पहाड़ की प्यारी घुघुती के बारे में सब कुछ जानिये
कोरोना काल के इसी सन्नाटे में उस दिन दो फाख्ते भी मिलने चले आए. जब भी फाख्तो को देखता हूं, और उनकी आवाज सुनता हूं तो गुजरे हुए जमाने की न जाने कितनी बातें याद आ जाती हैं. उत्तराखंड के अपने ग... Read more
वह मजदूर लड़की, विश्व परिक्रमा और बोगेनवेलिया – मजदूर दिवस पर देवेन मेवाड़ी की कलम से विशेष
उसका जन्म एक झोपड़ी में हुआ. माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे. रोज सुबह उठते और तैयार होकर काम की तलाश में निकल आते. कभी काम मिलता, तो शाम की दाल-रोटी का जुगाड़ हो जाता. काम नहीं मिलता तो भूखे पेट... Read more
आज बटरोही का 75वां जन्मदिन है – पुराने दोस्त देवेन मेवाड़ी याद कर रहे हैं उनके साथ बीते समय को
वह लड़का, मेरा दोस्त, आज उम्र के 75 वें पायदान पर कदम रख रहा है. Deven Mewari Remembers Student Days of Batrohi वह 1962 का वर्ष था जब मैं ओखलकांडा से ददा के साथ आगे पढ़ने के लिए नैनीताल पहुं... Read more
हमें अपनी इस धरती को बचाना ही होगा
स्याह रातों में कभी तारों भरा आसमान देखा है आपने? अगर हां तो आसमान में आरपार फैली कहकशां और उसके चमकते बेशुमार तारों को भी जरूर देखा होगा. उन्हीं तारों में से एक तारा हमारा है. हमारा आफ़्ताब... Read more
फूलों का मौसम आ गया
पहाड़ में इन दिनों वनों में लाल-लाल बुरांश के फूल खिल गए हैं. हरे-भरे वनों में जहां नजर डालो, लगता है बुरांश के पेड़ों ने लाल ओढ़नी ओढ़ ली है. बचपन में सुना वह गीत कानों में गूंजने लगा हैः (... Read more
भिटौली : भाई-बहिन के प्यार का प्रतीक
उत्तराखंड में चैत्र माह में प्यूंली के पीले और बुरांश के लाल फूल खिल कर वसंत ऋतु के आगमन का संदेश दे देते हैं, बच्चों की टोलियां अपनी नन्हीं टोकरियों में रंग-बिरंगे फूल भर कर चैत्र माह के पह... Read more
चंद्र दत्त पंत मास्साब की स्मृति में
मैं उनसे पहली बार आज से ठीक 58 वर्ष पूर्व मार्च 1962 में मिला था. मैंने वहां लीलावती पंत इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा दी थी. अपनी पुस्तक ‘मेरी यादों का पहाड़’ में मैंने उस समय को शिद्दत से... Read more
अनोखी शख्सियत थे कैलाश साह यानी कैलाश दाज्यू
एक अनोखी शख़्शियत थे कैलाश साह यानी कैलाश दाज्यू. एक में अनेक थे वे, किसी के लिए पत्रकार, किसी के लिए समर्पित विज्ञान लेखक, किसी के लिए गजब के किस्सागो, किसी के लिए हमदर्द दोस्त, तो किसी के... Read more
पहाड़ों में पाया जाने वाला फल जिसे चंगेज खां अपने सैनिकों को उनकी याददाश्त बढ़ाने के लिये खिलाता था
कुछ समय पहले पहाड़ से कवि-कथाकार मित्र अनिल कार्की ने नन्हे, सुंदर, सिंदूरी फलों से लदे एक अनजाने पौधे का फोटो भेजा. लिखा था, ‘सिरदांग में हमने इसका जूस पीया था. आपका परिचय जरूर होगा इस पेड़... Read more
कहां गया हमारे पहाड़ का चुआ
अब तो भूले-बिसरे ही याद आता है हमें रामदाना. उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. बचपन में मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, स... Read more
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