लोक कथा : श्राद्ध की बिल्ली
किसी जमाने की बात है. एक गांव में सास-बहू रहा करते थे. जैसा की पहाड़ों के हर घर में होता है कि लोग पालतू जानवर रखा करते हैं. सास-बहू ने भी एक बिल्ली पाल रखी थी. वह बिल्ली हमेशा कभी सास तो कभ... Read more
बुरा मान गए हमारे पितर
चौमास बीता. श्राद्ध भी बीत गए. आस पास के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े, कच्चे बच्चे सब श्राद्धों का खाना खा के तृप्त थे. खेतों सग्वाडो में कद्दू पक के पीले पड़ गए. ककड़ियां पीली लाल... Read more
धौली और नन्दा की कथा
कार्तिग के महीने गांव के ऊपर नीचे की सारियां फसल काटने के बाद खाली हो जाती. आसमान बरसात के बाद गहरा नीला ये स्यो (सेब) जैसे बड़े बड़े तारों से अछप रहता. हम सब बच्चे चौड़ी फटालों वाले आँगन में अ... Read more
सरग ददा पाणी दे
चौमासे की झुर-झुर ख़त्म होने के बाद का, भीगी खुनक लिए पहाड़ों का मौसम अपने परदेसियों को धाद (आवाज) देने लगता है. दोनों फसलें पक के तैयार होने लगती हैं. एक तरफ धान की पिंगलाई दूसरी तरफ कोदा (मं... Read more
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