1897 से होती है पिथौरागढ़ में रामलीला
पिथौरागढ़ में रामलीला सन 1897 से लगातार हो रही है. भीमताल के देवीदत्त मकड़िया को यहां रामलीला शुरू कराने का श्रेय जाता है. वे सोर के परगनाधिकारी मंडलाधीश कहलाते थे. शुरुआत में एक कामचलाऊ रामली... Read more
पिथौरागढ़ रामलीला में लम्बे समय तक शूर्पणखा का किरादर निभाने वाले कल्लू चाचा उर्फ़ खुदाबख्श
पिथौरागढ़ की रामलीला में सबसे लंबे समय तक एक ही पात्र का अभिनय करने का कीर्तिमान संभवतः कल्लू चाचा उर्फ़ खुदाबख्श के नाम होगा. कल्लू चाचा ने किशोरावस्था से बुढ़ापे तक एक ही पात्र किया – श... Read more
रामलीला मंचन के शुरुआती वर्षों में प्रकाश व्यवस्था के लिये चीड़ के पेड़ के छिल्कों का प्रयोग किया जाता था. कच्चे पतले पेड़ों को काटकर रामलीला मंच के चारों ओर गाड़ दिया जाता और छिल्कों के गुच्छों... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
