अन्वालों के डेरे और ब्रह्मकमल का बगीचा
अंग्रेज भले हमें सालों गुलाम बना कर गए हों उनके प्रति हमारा आकर्षण कभी कम नहीं हुआ. जैसे ही हमें कोई अंग्रेज नजर आता है हम कोशिश करते हैं कि कैसी भी अंग्रेजी में उससे बात कर ही लें. एक और मज... Read more
सिनला की चढ़ाई और सात थाली भात
पंद्रह अगस्त का दिन, बचपन से ही हमारे लिए उल्लास और उत्साह का दिन. लेकिन इस बार की पंद्रह अगस्त कुछ अलग रहा. चौदह को हम कुटी से चले तो दोपहर गुजरने तक ही ज्योलिंगकोंग पंहुच पाए. रास्ते में क... Read more
कौसानी से देवगुरु का दिलचस्प सफ़र
सुबह- सुबह जब हम कौसानी से निकले तो कोई अनुमान न था कि आज का दिन कितना लम्बा होगा. कल रात हमने सहृदय मित्रों की बदौलत आलीशान मखमली ग्रेवी वाली अंडाकरी जीवन में पहली बार पेट में उतारी और बादल... Read more
आखिरी गाँव में जबरदस्त जीवट की अकेली अम्मा
धरती गोल है और गोले में कोई बिंदु आखिरी नहीं होता. अक्सर आखिरी पहला हो जाता है. हिमालय की घाटियों में बहुत से गाँव आखिरी गाँव कहे जा सकते हैं. सबसे मशहूर आखिरी गाँव माणा है. लेकिन जैसा कि मै... Read more
घट के पाट और चोखी बसंतमूली की सब्जी
ह्यून में अच्छा झड़ पड़े और बसंत में डाल न बरसे तो हमारे गाँव में इतना गेहूं तो हो जाता कि छ: साथ महीने तक गुजारा चल जाय. जिस साल चौमास सही बरसा और ह्यून सूखा न जाए तो फागुन चैत तक गाड़ किना... Read more
दारमा घाटी के गो गाँव में खलनायक
आठ दिन हो गए बारिश को. बीच में आधे दिन के लिए रुकी थी पर तीन दिन से तो एक मिनट के लिए भी आसमान ने आराम नहीं किया. सुबह तिदांग से मारछा को निकल तो गए लेकिन लसर यांगती पर बने पुल को देखकर हवा... Read more
समधी के ओड्यार में तीन रातें
हमें घर से निकले पांच-छह दिन तो हो ही गए होंगे और पिछले चार दिन से बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. जिस दिन से हम कनार से ऊपर चले तब से मानो असमान हमसे नाराज हो गया. पहले दिन हमने कनार से... Read more
पहली मिलम यात्रा के शुरूआती दो दिनों में मुझे और कमल दा को एक चीज का पक्का पता चल गया था कि हमारे साथी फ़कीर दा हमको बच्चा समझ कर हमारा भौत चूरन काट रहे थे. चूँकि हम सकल सूरत और जेब से कत्तई... Read more
जिन्होंने अपनी रांच पर पहाड़ को बुना…
जब बर्फ पिघल कर नदियों को जवान कर रही थी और बुरांश पहाड़ को रक्तिम, तब रेशम की लकीरों पर अपनी भेड़ों को हांकते रं और शौका व्यापारी माल भाभर के खत्तों को छोड़ पहाड़ की और लौट रहे थे. इनकी भेड... Read more
वह जो पहाड़ पर नमक लाते रहे
मैंने अपने पुरखों के जितने भी किस्से सुने उनमें टनकपुर से पैदल नमक लाने के किस्से सबसे रोमांचक किस्सों में से थे. पहाड़ के भट, मडुवे, मक्के फांफर को स्वाद देने के लिए नमक चाहिए था. उस समय सड... Read more
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