क्रिकेट के पुछल्लों के कारनामे
ऐसा कई बार हुआ है कि बोलिंग टीम सामने वाली के छक्के छुड़ा कर शुरुआती छः-सात विकेट सस्ते में निबटा लेती है, लेकिन पीछे वाले बल्लेबाज़ यानी टेल एन्डर्स भले भले गेंदबाज़ों की नाक में दम कर देते है... Read more
रात गहराने पर वह बास्केटबॉल लेकर सो जाता था
कुछ खिलाड़ी सचमुच अद्वितीय होते हैं, वे अपनी व्यक्तिगत शैली का इतना प्रभाव छोड़ते हैं कि खेल उनके आने के बाद पहले जैसा नहीं रह जाता. इधर के दशकों में हम क्रिकेट में सनत जयसूर्या का ज़िक्र कर सक... Read more
बिड़ला वाले बिष्टजी और गेठिया के भूत
बिष्ट गुरु जी नैनीताल के मेरे मशहूर रेजीडेंशियल स्कूल में हॉबी के पीरियड्स के दौरान बच्चों को अपनी वर्कशॉप में मैटलवर्क सिखाया करते थे. क्लासरूम में प्रायः किसी अध्यापक के छुट्टी में गए होने... Read more
फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट से रीयूनियन तक
पुराने मास्टरों और साथ पढ़ चुकी लड़कियों को जिस तरह और जितना इस युग में याद किया जा रहा है वैसा मानव-सभ्यता के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ. पैंतीस-चालीस से लेकर पैंसठ-सत्तर के लोगों के बीच फे... Read more
काने तिवाड़ी के धान – एक फसक
काने तिवाड़ी के धान – अशोक पाण्डे हमारे इधर पहाड़ों में तिवारी लोग तिवाड़ी कहे जाते हैं. गगास नदी के किनारे बसे एक गाँव में एक किसी तिवाड़ी का घर था. तिवाड़ी काना था यानी उसकी एक आँख फूटी ह... Read more
कुमाऊँ का छोलिया नृत्य
कुमाऊं का सबसे जाना-माना लोक नृत्य है छोलिया. इस विधा में छोलिया नर्तक टोली बनाकर नृत्य करते हैं. माना जाता है कि नृत्य की यह परम्परा एक से दो हज़ार वर्ष पुरानी है. नर्तकों की वेशभूषा और उनके... Read more
कब तक मुझ से प्यार करोगे? कब तक? जब तक मेरे रहम से बच्चे की तख़्लीक़ का ख़ून बहेगा जब तक मेरा रंग है ताज़ा जब तक मेरा अंग तना है पर इस के आगे भी तो कुछ है वो सब क्या है किसे पता है वहीं की ए... Read more
कैसे बनता है बरेली का मांझा : एक फोटो निबंध
‘कनकौए और पतंग’ शीर्षक अपनी एक रचना में नज़ीर अक़बराबादी साहेब ने पतंगबाज़ी को लेकर लिखा था: गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को “पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां... Read more
बागेश्वर के बाघनाथ मंदिर की कथा
पवित्र सरयू नदी के धरती पर अवतरण से सीधी जुड़ी हुई है बागेश्वर के विख्यात बाघनाथ मंदिर की कथा. मिथक है कि जब ऋषि वशिष्ठ सरयू गंगा को देवलोक से लेकर आ रहे थे, उसी समय मुनि मार्कंडेय उस स्थान प... Read more
Popular Posts
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा
- विसर्जन : रजनीश की कविता
- सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं
- भू विधान व मूल निवास की लहर
- उत्तराखंड हिमवंत के देव वृक्ष पय्यां
- मुखबा गांव का आतिथ्य
- प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
- प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
- असोज की घसियारी व घास की किस्में
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
- परम्परागत घराट उद्योग
- ‘गया’ का दान ऐसे गया
- कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
- यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
- कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
- शो मस्ट गो ऑन
- सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल
आइफ़िल टावर से क्रिकेट कमेंट्री
कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री – एलन मैकगिल्वरे -अशोक पांडे साल 1938. ऑस्ट्रेलिया. सर्दियों की एक निद्राहीन रात. विक्टोरिया, क्वींसलैंड और न्यू साऊथ वेल्स में तमाम घर रोशन थे, चिमनियों से... Read more