दूर उत्तराखंड के पहाड़ों से रैबार देने वाले पत्रकार साथी संजय चौहान और शैलेंद्र गोदियाल का कहना है कि उत्तरकाशी और टिहरी जिले के जंगलों में इन दिनों नील कुरेंजी के फूलों की बहार आ गई है. खास... Read more
बम्बइया पिक्चर की कहानी, दिल्ली की थकान और कुमाऊं का लोकगीत: देवेन मेवाड़ी की स्मृति में शैलेश मटियानी
सन् साठ के दशक के अंतिम वर्ष थे. एम.एस.सी. करते ही दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में नौकरी लग गई. आम बोलचाल में यह पूसा इंस्टिट्यूट कहलाता है. इंस्टिट्यूट में आकर मक्का की फसल पर शो... Read more
ओ चड़ी कलचुड़िया चड़ी
मेरा गांव-कालाआगर. नैनीताल से करीब 100 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में. इस ऊंची पर्वतमाला को जिम कार्बेट कालाआगर रिज कहते और लिखते थे. उस दिन ‘ब्लू ह्विसलिंग थ्रश’ यानी हमारी कलचुड़िया इतने कर... Read more
मंडुवा की रोटी भली, सिसुणा को साग
असल में लोकोक्ति है- “मंडुवा की रोटी भली, सिसुणा को साग.” बचपन में सुना ही सुना था. सिसुणा का साग बनता बहुत कम घरों में था. फिर भी, जहां बनता था, चखने को मिल जाता था. लेकिन, सच यह है कि जो स... Read more
मनोहर श्याम जोशी और विज्ञान
‘कुरू-कुरू स्वाहा’, ‘कसप’, ‘क्याप’ तथा ‘हमजाद’ जैसे गंभीर उपन्यासों के रचयिता, साहित्य अकादमी से सम्मानित साहित्यकार और ‘हम लोग, ‘बुनियाद, ‘हमराही’ तथा ‘गाथा’ जैसे अपने बहुचर्चित दूरदर्शन धा... Read more
प्रिय पल्लवी, तुम्हारा पत्र पाकर मुझे बहुत खुशी हुई. यह जान कर और भी अधिक हर्ष हुआ कि तुम में नई चीजों को सीखने और नई बातों को जानने की ललक है. तुमने लिखा है कि तुम पत्र लिख कर अपने सवालों क... Read more
फिर चांद के लिए इतनी चाहत क्यों?
50 वर्ष पहले 20 जुलाई 1969 को चांद की सतह पर मानव के वे पहले कदम पड़े थे. 8 बज कर 26 मिनट (कोआर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम) पर अपना बांया कदम चांद पर रखते हुए प्रथम चंद्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग... Read more
उसके चारों ओर एक शून्य विस्तार पाता जा रहा है
कहानी की कहानी-5 आज जब करीब पचपन वर्ष बाद ‘कहानी’ कथा-पत्रिका में देवेन नाम से छपी अपनी इस कहानी ‘अलगाव’ का पुनर्पाठ कर रहा हूं तो याद कर रहा हूं कि आखिर आदमी के अकेलेपन की यह कहानी मेरे मन... Read more
क्या विशाल ब्रह्मांड में हम अकेले हैं
न जाने नक्षत्रों में है कौन! हां, कौन जाने अंतरिक्ष में जगमगाते असंख्य नक्षत्रों के किस अनजाने लोक में न जाने कौन है? किसे पता? यही किसे पता कि विशाल ब्रह्मांड में नक्षत्र यानी तारे आखिर कित... Read more
खड़कदा – देवेंद्र मेवाड़ी की कहानी
कहानी की कहानी – 4 बखतऽ तेरि बलै ल्यूंल. तेरी बलिहारी जाऊं बखत (वक्त). कितना कुछ चला जाता है बखत के साथ. अब बताइए, आज कौन जानता है कि खड़कदा भी थे कभी? लेकिन, खड़कदा थे और खूब थे. आते-... Read more
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