गोरी गंगा नदी पर बसी नयनाभिराम घाटी है जोहार की उपत्यका. जो घिरी है पंचचूली, राजखंबा, हंसलिंग और छिपलाकेदार पर्वत श्रृंखला से. अप्रतिम सौंदर्य के सम्मोहन से इसे “सौ संसार एक जोहार... Read more
1930 के दशक में पिथौरागढ़ जैसे दूरस्थ कस्बे में पहला रेडियो लाए धनीलाल और फिर दिखाया सोर वासियों को सिनेमा. इस पर एक लेख मुझे इतिहास के खोजी प्रवक्ता डॉ दीप चंद्र चौधरी ने सोर घाटी के जाने अ... Read more
एबट माउंट में ख़ब्बीस से इक मुलाक़ात
जी हाँ, ये मुलाक़ात सच्ची है महज़ किस्सागोई नहीं. ख़ब्बीस के मुलाकाती हैं पोलिटिकल साइंस में डी. लिट, दुबले पतले, बड़े पढ़ाकू, घुमक्कड़, हरफनमौला प्रोफेसर ज़ाकिर हुसैन. यारों के यार. इमोशनल... Read more
पहाड़ में सैणियों का प्रिय कमर का पट्टा
“नतिया, तु पूछण लाग रोछे यो सैणी कमर में के बांधनी?किले जे बांधनी? त यो भै भाऊ पट्ट, कमर में बांधणी पट्ट. येक भौते फैद भै”.(Hard Life of Pahadi Women) ये बताते कहते आमा ने अपनी क... Read more
नजर लगने से बचाने के लिये आमा-बूबू के टोने टोटके
जिसने मेरे लाल को नजर लगायी उसकी आँखें जल कर छार हो जाईं. रसोई में जलती बांज कुकाट की लकड़ियों के दहकते क्वेलों को पण्यू से टीप बड़े तवे में डाल आमा गुस्से में फनफनाई. बदजात काणी च्याव! म्या... Read more
हेमंत ऋतु में पहाड़
चातुर्मास से आरम्भ खेती के काम रवि की फसल बो लेने के बाद ढीले पड़ जाने वाले हुए. चातुर मास खत्म होने पर ‘मेफाड़ा’ त्यार मनता जो यह संकेत देता कि अनाज की खेती बाड़ी के काम बहुत क... Read more
हवाई पट्टी फैलेगी खेत सिमटेंगे अभयारण्य सिकुड़ेगा
राजाजी नेशनल पार्क के समीपवर्ती “थानो वन” अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है. ऋषिकेश से ऊपर चढ़ें तो रानीचौरी के पहले से ही हाथी कोरिडोर शुरू हो जाता है. भांति-भांति के... Read more
बाईस बरस की आयु में एक नौजवान अपने आस पास की दुनिया में बदलाव के लिए “उत्तरकाशी भ्रष्टाचार निरोधक संघ” की बुनियाद डालता है जिसे वह “आदर्श नागरिक संघ” नाम देता है. यह... Read more
कत्यूरी कुमाऊँ का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश था. कुमाऊँ के इतिहास पर लेखनी चलाते समय कत्यूरियों के पुराने अवशेषों को देखना आवश्यक है, यही सोच हमने मई के अंतिम सप्ताह में कत्यूर पट्टी की यात्रा की... Read more
वामन चोरधड़े मराठी लोकजीवन और लोकसाहित्य के गंभीर अध्येता रहे हैं इसलिए ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण उनकी कहानियों में पाया जाता है. समसामयिक घटनाओं को अपने कथ्य का आधार बनाते हुए उन्होंने... Read more
Popular Posts
- हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा
- हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत
- वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
- ऐपण बनाकर लोक संस्कृति को जीवित किया
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा