनसे अधिक सचेत और उनसे अधिक मेहनती!

मेरी दुआ है तुम्हारे सारे सपने पूरे हों! सलाम मीना! सलाम मेरी बच्ची!

-अशोक पाण्डे

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

55 mins ago

सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी

-रामचन्द्र नौटियाल अंग्रेजों के रंवाईं परगने को अपने अधीन रखने की साजिश के चलते राजा…

2 hours ago

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

20 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

22 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

23 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

2 days ago