क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि अगर आप सफल नहीं हो, तो क्यों नहीं हो. सफलता का अर्थ सिर्फ पैसा कमाना भर नहीं, बल्कि वह सब पाना है, जिसकी आप इच्छा करते हो. पैसा तो हमेशा आपके जुनून का प्रतिफल होता है. सिर्फ पैसा कमाने को भी कोई अपना लक्ष्य बना सकता है, पर उसके लिए भी उसे कोई काम करना होगा. उस काम में सर्वश्रेष्ठ होना होगा. हर आदमी पैसा कमाना चाहता है. नाम कमाना चाहता है. सर्वश्रेष्ठ होना चाहता है. पर गिनती भर लोग ही सही मायनों में सफल हो पाते हैं. ऐसा क्यों? चलिए, इसे एक कहानी के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.
(Super Motivating Story)
एक गांव में एक तपस्वी साधु रहता था. गांव वाले उसे बहुत मानते थे, क्योंकि जब कभी उन्हें बारिश की जरूरत होती, वे साधु के पास चले जाते. साधु नाचना शुरू करता और थोड़ी देर में ही वर्षा हो जाती. एक बार उसी गांव से वर्षों पहले शहर गए तीन लड़के कॉलेज की अपनी पढ़ाई पूरी कर गांव लौट कर आए. उन्हें जब उस साधु के बारे में मालूम पड़ा, तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. उन्होंने गांव वालों की बात का मजाक बनाते हुए तुरंत उसे ढोंगी बाबा करार दे दिया.
गांव वाले अगले दिन सुबह-सुबह ही उन लड़कों को लेकर जंगल में साधु की कुटिया पर पहुंचे. लड़कों ने साधु से जब उनके नाच कर बारिश करवा देने के बारे में पूछा, तो साधु ने बहुत भरोसे से उन्हें जवाब दिया -हां, मैं नाचता हूं, तो बारिश हो जाती है.
लड़कों को लगा कि जरूर उस कुटिया के आसपास कोई रहस्य छिपा होगा. उनमें से एक ने तुरंत साधु को चुनौती दी – इसमें कौन-सी बड़ी बात है. यह काम तो हम भी कर सकते हैं. ऐसा कह पहले लड़के ने कुटिया के पास उसी जगह नाचना शुरू कर दिया, जहां साधु नाचा करता था. घंटा बीत गया, पर आसमान में बादलों का नामो-निशां न दिखा. वह थककर निढाल हो गया. तब दूसरे लड़के ने नाचना शुरू किया. पर आसमान अब भी नीला ही था. वह थक कर नीचे गिरा, तो तीसरे ने पूरा दम लगाकर गोल-गोल घूमना शुरू किया. कुछ देर में ही वह भी चक्कर खाकर गिर पड़ा.
लड़कों ने अब साधु की ओर देखा. अब साधु ने नाचना शुरू किया. घंटा बीता, पर आसमान में बादल अब भी न दिखाई दिए. साधु नाचता रहा. दो घंटे. तीन घंटे. चार घंटे. बारिश नहीं हुई. साधु नाचता रहा. शाम हो आई. सूरज ढलने लगा. और तभी अचानक आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ी. कुछ ही देर में जोरों की बारिश शुरू हो गई. लड़के बहुत हैरान थे. वे साधु के सामने नतमस्तक हो गए. तब उन्होंने साधु से सवाल किया – बाबा जब हम नाचे, तब तो बारिश नहीं हुई. आपके नाचने पर कैसे हो गई?
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साधु ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- तुम्हारे और मेरे नाचने में बहुत फर्क है. मैं जब नाचता हूं, तो दो बातों का खयाल रखता हूं. पहली बात यह कि मैं सोचता हूं कि अगर मैं नाचा, तो बारिश को होना ही होगा और दूसरी बात यह कि मैं तब तक नाचूंगा, जब तक कि बारिश हो नहीं जाती. साधु की यह कहानी सफलता पाने वालों की कहानी भी है. सफलता पाने वालों में भी यही गुण देखने को मिलता है. वे जिस काम को भी करते हैं, उन्हें पूरा यकीन होता है कि उसमें वे अवश्य ही सफल होंगे. वे तब तक उस काम को नहीं छोड़ते, जब तक कि उसमें सफल नहीं हो जाते. वास्तव में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई काम कितना मुश्किल है.
सारा फर्क इससे पड़ता है कि उस काम को कर पाने के लिए आपका खुद पर कितना भरोसा है. दुनिया में असंभव कामों की कमी नहीं. पर लोगों ने यहां असंभव को भी संभव कर दिखाया है, क्योंकि दुनिया में खुद पर भरोसे से बड़ी कोई ताकत नहीं. भरोसा हो, तो एक रुपये से बिजनेस शुरू करने वाला 100 खरब का मालिक बन जाता है. दलित परिवार में जन्म लेने वाला राष्ट्र का संविधान बना जाता है.
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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