एक डालर और सत्तासी सेंट. बस ! इनमें से भी साठ सेंट के पैनी. पैनी, जो कभी धोबी, कभी भाजीवाले, कभी कसाई के साथ होशियारी बरत कर, एक-एक दो-दो करके बचाये गये थे, जिनसे सौदा करने में कंजूस होने का मूक आरोप सहते-सहते शर्म से गाल लाल हो जाएँ! दैला ने तीन बार गिना. एक डालर और सतासी सेंट! और दूसरे ही दिन था क्रिसमस! (The Gift of the Magi | O Henry)
ऐसी परिस्थिति में अपने गन्दे, नन्हे पलंग पर गिर कर बिलखने के सिवाय और चारा ही क्या था? तो दैला ने वही किया. इससे इस विचार की पुष्टि होती है कि जिन्दगी बाहों, उसाँसों और मुस्कानों का नाम है, जिसमें भी उसाँसों की ही प्रधानता है.
आइये, जब तक यह गृहिणी दुख की एक सीमा से दूसरी में जा रही है, हम उसके मकान पर एक नजर डाल ले ! पांच डालर प्रति सप्ताह का सजा हुआ फ्लैट, जिसका वर्णन तो क्या किया जाय, इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि कम आमदनी वाले लोग ऐसे ही मकान ढूंढा करते हैं.
नीचे ड्योड़ी पर एक लैटरबक्स, जिसमें कोई पत्र नहीं आता; और एक बिजली का बटन, जिसको दबा कर कोई आदमी घंटी की आवाज नहीं निकाल सकता. वहीं पर लगी हुई एक दफ्ती पर लिखा है— ‘श्री जेम्स दिलिंघम यंग’.
‘दिलिंघम’ शब्द उस समय जोड़ा गया था जब पहले कभी समृद्धि थी और जब उन्हें हर हफ्ते तीस डालर मिला करते थे. अब, जब आमदनी घट कर बीस डालर हो गयी है, ‘दिलिंघम’ के अक्षर धुंधले दिखाई पड़ते हैं मानो वे अपने प्रथम अक्षर ‘दि’ में सिकुड़ जाने की इच्छा करते हों. जब कभी श्री जेम्स दिलिंघम यंग घर लौटते और ऊपर अपने फ्लैट में पहुँचते, उन्हें ‘जिम’ नाम से पुकारा जाता और श्रीमती जेम्स दिलिघम यंग, जिनसे. हम दैला के नाम से परिचित हो चुके हैं, उन्हें आलिंगन में कस लेती.
दैला ने रोना बन्द किया और पाउडर लगाने का कपड़ा अपने गालों पर फिराने लगी. वह खिड़की के पास खड़ी हो गयी और मकान के पिछवाड़े, अहाते पर घूमती हुई सफेद बिल्ली को यों ही देखती रही. कल क्रिसमस का दिन है और उसके पास केवल एक डालर और सतासी सेंट हैं जिससे जिम के लिए उपहार खरीद सके. कितने महीनों से वह एक-एक पैनी कर के बचा रही है और उसका यह नतीजा! एक हफ्ते में बीस डालर से क्या होता है? खर्चा उसके अन्दाज से ज्यादा हो गया था. ऐसा हमेशा ही होता आया है. जिम के लिए उपहार खरीदने को केवल एक डालर सतासी सेंट. उसका प्यारा जिम ! उसके लिए कोई बढ़िया चीज लाने की योजना बनाने में उसने कितनी सुखद घड़ियाँ विता दी थीं. कोई बढ़िया, अनूठी और कीमती चीज— कुछ ऐसी जो जिम के पास रहने का सौभाग्य पाने की योग्यता रखती हो.
कमरे की दो खिडकियों के बीच एक बड़ा दर्पण था. शायद आपने आठ डालर वाले कमरे में कभी बड़ा दर्पण देखा हो. कोई बहुत दुबला और चपल व्यक्ति ही उन लम्बी धज्जियों में छाया देख कर अपनी सूरत का सही अन्दाज लगा सकता था . दैला भी दुबली होने के कारण इस कला में निपुण थी.
एकाएक खिड़की से घूम कर वह दर्पण के सामने जा खड़ी हुई. उसकी आँखें चमक रहीं थीं लेकिन उसके चेहरे से बीस सेकेण्ड में ही रंग उड़ चला. उसने शीव्रता से अपने केशों को खोल लिया और अपनी पूरी लम्बाई से उन्हें नीचे लटकने दिया.
तो, जेम्स दिलिंघम यंग के स्वत्वाधिकार में दो वस्तुएँ थीं, जिन पर दोनों को अत्यंत गर्व था. एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी. दूसरे थे दैला के केश. अगर सड़क के उस “पार वाले फैट में स्वयं शबा की रानी रहती तो उसके हीरे, जवाहरातों और उपहारों को नीचा दिखाने के लिए दैला अपने केशों को सुखाने के बहाने किसी दिन खिड़की से बाहर जरूर लटकाये रखती. और अगर बादशाह सालोमन भी वहाँ अपने खजाने का ढेर लगा कर द्वारपाल की तरह खड़े होते तो सिर्फ ईर्ष्यावश उनका दादी नोंचना देखने के लिए, जितनी बार जिम उधर से निकलता, अपनी घड़ी निकाल कर समय जरूर देखता.
अव दैला के खूबसूरत केश भूरे पानी के मारने की तरह चमकते हुए लहरा कर लटक रहे थे. वे उसके घुटनों से भी नीचे पहुँचते थे और किसी हद तक उसके लिए पोशाक का काम दे रहे थे. और, तब उसने निराशा से उन्हें शीघ्र ही वापिस बाँध लिया. एक क्षण के लिए वह सिहर उठी, फिर चुपचाप खड़ी रही और उसकी आँख से एक या दो बूँद आँसू फटी-पुरानी लाल दरी पर बिखर गये.
उसने अपना पुराना लाल जैकेट पहना और वैसा ही हैट लगाया. स्कर्ट (घाघरे) को एक घुमाव दे कर, आँखों में अभी तक वही तेज़ चमक लिये, वह दरवाजे से बाहर शीघ्रता से निकल गयी और सीढ़ियाँ उतर कर सड़क पर आ गयी. जहाँ वह रुकी, वहाँ लिखा था, “मेडम सोझोनी : सब प्रकार के केश प्रसाधनों की विक्रेता.” दैला लपक कर एक मंजिल जीना चढ़ गयी और हाँफती हुई अपने को सम्हालने लगी. दुकान की मालकिन अत्यन्त गोरी और मोटी महिला थी.
दैला ने पूछा, “क्या आप मेरे बाल खरीदेंगी ?”
महिला ने कहा, “क्यों नहीं, हम तो बाल खरीदते ही हैं. जरा हैट उतार कर अपने बालों पर एक नजर डालने दीजिये.”
भूरे केशों का मरना उमड़ पड़ा. अपने कुशल हाथों में केश समूह को उठाते हुए, महिला ने कहा, “बीस डालर!”
दैला बोली, “जल्दी कीजिये.”
ओह, अगले दो घण्टे तो सुनहरे पंखों पर उड़ गये. इस रूपक की चिन्ता मत कीजिये . इस समय वह जिम का उपहार खोजने के लिए दुकानें छान रही थी. आखिर उसे एक चीज़ मिल ही गयी— ऐसी चीज जो केवल जिम के लिए ही बनी थी और किसी के लिए नहीं. उसके समान और कोई चीज़ कहीं किसी दुकान में नहीं थी. उसने सारी दुकानें छान डालीं. वह चीज थी साफ और सादी, प्लैटिनम की बनी हुई जेबी चेन, जिसका वास्तविक मूल्य ऊपर की टीमटाम में न हो कर उसकी धातु में था — जैसा हर अच्छी चीज का होना चाहिये . वह उस घड़ी के योग्य थी. ज्यों ही उसने उसे देखा, उसे लगा कि वह जिम की ही थी. वह जिम के जैसी ही थी. मूल्यवान और नीरव दोनों गुण दोनों ही में निहित थे. उसके इक्कीस डालर चुका कर बाकी बचे सतासी सेंट लिए वह घर लौट आयी. घड़ी के साथ वह चेन होने पर जिम अपने साथियों के बीच जरूर ही समय देखने की उत्कराटा रख सकता था. इतनी शानदार घड़ी के साथ चेन की जगह चमड़े का पट्टा होने के कारण वह कभी कभी छिपा कर ही उसमें समय देखता था !
घर पहुँचने पर तर्क और विवेक के सामने दैला का नशा जरा उतरा. उसने अपने केशों में लगे छल्ले निकाल लिये और गैस का स्टोव जला कर काम करने बैठी, जिससे उदार प्रेम के आवेश से हुई इस तबाही की पीड़ा कुछ कम हो सके! यह एक भयंकर काम है, और विशाल भी.
कोई चालीस मिनट में ही उसका सिर, छोटे-छोटे, पास-पास जुड़े हुए धुंघराले बालों से ढंक गया, जिससे वह स्कूल से मुँह चुराने वाले किसी लड़के सी दिखने लगी. उसने दर्परा में अपनी प्रतिच्छाया को बहुत देर तक सावधानी और आलोचनात्मक दृष्टि से देखा.
उसने अपने आप से कहा, “अगर मुझे दुबारा देखे बिना ही कहीं जिम ने मार नहीं डाला तो वह जरूर कहेगा कि मैं कोनी द्वीप की नटनी सी लगती हूँ. ओफ, पर मैं क्या करती. एक डालर और सतासी सैंट से मैं कर भी क्या सकती थी.”
सात बजे तक कॉफी बन चुकी थी और माँस के टुकड़े तलने के लिए स्टोव पर कड़ाही गरम पड़ी थी.
जिम को कभी देरी नहीं होती . दैला अपने हाथ में उस चेन को समेट कर मेज़ के एक कोने पर, दरवाजे के पास बैठ गयी, जिसमें हो कर जिम रोज अन्दर आता था. तभी उसने नीचे सीढ़ियों की पहिली मंजिल पर उसकी पगध्वनि सुनी और एक क्षण के लिए उसके चेहरे का रंग उड़ गया. रोजमर्रा की साधारण बातों के लिए भगवान से चुपचाप प्रार्थना करने की उसकी आदत थी; और तभी उसके होठों से निकला, “भगवान, उसे ऐसी मति देना कि वह अब भी मुझे सुन्दर समझे!”
दरवाजा खुला और जिम ने अन्दर आ कर उसे बन्द कर दिया. वह दुबला और गम्भीर दिखता था. बिचारा अभी सिर्फ बाईस बरस का ही हुआ था और ऊपर से गृहस्थी का बोझा! उसे नये ओवरकोट की आवश्यकता थी और उसके पास दस्ताने भी नहीं थे.
दरवाजे के भीतर पा कर जिम थम गया … बटेर की खुशबू पाकर शिकारी कुत्ते की तरह निश्चल! उसकी दृष्टि दैला पर टिकी थी और उसमें एक ऐसी व्यंजना थी जिसे वह नहीं पढ़ सकी और इस कारण वह एकदम डर गयी. यह अभिव्यंजना न क्रोध की थी, न पाश्चर्य की; न अस्वीकृति की, न आतंक की. न वह ऐसी कोई अनुभूति थी जिसे सहन करने के लिए दैला तैयार हो चुकी थी. अपने चेहरे पर यह विशेष भाव लिये वह दैला की तरफ सहज धूरता रहा.
दैला छटपटाकर मेज से उतर पड़ी और उसके पास गयी.
वह रुआंसी होकर कहने लगी, जिम प्यारे, मेरी तरफ इस तरह मत देखो. मुझे अपने बाल कटा कर बेच देने पड़े क्योंकि तुम्हें उपहार दिये विना मैं यह क्रिसमस केक काट नहीं सकती थी! बालों का क्या, यह तो घर की खेती है-फिर उग आयेंगे. तुम चिन्ता मत करो. मुझे यह काम करना ही पड़ा. मेरे बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं. क्रिसमस मुबारक, जिम, हमें खुश होना चाहिये . तुम्हें खबर नहीं, मैं तुम्हारे लिए कितनी अच्छी, कितनी सुन्दर, अच्छी भेंट लायी हूँ!
“क्या तुमने अपने बाल कटवा लिये?” जिम ने बड़े प्रयत्न से पूछा: जैसे अत्यन्त मानसिक श्रम के बाद भी वह उस प्रत्यक्ष सत्य तक नहीं पहुँच पाया हो.
“हाँ, कटवाये भी और बेच भी दिये.” दैला ने कहा — “क्या तुम मुझे पहले की तरह नहीं चाहते? केशों के बिना भी मैं तो वही हूँ-क्यों?”
जिम ने जिज्ञासाभरी दृष्टि से कमरे के चारों ओर देखा. भूखों की तरह वह कह उठा, “तुम कहती हो कि तुम्हारे बाल चले गये?
दैला बोली, “उन्हें ढूँढ़ने की तुम्हें आवश्यकता नहीं. वे बेच दिये, मैं कहती हूँ बेच दिये और चले भी गये. क्रिसमय की साँझ है प्यारे, मुझे माफ करना; क्योंकि वे तुम्हारे लिए ही जा चुके हैं.” एकाएक गम्भीर स्वर में मिठास भर कर वह कहने लगी, “शायद मेरे सिर के बाल गिनती के थे, पर तुम्हारे प्रति मेरे प्यार का कोई अन्दाज नहीं लगा सकता. क्या मैं पकौड़ियाँ बनाऊँ, जिम?”
अपनी बेहोशी में से जिम जागता सा लगा. उसने दैला को छाती से लगा लिया. अब दस सैकण्ड के लिए हम दूसरी दिशा में किसी अतर्क संगत तथ्य पर सावधानी से छानबीन कर लें. सप्ताह के आठ डालर हो या साल के दस लाख, क्या फर्क है? किसी गणितज्ञ या ज्ञानी से पूछिये तो वह गलत उत्तर देगा. मैगियों में अमूल्य उपहार देने की प्रथा थी, पर यह उपहार उनमें से नहीं था. इस कठिन विचार पर बाद में प्रकाश डाला जायेगा.
अपने ओवरकोट की जेब में से जिम ने एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर फेंक दिया. उसने कहा, “मुझे गलत मत समझना, दैला! मेरे खयाल से दुनिया की कोई चीज़, चाहे वह बाल कटाना हो या और कुछ, मेरी प्रियतमा के प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती. पर अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि पहले तुमने मुझे क्यों स्तब्ध कर दिया था.”
सफेद अँगुलियों ने चपलता से उस कागज और डोरी को तोड़ा और तभी खुशी की एक उल्लास भरी चीख, और बाद में, यह लो! सहसा सब कुछ नारीसुलम आँसुओं और सिसकियों में परिवर्तित हो गया, जिसे रोकने में गृहस्वामी को अपनी सारी तरकीबें काम में लानी पड़ी.
क्योंकि वहाँ बिखरे थे कंघे-कंघों का एक संग्रह, माँग में लगाने के और पीछे लगाने के, जिन्हें बाजार की बड़ी दुकान की खिड़कियों में देखकर, पाने के लिए कई दिनों तक दैला ने उपासना की थी. सुन्दर कंघे, निखालिस कछुवे की हड्डी के, जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए नग उन विलीन हुए केशों के रंग पर फबते थे. वह जानती थी कि वे बहुत कीमती थे और निराश हृदय उनकी चाहना-भर कर सकता था. और अब, अब वे उसके थे; पर वे धुंघराले बाल, जो उनसे सजने की आकांक्षा रखते थे. अब जा चुके थे.
दैला ने उन कंघों को छाती से चिपका लिया और आखिर अपनी डबडबायी आँखों को ऊपर उठा कर, मुस्कराते हुए बोली, “जिम, मेरे बाल बहुत जल्दी उगते हैं. और तब दैला किसी मुलसी हुई बिल्ली की तरह उछली और विलाप करने लगी — “ओह! ओह!”
जिम ने अभी तक उसके उपहार को देखा नहीं था. उसने उत्सुकता से अपनी खुली हथेली पर रख कर उसे सामने छत पर का कमरा बढ़ा दिया. उस अमूल्य, जड़ धातु में जैसे उसकी उज्ज्वलता.और उत्कट चेतना चमक रही थी. बढ़िया है कि नहीं, जिम ! मैंने इसके लिए सारा शहर छान मारा. अब तुन्हें दिन में सौ बार घड़ी देखने की जरूरत पड़ेगी. जरा तुम्हारी घड़ी तो देना-देवू, यह उस पर कैसी लगती है ?”
उसका कहा मानने के बजाय जिम कोच पर लुढ़क पड़ा और दोनों हाथों का सिरहाना दे कर मुस्कराने लगा.
उसने कहा, “दैला, इन क्रिसमस उपहारों को अलग रख दो और अभी के लिए अलग ही रहने दो. वे इस वक्त काम में आने के लिए बहुत ज्यादा अच्छे हैं. तुम्हारे कंघे खरीदने के पैसों के लिए मैंने घड़ी तो बेच दी. अब अगर पकौड़ियाँ बनायो तो कैसा रहे!” शायद आप जानते होंगे, मैगी लोग बुद्धिमान थे — विलक्षण बुद्धिवाले लोग जो नांद में सोये हुए ईसा के लिए उपहार लाते थे. उन्होंने ही क्रिसमस पर उपहार देने की कला को खोज निकाला था. बुद्धिमान होने के कारण उनके उपहार भी विवेकपूर्ण होते थे. शायद किसी वस्तु के दो बार आने पर उसे बदलने की भी व्यवस्था थी. और, यहाँ मैंने एक फ़्लैट में रहने वाले दो भोले भाले बच्चों का घटनाहीन वृत्तान्त टूटीफूटी शैली में बयान कर दिया है, जिन्होंने एक दूसरे के लिए अपने सबसे प्रिय धन को बिना सोचे समझे बलिदान कर दिया. लेकिन इस जमाने के बुद्धिमानों के लिए अन्तिम बार कहने दीजिये कि संसार के सभी उपहार देने वालों में ये दोनों सबसे अधिक बुद्धिमान थे. उन सभी लोगों में से, जो उपहार देते है अथवा लेते है, ये दोनों सबसे ज्यादा बुद्धिमान हैं. वे सबसे अधिक विवेकशील हैं; वे सच्चे मैगी हैं.
फूलो का कुर्ता : यशपाल की कहानी
शैलेश मटियानी की कहानी : बित्ता भर सुख
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…