ग्वल्ल ज्यू की जन्म भूमि ग्वालियूर कोट चम्पावत थी. इस ग्वालियूर कोट में चंद वंशी राई खानदान का राज्य था जिनमें हालराई, झालराई, तिलराई, गोरराई और कालराई आदि प्रमुख राजा हुए. ग्वल्ल ज्यू के पिता का नाम हलराई (हल्ल राय) तथा दादा का नाम झालराई था. हालराई ने सात शादियाँ कीं लेकिन किसी से भी संतान पैदा नहीं हुई. आठवीं शादी उन्होंने पंचनाम देवों की बहन कालिंका से की. ग्वल्ल जब कालिंका के गर्भ में थे तो अन्य सात रानियाँ ईर्ष्या से भर उठीं और उन्होंने सोचा कि यदि कालिंका का पुत्र होगा तो राजा उसे अधिक प्यार करने लगेगा और उनकी उपेक्षा होने लगेगी. इससे बेहतर होगा कि वे किसी भी प्रकार कालिंका के गर्भ के बालक का अंत कर दें.
सातों रानियाँ राजा हालराई के पास गईं और उनसे कहा कि बड़ी मुश्किल से आज हमें संतान का मुख देखने का सौभाग्य मिल रहा है. यदि हम बच्चा जनाने के लिए किसी दाई को बुलाएं तो पता नहीं वह क्या कर दे. अतः हम सभी मिल कर बच्चा जनने में मदद करेंगे और किसी को भी भीतर जाने की अनुमति नहीं होगी. राजा उनकी बातों से सहमत हो गया. सातों रानियों ने कालिंका से कहा की हे बहन! अब तुम्हारा प्रसूति का समय आ गया है और तुम पहली बार माँ बन रही हो. अतः तुम प्रसूति पीड़ा से मूर्छित न हो जाओ इसके लिए हम तुम्हारी आँखों में पट्टी बाँध देते हैं. सात सौतों ने कालिंका की आँखों में पट्टी बाँध दी और सामने से फर्श को काटकर उसमें बड़ा से छेद बना दिया. सौतों के कई तरह के प्रयासों से भी जब बालक ग्वल्ल गर्भ में भी नहीं मरा और पैदा हो गया तो उन्होंने फर्श के छेद से उसे नीचे बकरे-बकरियों के गोठ में डाल दिया जहाँ हिलि और चुलि नाम के दो खतरनाक बकरे रहते थे. कालिंका के सामने रक्त में सने सिल-बट्टे रख दिए गए. आँख की पट्टी खोलकर उसे बताया गया कि तेरे गर्भ से ये पैदा हुए हैं. बकरे-बकरियों के गोठ में भी जब बालक ग्वल्ल नहीं मरा तो उन सुतों ने उसे पिंजे में बंद कर कालीगंगा नदी में डुबा दिया.
माँ कालिंका ने जब अपने सामने सिल-बट्टे देखे तो वह रोने कलपने लगी कि हे भगवान! सबसे बच्चे पैदा होते हैं, मुझसे ये पत्थर पैदा क्यों हुए होंगे! उसने अन्न-पानी भी त्याग दिया. रात-दिन रोते-विलाप करते वह ईश्वर को पुकारती कि हे ईश्वर या तो मुझे मृत्यु दे दीजिये या पंख ताकि मैं आसमान में उड़ जाऊं या धरती फाड़ कर विवर बना दीजिये जिससे मैं पाताल में समा जाऊं या मेरे प्राणों को धागा बना दो जिसे तोड़कर मैं अपने प्राणों का अंत कर सकूं और किसी को भी अपना मुंह न दिखाऊँ.
धीवरकोट में एक धीवर रहता था जो मछली मारने का काम करता था. काली गंगा में बहता हुआ ग्वल्ल का पिंजरा धीवर के जाल में उलझ गया. धीवर ने जब पिंजरा खोला तो उसमें बालक ग्वल्ल को देखकर खुशी से उछल पड़ा क्योंकि वह निःसन्तान था. धीवर ने ग्वल्ल का लालन पालन कर उसे बड़ा बनाया. इधर ग्वल्ल कभी-कभी अपनी माता को सपनों में दिखाई देने लगा.
एक दिन काली गंगा के उस पार ग्वल्ल काठ के घोड़े पर सवार हो कर आया. वहां उसने अपने घोड़े को पानी पिलाना शुरू किया. काली गंगा के इस पार से कालिंका अपनी सात सौतों के साथ नदी में नहाने आई हुई थी. काठ के घोड़े को पानी पिलाता हुआ देखकर उन रानियों ने ग्वल्ल को ताना कसा की कैसा पागल छोकरा है. काठ का घोड़ा भी कहीं पानी पीता है!
ग्वल्ल ने प्रत्युत्तर दिया – “अगर रानी कालिंका से सिल-बट्टा पैदा हो सकता है तो काठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता?”
उसके बाद ग्वल्ल ने अपनी माँ कालिंका को बताया की मैं तेरा पुत्र हूँ. कालिंका ने उसे लाड़-प्यार करना शुरू किया. जब राजा हालराई को अपनी सात रानियों की काली करतूतों के बारे में मालूम हुआ तो उसने सातों रानियों को उबलते हुए तेल के कढ़ाव में डलवाकर मृत्यु की सज़ा दे दी.
ग्वल्ल ने अपनी माता कालिंका को बताया की हे माँ तेरे सामने जो सिल-बट्टे रखे थे, वे लोढी-सिली अवतार बन चुके हैं. मेरे जन्म के समय जितने भी रक्त के छींटे थे, उन्होंने रगत-कलु, तगत-कलु और भैरव कलु अवतार ले लिया है. उनसे ही शूरवीर नौपना नारसिंग, सौपना भैरवों की उत्पत्ति हुई है जिन्होंने तुम्हारी रक्षा की. ग्वल्ल ने अपनी माता से कहा कि नौ नवरात्रियों में ग्वालियूर कोट आकर तुमसे मिलूंगा. तुम मुझे मेरा ननिहाल बता दो. कालिंका ने बताया की मैं पंचनाम देवों की बहन हूँ. इस प्रकार सभी देवता तुम्हारे मामा लगते हैं.
नवरात्रियों में ग्वल्ल नीलकंठ नेपाल गया. नवमी के दिन सब देवताओं का जागरण होता था. उस जागरण के दिन ग्वल्ल ने अपने मामाओं से मुलाक़ात की और उनसे कहा की मैं अकेला हूँ, मेरा आगे-पीछे कोई नहीं है. आप मुझे रहने को जगह, कुछ वीर एवं शक्ति का वरदान दें. पंचनाम देवताओं ने उसे अपना आधा इलाका दे दिया और कहा कि तुम हमेशा हमसे आगे रहोगे. उन्होंने उसकी दोनों भुजाओं में सौ-सौ हाथियों का बल दिया. साथ ही मणघट, मसाण, डिणघट चोट्टी, सोलह सौ शूल, मुंगिल पठान, गाड़ी गड़वान देकर ग्वल्ल से पंचनाम देवों ने कहा – “अल्ला-बिस्मिल्ला, घाड़ी-लूल, शैतान-तोफान, सब तुम्हारे अधीन रहेंगे और तुम मोटा वीर मरदाना वीरों को लाकर गैल ग्वर्ल चौड़ जाओ और वहां एक मन्दिर बनाकर उसमें एक उच्च लिंग की स्थापना करो. तुम वहां निर्भय होकर दुबथौड़ (घास के मैदान) में घोड़े को डूब चराकर छैमनी चौड़ (विशाल मैदान) में घुड़सवारी करो!”
उस ग्वर्ल चौड़ में ग्वल्ल का एकछत्र राज्य हो गया था. जो भी जन अन्न, धन, अत्याचार, अनाचार एवं शोषण के कारण दुखी होते, ग्वल्ल उन सभी के दुःख दूर करता था.
(श्री लक्ष्मी भंडार अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित ‘पुरवासी’ के 1988 के अंक से साभार डॉ. शेरसिंह बिष्ट के आलेख के आधार पर)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
3 Comments
Anonymous
ग्वल्ल बढ़िया ।
Anonymous
10 11 वी शताब्दी कत्युरी राजंवश था उत्तराखंड में न्यायकारी धर्मपालक शक्तिशाली कत्युरी राजंवश के पुंत्र थे बाला गोरीया झला राय के पुत्र थे ताम्रपत्रों अभीलेख मंन्दिर मे के आधार पर अफवा मत फैलाओं
Balbir Rana Adig
धन्यवाद टीम काफल ट्री । गोलज्यू देवता की संक्षिप्त इतिहास साझा करने हेतु आभार, हमारे चमोली में भी एक तिहाई लोगों का गोलज्यू इष्ट देव है और उन्हें गोरिया राजा के नाम से पूजा नचाया और पूजा जाता है।