महाराष्ट्र की डेमोक्रेसी और अमरू मडवाण के बैल
महाराष्ट्र में सत्ता प्रकरण से संबधित तेजी से बदल रहे घटनाक्रम से मजा ले रहे सोशल मीडिया के सुधी जनों की पोस्टों और टिप्पणियों को देखकर मुझे अपने गाँव का मरहूम शख्स अमरू मडवाण याद हो आता है.... Read more
आदमी को जमूरा बनाने में उस्ताद हुआ शहर-ए-अल्मोड़ा
चुर्रेट मुर्रेट जादू की लकड़ी घुमाईईलम के जोर से हाथ की सफाईबोल शिताबी क्या लेगासास बड़ी कि बहूबाप बड़ा कि बेटाधूल में फंक लगाकर रुपया बना दूंडुग डुग डुग डुग डुग डुग डुग डुग चल बेटा घुचड़ू ... Read more
उस बरस चुनाव का मौसम जोरों पर आया. चुनाव-कार्यक्रम आने में देर थी, लेकिन उठा-पटक, उखाड़-पछाड़ का दौर काफी पहले से ही शुरू हो गया. (Elections Satire Lalit Mohan Rayal) हर कोई, बस इसी फिराक मे... Read more
टामेबाजी का अल्मोड़ा से और अल्मोड़ा का टामेबाजी से संबंध बहुत गहरा और प्रागैतिहासिक है
कहते हैं कि अंग्रेजों के राज में सूरज कभी अस्त न होता था. तमाम प्रकार की बाँस-बल्लियों के सहारे अपने सूरज को हर तरफ़, हर जगह उगा हुआ दिखाना नजूमी अंग्रेजों की ही बस की बात ठीक और किसी की नही... Read more
होशियारी की मिसाल होते हैं. इंग्लैण्ड-अमेरिका में. विश्वास न हो तो उनके साहित्यकोश की तलाशी ले लो. एज़ वाइज़ एज़ एन आउल, आपको जरूर मिल जाएगा. गांधीनुमा गोल चश्मे पहना शख़्स इन अंग्रेजों को आ... Read more
ईजा (माँ) ये हाईस्कूल की मार्कशीट में लिखी जन्मतिथि तो बाज्यू/काक ज्यू (पापा/चाचा जी) एडमिशन के टाइम ऐसे ही लिखा आए थे लेकिन मेरी असल जन्मतिथि क्या है? ये एक ऐसा सवाल है जो 90 के दशक तक उत्त... Read more
ठेसबुक में लाठी, कट्टे, तमंचे के प्रवेश की व्यवस्था हेतु मारक जोकर बर्ग के नाम प्रार्थना पत्र
सेवा में, श्रीमान मारक जोकर बर्ग जी मुख्य अभियंता ... Read more
ट्रैफिक चालान से कैसे बचें
चालान से बचने का सबसे पहला तरीका तो यही है कि गाड़ी घर से निकाली ही न जाए. गाड़ी घर से निकलेगी तो सड़कों पर चलेगी. सड़क पर चलेगी तो ड्राइवर को अपना बचपन याद आएगा. बचपन से ही लगभग सभी आम भारत... Read more
नये ट्रैफिक नियमों के बाद चौराहे पर काबिलियत दिखाने को लालायित हैं पुलिस वाले
आज चौराहों पर बडी हलचल है. पुलिस, ट्रैफिक पुलिस और उनके सहयोगी होमगार्ड वाले मुस्तैदी से तैनात हैं. ऐसा नहीं है कि ये पहले तैनात नहीं होते थे पर अब ऐसा लगता है सरकार ने इनको परमाणु हथि... Read more
बात सन दो हज़ार पचास की
बात सन दो हज़ार पचास की है. ये वो समय था जब युवा विभिन्न वीडियो साइट्स पर डालने के लिये अपने वीडियो बनाते रहते थे,और फुर्सत मिलते ही फुलकी/पानीपूरी, मोमोज़ का ठेला लगा लेते थे. बाकी अधिकांश... Read more
Popular Posts
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा
- विसर्जन : रजनीश की कविता
- सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं
- भू विधान व मूल निवास की लहर
- उत्तराखंड हिमवंत के देव वृक्ष पय्यां
- मुखबा गांव का आतिथ्य
- प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
- प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
- असोज की घसियारी व घास की किस्में
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
- परम्परागत घराट उद्योग
- ‘गया’ का दान ऐसे गया
- कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
- यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
- कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
- शो मस्ट गो ऑन
- सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल
- चप्पलों के अच्छे दिन
- छिपलाकोट अंतरयात्रा : चल उड़ जा रे पंछी
- बिरुण पंचमि जाड़ि जामलि, बसंतपंचमि कान कामलि
- ‘कल फिर जब सुबह होगी’ आंचलिक साहित्य की नई, ताज़ी और रससिक्त विधा