जॉनी राजकुमार का भी एक ज़माना था. फुटबाल के साइज़ जितना उनका ईगो था. वो सर्व सुलभ कलाकार नहीं थे. उनको वही साइन करने की हिम्मत करता था, जिसमें बड़े-बड़ों के नखरे सहने का माद्दा हो. और दिल-गुर्दा मजबूत हो.
बीआर चोपड़ा की बड़ी हिट ‘हमराज़’ (1967) में राजकुमार ने सफ़ेद जूते पहने थे. सच तो ये था कि फ़िल्म में जब उनकी एंट्री होती है तो कैमरा उनके चेहरे को फोकस करने की बजाय सफ़ेद जूतों को देख रहा था.
कैमरामैन और डायरेक्टर दर्शकों पर इसके इफ़ेक्ट की कल्पना कर रहे थे. क्या सस्पेंस होगा? जूता तो पहले दिखा. मगर इसे पहनने वाला कौन है? सुपर हिट ये आईडिया, और हुआ भी.
तबसे तकरीबन हर फिल्म में राजकुमार को सफ़ेद जूते ही पहने देखा गया. आम चलन में भी ये आ गया. सफ़ेद जूता फ़िल्म के हिट होने की निशानी बन गया. फ़िल्मकार किसी न किसी बहाने उन्हें सफ़ेद जूते पहनाते रहे.
प्राणलाल मेहता बड़े निर्माता थे. उन्होंने अपनी प्रतिष्ठित फिल्म ‘मरते दम तक’ में राजकुमार को साइन करने की हिम्मत की. निर्देंशन के लिए गुणी मेहुल कुमार को चुना. राजकुमार को साधना एक चुनौती थी. मेहुल ने उसे स्वीकार किया.
बड़े अच्छे माहौल में निर्बाध शूटिंग चल रही थी. अचानक एक दिन हंगामा हो गया. इस दिन का कई गॉसिप कॉलम लिखने वाले पत्रकारों को इंतज़ार भी था. यों भी ये हो नहीं सकता था कि राजकुमार हो और सब कुछ शांति से गुज़र जाए.
हुआ ये कि एक सीन में राजकुमार टेबुल पर पैर रख कर बैठे हैं. फाईनल शॉट के ठीक पहले कैमरे में डायरेक्टर मेहुल कुमार ने झांका. उनके माथे और चेहरे पर परेशानी की गहरी लकीरें उभर आयीं. कैमरे में राजकुमार का चेहरा नज़र आने की बजाय उनके सफ़ेद जूते दिख रहे हैं. मेहुल ने तो उन्हें इस तरह बैठने को कहा नहीं था.
वो समझ गए कि राजकुमार जान-बूझ इस अंदाज़ में बैठे हैं ताकि कैमरे में सिर्फ़ उनका जूता ही दिखे. ये मेहुल के इम्तिहान का वक़्त भी था कि राजकुमार को अब तक उन्होंने कितना समझा और जाना है. मेहुल ने कैमरे का एंगिल बदला ताकि राजकुमार का चेहरा दिख सके. लेकिन तू डाल डाल, मैं पात पात.
राजकुमार ने भी एंगिल बदल लिया. कैमरे में फिर राजकुमार नहीं उनके जूते दिखे.ऐसा तीन बार हुआ. चौथी बार मेहुल ने बाअदब राजकुमार साहब से गुज़ारिश की – हुज़ूर, अगर आप मेज़ पर पैर न रखें तो अच्छा हो. क्योंकि आपके चेहरे की जगह जूते दिख रहे हैं. या फिर पैर फैला दीजिये, ताकि आपका चेहरा दिख सके.
राजकुमार अपने चिर-परिचित अंदाज़ में बोले – हम राजकुमार हैं. तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि हमें लोग हमारे जूतों से पहचानते हैं. लगता है नए हो. हमारी फ़िल्में नहीं देखीं क्या?
मेहुल बोले – सर, हमने सब फ़िल्में देखी हैं आपकी.
राजकुमार बोले – तो ठीक है, जैसा हम चाहते हैं, वैसा ही करो. देखना फिल्म सुपर हिट होगी, समझे, जानी!
मेहुल पंगा लेने की स्थिति में नहीं थे. जैसा राजकुमार चाहते थे शॉट ओके हो गया.
संयोग से 1987 में रिलीज़ ‘मरते दम तक’ उस साल की हिट फिल्मों में एक रही.
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