नैनीताल में नसीरुद्दीन शाह के शुरुआती दिन
देश के सर्वकालीन महानतम अभिनेताओं में से एक नसीरुद्दीन शाह ने अभी कुछ दिन पहले अपना जन्मदिन मनाया है. यह अलग बात है कि अपनी आत्मकथा ‘ एंड देन वन डे’ में वे लिखते हैं – “मेरा जन्म लखनऊ के नजद... Read more
सी. डब्लू. मरफी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊँ’ (1906) से आप अनेक दिलचस्प विवरण पढ़ चुके हैं. आज इस किताब से पढ़िए अल्मोड़ा और नैनीताल के बीच आने-जाने की व्यवस्था के बारे में कुछ रोच... Read more
निश्चित ही कब्रिस्तानों का एक आकर्षण होता है! निस्तब्धता, निरभ्रता, शायद इस जगह से मुखर कहीं ओर नहीं होती. और फिर पहाड़ों के कब्रिस्तान तो सम्मोहित सा करते हैं अक्सर. नैनीताल, रानीखेत, अल्मो... Read more
कुमाऊँ के बेताज बादशाह सर हेनरी रैमजे
भारत में अंग्रेज़ लोग लगभग दो सौ साल तक रहे जिसमें कि ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन काल सौ वर्षों तक— 1757-1858 व ब्रिटिश क्राउन किंगडम का शासन नब्बे वर्षों— 1858.1947 तक रहा. ब्रिटिश शासन... Read more
नैनीताल के पर्यटन व्यवसाय की कुकुरगत्त
उत्तराखण्ड के कई पर्यटन स्थल सरकारी पर्यटन नीति के रहमोकरम पर नहीं हैं, इनमें से एक है नैनीताल. नैनीताल मसूरी के बाद राज्य का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. सैलानियों के बीच नैनीताल... Read more
तब कुत्ता टैक्स भी देना होता था नैनीताल में
आज जब नैनीताल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अनेक स्तरों पर जूझ रहा है यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस नगर को बने अभी दो दौ साल भी नहीं बीते हैं उसकी ऐसी हालत कैसे हुई होगी. सी. डब्लू. मरफी की क... Read more
अपने कैमरे से जादू करते हैं अमित साह
नैनीताल में रहने वाले युवा फोटोग्राफर अमित साह की अप्रतिम फोटोग्राफ्स पर हम कई बार लिख चुके हैं और उनके काम की अनेक शानदार बानगियाँ आपको समय-समय पर दिखाते रहे हैं. (Camera Magic Amit Sah Nai... Read more
कुमाऊँ-गढ़वाल में बाघ के बच्चे को मारने का दो रुपये ईनाम देती थी क्रूर अंग्रेज सरकार
आज जब कि सारी दुनिया में वन्यजीवों को बचाने के लिए आन्दोलन चलाये जा रहे हैं और सरकारें ‘बाघ बचाओ’ जैसे प्रोजेक्ट्स पर अरबों रुपये खर्च कर रही हैं, भारत में ब्रिटिश राज के दौरान एक समय ऐसा भी... Read more
बाबू का घर छोड़ना और अकेले बालक का संघर्ष – त्रिलोक सिंह कुंवर की आत्मकथा का दूसरा हिस्सा
(पिछली कड़ी – पिछली सदी के पहाड़ का दर्द जी उठता है त्रिलोक सिंह कुंवर की आत्मकथा में) जब मैं छात्रावास में ही था, अगस्त 1938 के पहले हफ़्ते में मुझे एक हरकारे द्वारा छः पन्ने का पत्र प्... Read more
अपने बचपन के गाँव को ठीक-ठीक आज न स्मरण कर पाने का एक बड़ा कारण शहर आने के बाद उत्तराखंड राज्य को लेकर चलनेवाला जन-आन्दोलन और उसमें कुछ हद तक मेरी अपनी हिस्सेदारी भी थी. (Uttarakhand poor des... Read more
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