सन् चौहत्तर के आस-पास की बात है. कोटद्वार में कर्मभूमि के संपादक स्व० भैरवदत्त धूलिया के घर में टिंचरी माई और पीताम्बर डेवरानी बैठे थे. माई किसी वजह से अस्थिर थीं. बातें करते-करते उठतीं और ज... Read more
नशा हमेशा से ही उत्तराखण्ड की प्रमुख समस्या रहा है. उत्तराखण्ड की जनता इस असमाधेय समस्या के खिलाफ समय-समय पर उठ खड़ी होती है. आज भी शराब के ठेकों की नीलामी के समय समूचा पहाड़ शराब माफियाओं और... Read more
Popular Posts
- कानून के दरवाजे पर : फ़्रेंज़ काफ़्का की कहानी
- अमृता प्रीतम की कहानी : जंगली बूटी
- अंतिम प्यार : रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी
- माँ का सिलबट्टे से प्रेम
- ‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी
- भूत की चुटिया हाथ
- यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना
- पहाड़ों में मत्स्य आखेट
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं
- स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि
- सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी
- उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल
- अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन
- नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम
- रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता
- यम और नचिकेता की कथा
- अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार