मकर संक्रान्ति भारत और नेपाल के हिंदुओं द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक है. मकर संक्रान्ति का त्यौहार पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस पर्व को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं. चूँकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है.
जनवरी माह की 14-15 तारीख को यह त्यौहार विभिन्न रूपों में देश के हर हिस्से में मनाया जाता है. इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद अदा कर सदैव अपनी छत्रछाया में बनाये रखने की मनोकामना करते हैं. मकर संक्रान्ति को फसलों के तैयार होने पर किसानों के हर्षोल्लास का त्यौहार कहा जाये तो गलत नहीं होगा. 12 संक्रान्तों में से मकर संक्रान्तिको सबसे ज्यादा अहमियत इसलिए दी जाती है क्योंकि इसे खेत-खलिहानों, फसलों से जुड़े हुए त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है.
मकर संक्रांति के दौरान खेतों में फसलें पककर तैयार हो चुकी होती हैं और किसान फसलों के तैयार होने की खुशियां मनाते हैं. संक्रांति के दिन हम हर उन चीज़ों का आभार प्रकट करते हैं जिसने खेती और फसल उगाने में हमारी मदद की है. मकर संक्रांति के त्यौहार का पहला दिन धरती का, दूसरा दिन मनुष्य का और तीसरा दिन मवेशियों का होता है. इसीलिए यह त्यौहार विविध रूपों में देश के लगभग हर कोने में मनाया जाता है.
14 जनवरी से ही इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर भी हर साल मकर संक्राति में माघ मेले की शुरुआत होती है. खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन तब प्रारम्भ होता है जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं. मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुम्भ स्नान-योग कहते हैं और इस दिन को ख़ास तौर पर मंगलकारी माना जाता है, लोक मान्यता है कि इस दिन पृथ्वीवासियों के लिए उच्च लोकों के द्वार इसी दिन खुलते हैं. इसीलिए 14 जनवरी मकर संक्रान्ति के दिन से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होता है.
संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परंपरा है. इस दिन गंगा के तट में सबसे बड़ा मेला होता है. ऐसे ही स्नान अन्य जगहों पर भी पवित्र मानी जाने वाली सभी नदियों में होते.. इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं अन्य नदियों के घाटों और संगमों पर बड़े-बड़े मेले लगते है.
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज इलाहाबाद एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है.
बंगाल के गंगासागर में मकर संक्राति के दिन विशाल मेला लगता है. लोक मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था. इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है. लोग कई कष्ट उठाकर भी गंगा सागर की यात्रा करते हैं. मकर संक्रान्ति को यहाँ होने वाली की अपार भीड़ होती है. इसीलिए कहा जाता है -“सारे तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार.”
उत्तर भारत के कई राज्यों में इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महात्म्य है. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिउड़ा, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने की परंपरा है.
महाराष्ट्र में इस दिन सभी नवविवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. इस मौके पर तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है.
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागिन महिलाएँ अपनी सास को दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं.
दक्षिण भारत के केरल में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं. प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद इस खीर को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बीहू के नाम से मनाते हैं. पंजाब में इस दिन लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है.
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि यानि नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन यानि सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है.
सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायी माना जाता है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है. मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम भी शुरू हो जाता है. दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा. अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की कार्यशक्ति में वृद्धि हो जाति है. इसी वजह से सम्पूर्ण भारतवर्ष में श्रद्धालुओं द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है. भारतीय पंचांग की समस्त तिथियाँ चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, लेकिन मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है. इसी वजह से यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ती है.
उत्तराखण्ड में मकर संक्रान्ति के त्यौहार को उत्तरायणी, उत्तरेण, मकरेंण, घुघुतिया या घुघुती त्यार के नामों से मनाया जाता है. उत्तराखण्ड में मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले की रात्रि को मसांत मांई जाति है और विभिन्न किस्म के पकवान और घुघुते बाने जाते हैं. यहाँ इस मौके पर ढेरों मेलों का आयोजन किया जाता है. इनमें बागेश्वर और रानीबाग का उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं.
सभी फोटो: यू ट्यूब
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