पहाड़ और मेरा जीवन –29 हमारे परिवार के जम्मू से ठूलीगाड़ आने की वजह पिताजी थे, जिन्होंने फौज में अफसर बनने के सात असफल प्रयासों के बाद अपना मानसिक संतुलन खो दिया था. पिथौरागढ़ में जब मां काल... Read more
पिथौरागढ़ का मां कामाख्या मंदिर
अगर आप कभी पिथौरागढ़ गये होंगे तो कामख्या देवी के मंदिर से जरूर वाकिफ़ होंगे. पिथौरागढ़ झूलाघाट मार्ग पर स्थित सैनिक छावनी के ठीक ऊपर पहाड़ी पर एक भव्य मां कामाख्या मंदिर है. सैन्य छावनी क्षेत्र... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन –28 पहाड़ों में गुजरे बचपन के दिनों को याद करते हुए इधर दो बातें हुईं. पहली यह कि मैंने छत्तीस साल के बाद पहली बार अपनी सातवीं क्लास की एक सहपाठी कविता पांडे से बात की. उस... Read more
नारायण सिंह थापा: बन्दूक से कैमरा तक का सफर
जब एन.एस. थापा की पहली डॉक्युमैन्ट्री फिल्म देखी मैं 10-11 साल का था और कैलेन्सी हाईस्कूल मथुरा में कक्षा 6 का छात्र था. गांव लौटने पर फिल्में दूर हो गई. फिर कालेज में आने पर बालीवुड या हाली... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन –27 मैं आप लोगों को इस बार केंद्रीय विद्यालय पिथौरागढ़ का किस्सा सुनाने जा रहा हूं. उन दिनों मैं कक्षा सात में पढ़ता था. जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था कि कैसे एक रात मे... Read more
यह विडम्बना ही है कि जब तक करम सिंह जीवित रहे, वे अन्जान बने रहे. अब जब वह नहीं हैं, हम उनकी खोज कर रहे हैं. अब उनके बारे में यथेष्ठ और प्रमाणिक जानकारी नहीं है. 1966 में जब मैंने अपने अध्यय... Read more
उत्तराखण्ड की शान है उन्मुक्त चन्द
26 मार्च 1993 को जन्मे युवा क्रिकेटर उन्मुक्त चन्द की जड़ें उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले के छोटे से गाँव खड़कू भल्या में हैं. उनके पिता भरत चन्द ठाकुर और उनकी माता श्रीमती राजेश्वरी चन्द दोनों... Read more
उत्तराखंड में इन दिनों भिटौली का महीना है. इस महीने भाई अपनी बहन या पिता अपनी पुत्री को भिटौली देते हैं. भिटौली के विषय में अधिक इस लेख में पढ़िए. भै भुको, मैं सिती : भिटौली से जुड़ी लोककथा इस... Read more
सफल यात्रा का आशीर्वाद देता गुरना माता का मंदिर
टनकपुर तवाघाट राजमार्ग पर पिथौरागढ़ मुख्यालय से 13 किमी की दूरी पर स्थित है मां गुरना देवी मंदिर. गुरना गांव में मंदिर होने के कारण इसे गुरना मंदिर कहा गया है जबकि मंदिर का वास्तविक नाम पाषाण... Read more
लोकथात व परंपरा का संगम स्थल : थल
मानसरोवर के निचले भागों में सरिता रूप लेने के क्रम में बांसबगड़, बिरथी, मुनस्यारी, नाचनी, हुबुली, बाघी क्विटी, झिनियां व बंजाणी की छोटी गाड़ें व नाले आकर मिलते हैं रामगंगा में. पुगाराऊं के स्य... Read more
Popular Posts
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा
- पहाड़ी जगहों पर चाय नहीं पी या मैगी नहीं खाई तो
- भाबर नि जौंला: प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध