हेमंत ऋतु में पहाड़
चातुर्मास से आरम्भ खेती के काम रवि की फसल बो लेने के बाद ढीले पड़ जाने वाले हुए. चातुर मास खत्म होने पर ‘मेफाड़ा’ त्यार मनता जो यह संकेत देता कि अनाज की खेती बाड़ी के काम बहुत क... Read more
हवाई पट्टी फैलेगी खेत सिमटेंगे अभयारण्य सिकुड़ेगा
राजाजी नेशनल पार्क के समीपवर्ती “थानो वन” अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है. ऋषिकेश से ऊपर चढ़ें तो रानीचौरी के पहले से ही हाथी कोरिडोर शुरू हो जाता है. भांति-भांति के... Read more
बाईस बरस की आयु में एक नौजवान अपने आस पास की दुनिया में बदलाव के लिए “उत्तरकाशी भ्रष्टाचार निरोधक संघ” की बुनियाद डालता है जिसे वह “आदर्श नागरिक संघ” नाम देता है. यह... Read more
कत्यूरी कुमाऊँ का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश था. कुमाऊँ के इतिहास पर लेखनी चलाते समय कत्यूरियों के पुराने अवशेषों को देखना आवश्यक है, यही सोच हमने मई के अंतिम सप्ताह में कत्यूर पट्टी की यात्रा की... Read more
वामन चोरधड़े मराठी लोकजीवन और लोकसाहित्य के गंभीर अध्येता रहे हैं इसलिए ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण उनकी कहानियों में पाया जाता है. समसामयिक घटनाओं को अपने कथ्य का आधार बनाते हुए उन्होंने... Read more
पहाड़ में दिवाली, धान और उसके पकवान
दिवाली में जिस धान्य का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है वह है धान. धान को शुभ माना जाता है. देवता को अक्षत वारने से ले पिठ्या लगाने कलश स्थापन, भूमि पूजन, संकल्प पूजन में इसका प्रयोग होता है. अखं... Read more
पहाड़ में पेड़-पौंध और खेती-पाती का लोक नामकरण
पहाड़ में पेड़ पौंधों के प्रति आदर का भाव रहा है इसीलिए उन्हें वनदेवता-वनदेवी के रूप में धार्मिक आधार मिला. वृक्ष एवं वनों को सक्रिय तत्व के रूप में सम्मान दिया गया. इनसे प्राप्त कच्चा माल द... Read more
तिब्बत व्यापार की अनोखी प्रणालियां और बंदोबस्त
तिब्बत में भोटान्तिकों का व्यापार वहां की अनेकानेक मंडियों में होता था. इनमें मुख्य तकलाकोट, ज्ञानिमा, गरतोक, चकरा, शिवचिलम, ख्युंग लिङ्ग, दरचेन, कुंलिङ्ग, थुलिङ्ग, पुंलिङ्ग, नावरा, लामा छोर... Read more
भोटान्तिक व्यापार के रास्ते, तरीके और माल असबाब
मल्ला दारमा के भोटान्तिकों का व्यापार पथ जो अजपथ और अश्व पथ से विकसित हुआ वह दारमा दर्रे (18510फ़ीट) से हो कर जाता था. वहीं व्यांस और चौंदास पट्टियों के भोटान्तिक लंगप्याँलेख (18150 फ़ीट) और... Read more
भोटान्तिक अर्थव्यवस्था और हूण देश से व्यापार
इतिहास के पुराने पन्नों में गंगा के मैदानों से हिमालय की गगनचुम्बी उपत्यकाओं की ओर अपने पशुओं के साथ बढ़ती भिल्ल किरात जाति के प्रवेश की गाथा है. पशुचारकों का जीवन जीते प्रकृति के सान्निध्य... Read more
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