बर्फ पड़ने के बाद की सुरसुराहट अब कम होने लगी थी. डाँडी-काँठी में जमा ह्यूं सर्दीले घाम के मद्धिम ताप से धीरे-धीरे पिघलने लगा. झड़े पत्तों की मार से भूरे नंगे पेड़ों की टहनियों में रस बहने लगा. जंगलों में पत्तों के नीचे की नमी छोटी छोटी पानी की सफ़ेद धाराओ में बह कर फेन बनाने लगी.
हिमधाराओं से भर कर नदियां हरहराती पाताल लोक को और गहराई देने लगी. न्यौली जंगल-जंगल कूकने लगी. गांवों में लोग चैत्वाली गाने लगे. जिन थोकों में अबाजा (मृत्यु के बाद एक साल का शोक) नहीं होता उन घरों में मवार सब औरतें मिल कर चैत के महीने के ठाड़े गीत लगाने लगी.
खेतों में कूरा (एक तरह की घास) गेहूं के बलड़ों पर लिपटने लगा. दिन भर माँ, चाची गेहूं के खेतों में कूरा नेलती और बिठाली (बांस के बने बड़े टोकरे) भर कर गाय भैंस बैलों के आगे डाल देती. दादिया हम बच्चों के साथ घर में रहती.
हमारे लिए कथा सुनने का कोई मौसम थोड़ी होता. हम तो बारामासी कथा सुनने वाले थे. रात होते ही कथा लगाने की जिद शुरू. जितनी देर माँ खाना बनाती, उतनी देर हमारी दो कथा पूरी हो जाती. अब दादी बिचारी रोज नई कथा कहाँ से लाती. हम हुए कथा बीर. एक ही कथा कई बार सुनते. सूना दिदी की कथा हमारी प्यारी कथा हुई.
त सुणो धौ बाबा घिपरोल मत मचाओ – दादी हमें बरजती. दूर गाँव के एक घर में सात भाई अपनी बीरा बैणी अर अपनी माँ के साथ रहते थे. छह भाइयों के पीछे हुई थी बीरा अर तब था एक छोटा भाई. बीरा सातों भाइयों की पराणी थी. लाल गालों वाली बीरा के बाल ऐसे थे जैसे सोना. सुनहरे चमकते रहते. हँसते खेलते उनके दिन बीत रहे थे.
सबसे बड़ा भाई बोला – हे माँ, मैंने उस लड़की से ब्याह करना है जो बिलकुल मेरी बीरा बैणी जैसी होगी. उसके बाल ऐसे ही सोने जैसे चमकने वाले होंगे. अब माँ ने बीरा जैसी लड़की की ढूंढ शुरू कर दी. पर बाबा कख मिलदी बीरा जनी नोनी. बीरा त बाबा बस सर्या दुन्या म एक ई छई.
सभी गांवों में माँ बीरा जैसी सुनहरे बालों वाली लड़की खोज-खोज के थक गयी. बड़ा भाई अपनी जिद पर अड़ा रहा. जब माँ थक गयी तो बोली तू बीरा से ही ब्याह कर ले. बीरा बहुत रोई. उसने माँ को और भाइयों को मनाने की बहुत कोशिश की. क्वी नी मानु बाबा. त बस होना क्या था. ब्याह की तैयारी शुरू हो गयी. कहाँ जाती बिचारी. औरतों के दो ही घर आप का या बाप का. यहाँ तो बाप के घर में ही उसका ठिकाना नहीं था.
एक दिन सुबेर के झटपुटे में जब धार में बिएणा आ ही रहा था अर घर के सब लोग सो रहे थे बीरा सूम साम उठी और घर से निकल गयी. उसने सोचा चाहे कुछ हो जाए भाई के साथ ब्याह तो नहीं ही करना है. थोड़ी ही दूर पंहुची थी कि उसे अपने पीछे खड़बड़ खड़बड़ की आवाज सुनाई दी.
देखती क्या है कि सबसे छोटा भुला खुड़बुड़-खुड़बुड़ पीछे से आ रहा है.
उसे देख कर बीरा दणमण-दणमण रोने लगी. उसने अपने भुला को सांखी से लगाया और उसे घर वापिस जाने की जिद करने लगी. भुला की आँखी अंसधारी से टलबला रही थी. बोला – दिदि जहाँ तू जायेगी वहीं मै भी आऊंगा. सूना दिदी तुझे अकेले डर लगेगी न चल मै तेरे साथ चलता हूँ. अर लग गए बाबा दोनों बाट. चलते-चलते दूर बण में पहुंच गए.
वहीं पर एक छानी बना के रहने लगे. छानी के सामने ही ठन्डे साफ़ पानी से भरा गधेरा बहता था. दोनों भाई-बहन दिन भर जंगल से कंद-मूल और लकड़ी बीनते. छोटा भुला आसपास के गाँवों में लकड़ी बेच आता अर आटा-चावल खाने-पीने की चीजें मोल ले आता.
हे राम बाबा एक दिन बीरा जब गधेरे में नहा रही थी उसके सोने जैसे लटुली बह कर दूर चली गयी. उसी जंगल में एक राजा शिकार खेलने आया था. राजा को लगी तीस अर वो पानी पीने गधेरे के किनारे रुक गया. देखता क्या है कि गधेरे के किनारे लगे सिंवाले (काई) में सोने के तारों का गुच्छा फंसा हुआ है. इतने घने जंगल के बीच सोने के तारों को देख कर राजा अचरज में पड़ गया.
उसने सिंवाले को छुड़ा कर सोने के तार अलग किये त वो निकला सोने जैसे बालों का गुच्छा. राजा तो राजा हुआ. उसने सोचा जिसके बाल इतने सुन्दर है वो खुद कितनी स्वाणी होगी. मैंने तो इसी सोने के बालों वाली लड़की से ब्याह करना है. राजा की हठ हुई बाबा जो मन मी ठानी सो ठानी. अर निकल गया ढूँढ़ में. अगर बाल यहाँ इस सूमसाम जगह में हैं तो बाल वाली भी यहीं होनी चाहिए. अर गधेरे के किनारे किनारे लग गया बाट वो राजा.
खोजते-खाजते एक छानी के आगे राजा को घाम में बाल सुखाती बीरा मिल ही गयी. राजा तो बीरा को देख कर मोहित हो गया. राजा तो राजा हुआ, बोला – ए लड़की मुझे तू बहुत भली लगी. अब मैं तेरे साथ ही ब्याह करूँगा. चल मेरे साथ. राजा को देख कर अर उसकी बात सुन कर बीरा डर गयी बोली अभी मेरा भुला लकड़ी बेचने गया है जब वो आ जाएगा तुम तब तक रुक जाओ.
राजा हुआ हठी. उसने बीरा की एक नहीं सूनी.
वो कितना रोई कितनी मिन्नतें की. पर राजा टस से मस नहीं हुआ. उसने उठाया बीरा को अर चल दिया. बीरा कारुणा करने लगी हे ब्वेई मेरा भुला आएगा. खाली छानी देख कर उसका परान फट से फटकरायेगा. पर राजा के आगे उसकी एक नी चली. तभी उसके दिमाग में एक उपाय सूझा. उसने अपने गले की माला तोड़ी अर सारे रास्ते में एक एक दाणी गिराती गयी. इसी माला की दाणीयों को देख कर मेरा भुला सीधा मेरे पास आ जायेगा.
रुमुक होने पर भुला घर आया. पर घर तो सूमसाम पड़ा था. दीदी को घर में न देख कर सूना दीदी सूना दिदी धै लगाने लगा. सूना वहां होती तो बोलती. द बाबा सूना तो पंहुच गयी राजा के बड़े से महल में. चारों तरफ राजा के ब्याह की धूम मच गयी पर सूना क्याच कि रोती जाती अर अपने भुला को याद करती जाती. उधर बीरा का भुला रोता अर सब पेड़ पौधो, पौन पंछियो से पूछता हे तुमने मेरी सूना दिदी को देखा क्या.
कहाँ होगी मेरी सूना दिदी, कैसी होगी. जैसे तैसे रोते-धोते रात कटी. सुबह होते ही दिदी की खोज में निकल पड़ा. तभी उसे रास्ते में माला की दो दाणी दिखाई दी. हे भगोती ये तो मेरी सूना दिदी की माला है. वो जोर-जोर से रोने लगा. उसको रोता देख पशु पक्षी सब रोने लगे पर बाबा उनकी जुबान होती तो कुछ बताते. बिचारे बेजुबान क्या कहते.
भुला माला की दाणीयों के भरोसे चलता गया. वो टुपटूप दाणी उठाता और बाटो-बाट गुरगूर चलता गया. वो समझ गया कि जिधर माला की दाणी गयी दिदी भी उधर ही गयी है. शाम होते वो एक महल के सामने पंहुच गया. उसने दरबानों से पूछा तुमने मेरी सूना दिदी को देखा. वो यहीं आई है. दरबान तो अपने राजा के ब्याह की धूमधाम में मस्त थे. बोले – चल छोरा भाग यहाँ से यहाँ तो हमारे राज का ब्याह है. हमें पहरेदारी करनी है भाग यहाँ से. भुला रोता हुआ एक किनारे खड़ा हो गया.
बाहर से कुछ मेहमान अंदर जा रहे थे. भुला बोला – ऐ मेहमानो कहीं मेरी सूना दिदी भी देखी तुमने. मेहमान बोले – चल छोरा भाग यहाँ से वार त हमारे राजा का ब्याह है अर तुझे अपनी सूना दिदी की लगी है. हट हमें ब्याह में जाने की अबेर हो रही है. तभी सामने से ढोल दमों वाले तण-मण तण-मण ढोल बजाते आ गए. भुला दौड़ के ढोल वाले के पास गया हे औजी भैजी तूने मेरी सूना दिदी भी देखी कहीं. उसके सोने जैसे बाल हैं.
ढोल वाले को आया गुस्सा बोला चल छोरा वार त हमारे राजा का ब्याह है हट हमें ढोल बजाने जल्दी जाना है. जब भुला रो रो के बार बार पूछता रहा तो औजी को आया गुस्सा अर उसने चट ढोल का पूड़ा खोला अर भुला को ढोल में बंद कर दिया.
अब जैसे ही औजी ढोल बजता ढम-ढमाँ-ढम-ढम. भुला भीतर से बोलता सूना दिदी ढोलकी पुटुक, सूना दिदी ढोलकी पुटुक. ढोल की आवाज के साथ आती सूना दिदी की आवाज बीरा ने सुन ली. वो राजा से बोली मेरे भुला की रोने की आवाज आ रही है. जब तक तुम मेरे भुला को नहीं लाओगे मै ब्याह नहीं करूंगी.
अब मच गी बाबा ढूंढ. कख होलु बीरा कु भुला. होते करते राजा के सिपाही ढोल वाले के पंहुचे. भुला ढोल के पूड़े के भीतर बैठा बोलता जा रहा था सूना दिदी ढोलकी पुटुक. राजा के सिपाहियों ने औजी को धमकाया खोल ढोल का पूड़. ये रोने की आवाज यहीं से आ रही है. औजी डर गया और पूड़ा खोल दिया. द सब देखते क्या हैं कि ब्योली का भुला रोता जा रा अर बोलता जा रा सूना दिदी ढोलकी पुटुक.
बीरा को देख कर भुला दौड़ कर अपनी सूना दिदी की गलककंठी से लटक गया अर दोनों दिदा भुला खुशी से रोने लगे. अर राजा ने उन सबको सजा सुनाई जिन्होंने भुला को झिड़का था. बीरा राजा से बोली इन सबको माफ़ कर दो भुला भी मिल गया अर हमारा ब्याह भी हो रहा है. बीरा खुश, राजा खुश, भुला खुश अर सरया परजा खुश.
द बाबा जन बीरा के भाग खुले ऐसे सबके खुलें. ज्यूंदा रै जगदा रैन सभी.
-गीता गैरोला
देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.
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