महान कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, गायक, गीतकार, संगीतकार, चित्रकार, प्रकृतिप्रेमी, पर्यावरणविद और मानवतावादी रवीन्द्रनाथ टैगोर पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला. उन्हें भारत व बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान रचने के लिए भी जाना जाता है.
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को उत्तराखण्ड के अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य व शांति से अगाध स्नेह था. वे कई दफा उत्तराखण्ड की यात्राओं में आए.
1901 से 1904 के बीच टैगोर कई दफा कुमाऊँ में नैनीताल जिले के रामगढ़ आये. उन्होंने यहाँ अपना ख़ासा वक्त गुजारा. इस बात के भी प्रमाण हैं कि टैगोर ने अपनी कालजयी रचना ‘गीतांजलि’ का का कुछ हिस्सा रामगढ़ में लिखा. गुरुदेव पहली दफा रामगढ़ में अपने मित्र डैनियल के मेहमान बनकर रामगढ़ आये. खण्डहर में तब्दील हो चुके इस बंगले को स्थानीय लोग आज भी शीशमहल के नाम से जानते हैं. बाद में टैगोर ने रामगढ़ में खुद का बंगला बनवाया, जिसके खण्डहर आज भी मौजूद हैं. इस जगह को टैगोर टॉप के नाम से जाना जाता है. टैगोर अपनी तपेदिक की बीमार बेटी के इलाज के लिए यहाँ आये, जिनकी बाद में दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गयी.
यह बहुत महत्वपूर्ण बात इसलिए है कि टैगोर बंगाल के रहने वाले थे, जिसके करीब ही पहाड़ों की रानी कहा जाने वाला दार्जिलिंग है. इसके बावजूद टैगोर ने ‘गीतांजलि’ के कुछ हिस्से लिखने के लिए रामगढ़ को चुना. ‘शांति निकेतन’ के कई जिम्मेदार लोग बताते हैं कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर शांति निकेतन की स्थापना रामगढ़ में ही करना चाहते थे. लेकिन बेटी व बाद में पत्नी के असामयिक निधन के बाद वे निराश होकर यहाँ से चले गए.
उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि गुरुदेव की इन यात्राओं से जुड़ी जगहों और वस्तुओं को सहेजा नहीं जा सका. आज भी रामगढ़ के टैगोर टॉप में वह बंगला खस्ताहाल हालत में मौजूद है जहाँ टैगोर रहे थे. जहाँ उन्होंने गीतांजलि का कुछ हिस्सा लिखा था. रामगढ़ को फल पट्टी के रूप में देश-दुनिया जानती है. रामगढ़ महादेवी वर्मा और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि भी है इसे विरले ही लोग जानते हैं. सरकारों ने इस विषय में कभी कोई दिलचस्पी नहीं ली.
व्यक्तियों, समूहों के प्रयासों से पहले रामगढ़ को महादेवी वर्मा की कर्मभूमि के तौर पर स्थापित करने के सफल प्रयास हुए और अब इसे गुरुदेव टैगोर की कर्मभूमि के तौर पर सामने लाने के प्रयास रंग लाने लगे हैं.
डीएसबी कैम्पस नैनीताल के वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष व संकायाध्यक्ष प्रो. अतुल जोशी ने लगभग 5 साल पहले ‘हिमालयन एजुकेशनल रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी’ के बैनर तले टैगोर टॉप को पहचान दिलाने के प्रयास शुरू किये. आज से 2 साल पहले इस सोसायटी को ट्रस्ट में बदलकर ‘शांति निकेतन ट्रस्ट फॉर हिमालया’ का गठन किया गया. सोसायटी की 15 सदस्यीय कमिटी का प्रयास है कि रामगढ़ में शांति निकेतन का निर्माण हो. इसमें शुरूआती सफलताएँ भी मिल चुकी हैं. फिलहाल टैगोर टॉप को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला पैदल मार्ग अब मोटर वाहन जाने लायक बनाया जा चुका है.
(प्रो. अतुल जोशी से बातचीत के आधार पर, फोटो भी उन्हीं के सौजन्य से)
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