नेपाल में लगभग एक महीने से भारत के विरोध में प्रदर्शनों का दौर जारी है. ये प्रदर्शन भारत द्वारा पिथौरागढ़ जिले के कालापानी क्षेत्र में कथित अतिक्रमण के आरोपों के बीच हो रहे हैं, जिसे नेपाल अपना बताता रहता है. भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार भले ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने का ढिंढोरा पिटती रहती हो, लेकिन भारत के पड़ोसियों के साथ निरन्तर बिगड़ते राजनैतिक सम्बन्ध उसकी विदेश नीति पर गम्भीर सवाल खड़े करती रही है. जिसकी वजह से दक्षिण एशिया के सभी पड़ोसी देशों के साथ भारत के राजनैतिक सम्बन्ध बेवजह लगातार खराब हो रहे हैं. कभी भारत के मित्र राष्ट्रों में गिने जाने वाले पड़ोसी नेपाल के साथ भी भारत के राजनैतिक सम्बन्ध अब वैसे नहीं हैं, जैसे पहले होते थे. जम्मू और कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद – 370 को हटाने और उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में विभाजित करने के निर्णय के बाद ये दोनों केन्द्र शासित प्रदेश 31 अक्टूबर 2019 से संवैधानिक तौर पर अस्तित्व में आए. जिसके बाद केन्द्र सरकार ने 2 नवम्बर 2019 को भारतीय गणराज्य का नया अधिकारिक नक्शा जारी किया. जिसमें जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को अलग-अलग राज्यों के तौर पर दर्शाया गया था. Sugauli ki Sandhi Controversy
भारतीय गणराज्य के इस नए अधिकारिक नक्शे में कुछ भी गलत नहीं था. पर इस नक्शे को जारी किए जाने के बाद 7 नवम्बर 2019 को नेपाल ने उत्तराखण्ड के कालापानी और लिपुलेख को भारतीय क्षेत्र में दिखाए जाने पर सख्त आपत्ति जताई. नेपाल का कहना है कि ये दोनों स्थान उसके दार्चुला जिले के हिस्से हैं. सम्बंधित क्षेत्रों को लेकर भारत के साथ उसकी बातचीत लम्बे समय से जारी है और ये मुद्दा अभी ‘अनसुलझा’ है. नेपाल के विदेश मन्त्रालय ने नए नक्शे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि दोनों देशों के सीमा सम्बंधी मुद्दों को सम्बंधित विशेषज्ञों की मदद से सुलझाने की जिम्मेदारी दोनों देशों के विदेश सचिवों को दी गई है. ऐसे में सीमा से सम्बंधित सभी लम्बित मुद्दों को आपसी समझ से सुलझाने की आवश्यकता है. कोई भी एकतरफा कार्यवाही नेपाल सरकार को अस्वीकार्य है. नेपाल सरकार अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
नेपाल की इस आपत्ति पर भारत के विदेश मन्त्रालय ने 7 नवम्बर को ही दो टूक जवाब दिया. विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि भारत का नक्शा देश के सम्प्रभु क्षेत्र का सटीक चित्रण करता है. नए नक्शे में नेपाल के साथ ही हमारी सीमा में किसी तरह का संशोधन नहीं किया गया है. भारत ने किसी नए भू-भाग को अपने मानचित्र में शामिल नहीं किया है. दोनों देश सीमा विवाद को सचिव स्तर की बातचीत के माध्यम से सुलझाने पर सहमत हैं. ऐसे में नेपाल की आपत्तियों को इसी के जरिए सुलझाया जाएगा. दोनों देशों के बीच इस तरह की आपत्ति और उसके जवाब के बीच 7 नवम्बर को ही नेपाल की राजधानी काठमांडू में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विद्यार्थी संगठन अखिल नेपाल राष्ट्रीय स्वतंत्र विद्यार्थी यूनियन ने ‘इंडिया गो बैक’ के नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया. नेपाल के प्रमुख विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के छात्र संगठन ‘नेपाल विद्यार्थी संघ’ ने भी प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया.
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विद्यार्थी संगठन ने लगातार दूसरे दिन 8 नवम्बर को भी काठमांडू में लैनचौर स्थित भारतीय दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन किया. विद्यार्थी संगठन ने अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत का नक्शा भी जलाया और ‘लिपुलेख व कालापानी हमारा है’ के नारे भी लगाए. नेपाली कांग्रेस के छात्र संगठन ने भी दूसरे दिन भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और पशुपति विश्वविद्यालय के परिसर से चावहिल तक विरोध मार्च किया. दूसरी ओर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित नेपाल के रूपनदेही जिले की बेलहिया सीमा पर भैरहवा के नेपाली छात्रों ने भी ‘भारत वापस जाओ, विस्तारवाद मुर्दाबाद’ के नारे लगाए. सैकड़ों की संख्या में नेपाली छात्रों ने भैरहवा नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन के नेता लक्ष्मी केसी के नेतृत्व में भारत-नेपाल सीमा पर सोनौली से सटे बेलहिया शान्ति द्वार पर भारत विरोधी प्रदर्शन किया. प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने कहा कि भारत सरकार ने हाल ही में जो नक्शा प्रकाशित किया है, उसमें नेपाल के कुछ हिस्सों को भी भारत में दर्शाया गया है. उसे हटाया जाना चाहिए. नेपाली पुलिस ने छात्रों को ‘नो मेंस लैंड’ से पहले ही रोक दिया. भारत पर विस्तारवादी होने का आरोप लगाते हुए 8 नवम्बर को नेपाल के बेतड़ी जिले में भी युवाओं ने भारत विरोधी प्रदर्शन किया और भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का पुतला दहन किया. बेतड़ी जिले के पुरचूड़ी नगरपालिका रातशिला मसानघाट के पास भानुभक्त जोशी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया.
भारत के नए नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को दर्शाने के खिलाफ नेपाल में सत्ता व विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों के बीच 9 नवम्बर को प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली ने भारत द्वारा किए गए कथित अतिक्रमण के बारे में विचार-विमर्श के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई. जिसमें सभी दलों के नेताओं ने एक सुर में कहा कि कालापानी हमारा है. साथ ही सभी दलों ने नेपाल सरकार से कहा कि वह भारत के साथ सीमा विवाद को कूटनीतिक रूप से वार्ता के माध्यम से हल करे. नेपाल के पूर्व प्रधानमन्त्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बाबूराम भट्टराई ने कहा कि प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली को भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से सम्पर्क कर राजनयिक स्तर का आयोग बना कर सीमा विवाद का हल निकालना चाहिए. इस दौरान मन्त्रिपरिषद के पूर्व अध्यक्ष खिल राज रेगमी ने भी उच्च स्तरीय राजनीतिक व प्राविधिक समिति बना कर प्रधानमन्त्री ओली द्वारा अपने भारतीय समकक्षी के साथ संवाद करने पर जोर दिया. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष कमल थापा ने कहा कि सीमा विवाद पर विरोध के तौर पर प्रेस विज्ञप्ति जारी करने से समस्या का समाधान नहीं होगा. इसके लिए भारत सरकार से यथाशीघ्र बातचीत की जानी चाहिए.
कुछ दिन की चुप्पी के बाद 17 नवम्बर को नेपाल के प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली ने काठमांडू में भारत से कालापानी क्षेत्र से अपने सैनिकों को वापस बुलाने को कहा. उन्होंने कहा कि नक्शा तो कोई भी छाप लेता है. बात नक्शे में सुधार की नहीं, हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण की है. नेपाल न तो किसी की जमीन पर अतिक्रमण करेगा और न ही अपनी एक इंच जमीन पर किसी को अतिक्रमण करने देगा. हम भारतीय सुरक्षा बलों को कालापानी क्षेत्र से हटाएँगे. नेपाल की जमीन पर नेपाली सेना रहेगी. ओली सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) की नेशनल यूथ ऐसोसिएशन की पहली बैठक को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि नेपाल अपनी एक-एक इंच भूमि की रक्षा के लिए कटिबद्ध है. हमारी सरकार जल्द ही अपनी जमीन वापस लेने का प्रयास करेगी. दूसरी ओर नेपाली कांग्रेस के छात्र संगठन नेपाल विद्यार्थी संघ ने एक बार फिर से 17 नवम्बर को लैनचौर स्थित भारतीय दूतावास पर विरोध प्रदर्शन किया. Sugauli ki Sandhi Controversy
नेपाल द्वारा कालापानी के मसले पर अचानक से अपनाए गए आक्रामक रूख पर भारत-नेपाल के राजनैतिक सम्बंधों पर गहरी नजर रखने वाले विश्लेषकों को बहुत आश्चर्य हो रहा है. भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक का मानना है कि नेपाल के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन के सैनिकों की भी मौजूदगी है. जिसका नेपाल में काफी विरोध हो रहा है. जिसकी वजह से संतुलन साधने की दृष्टि से नेपाल सरकार कालापानी विवाद को हवा दे रही है. उन्होंने इस बात की आशंका व्यक्त की कि इस विवाद को हवा देने के पीछे चीन का भी हाथ हो सकता है, क्योंकि वहां की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का चीन के प्रति नरम रूख जगजाहिर है. शशांक ने कालापानी के पीछे नेपाल के अचानक आक्रामक होने को चिंताजनक बताया. उन्होंने कहा कि सन् 2,000 में भी यह मामला उठा था. तब प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नेपाल सरकार को आश्वासन दिया था कि भारत अपने किसी भी पड़ोसी की एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं करेगा. नेपाल तो उनका सदियों पुराना सबसे घनिष्ठ पड़ोसी है. प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी 2014 में अपनी पहली नेपाल यात्रा के दौरान कहा था कि कालापानी विवाद को बातचीत के जरिए सुलझा लिया जाएगा. उन्होंने भी तब नेपाल सरकार को आश्वस्त किया था कि उसे इस बारे में चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है.
इधर, उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी 18 नवम्बर को कालापानी व लिपुलेख पर नेपाल के आक्रामक तेवर को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि यह बयान नेपाल की संस्कृति और उसके स्वभाव के विपरीत है. नेपाल के प्रधानमन्त्री ने किन परिस्थितियों में ऐसा बयान दिया? यह तो नहीं पता, लेकिन भारत ने नेपाल की भूमि पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं किया है. कालापानी व लिपुलेख क्षेत्र हमेशा से भारत का रहा है और रहेगा. भारत व नेपाल के बीच सदियों से सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं और आज भी हैं. दोनों देश आपसी बातचीत से इस समस्या का हल निकाल लेंगे. कालापानी क्षेत्र नेपाल की सीमा से लगे होने के साथ ही चीन सीमा के भी बहुत नजदीक है. चीन के काफी नजदीक होने से उत्तराखण्ड का यह सीमान्त क्षेत्र काफी संवेदनशील है. इसी कारण भारतीय सुरक्षा बल यहां हमेशा बहुत सतर्कता से काम लेते हैं और हमेशा चौकन्ने रहते हैं. पिछले कुछ समय से नेपाल व चीन के बीच बढ़ रही दोस्ती ने इस सीमान्त क्षेत्र की संवेदनशीलता को और भी बढ़ा दिया है.
कालापानी पर आक्रामक रुख के बाद 22 नवम्बर को नेपाल के उपप्रधानमन्त्री उपेन्द्र यादव पतंजलि योगपीठ के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हरिद्वार पहुँचे. तब उन्होंने नेपाल के प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली के रुख के विपरीत कहा कि अगर दोनों देश मिल-बैठकर बातचीत करेंगे तो समस्या का हल निकल जाएगा. दोनों देशों के बीच आपसी समझ-बूझ बहुत अच्छी है. भारत और नेपाल अच्छे पड़ोसी हैं. कभी-कभार कुछ बातों को लेकर विवाद हो जाता है. पर उम्मीद है कि ताजा विवाद का सम्मानजनक हल दोनों देशों का राजनैतिक नेतृत्व निकाल लेगा. उन्होंने कहा कि दोनों देशों की संस्कृति, सभ्यता और धर्म में एक तरह की समानता है. दोनों देश भले ही भौगोलिक व राजनैतिक तौर पर अलग-अलग हों, लेकिन बाकी चीजों में समानता ही है. उपेन्द्र यादव ने कहा कि वे चाहते हैं कि दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी आपस में बैठें. जो भी समस्याएँ हैं, उनका समाधान करें. दूसरी ओर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दहल प्रचंड ने पश्चिमी नेपाल के अपने दौरे में कहा कि कालापानी पर वर्षों पहले एककरफा निर्णय लिया गया था. ओली सरकार और नेपाल के राजनैतिक दलों को इसे गम्भीरता से लेना चाहिए. प्रचंड के इस तरह के बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. इस बयान से इतना तो तय है कि कालापानी को लेकर नेपाल के सत्ता के गलियारों में बहुत कुछ पक रहा है.
उल्लेखनीय है कि भारत-नेपाल के बीच सीमा का निर्धारण करने वाले काली नदी का उद्गम स्थल पिथौरागढ़ जिले में कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर है. यह क्षेत्र समुद्रतल से लगभग 3,600 मीटर की ऊँचाई पर है. भारत के लिए सामरिक तौर पर यह क्षेत्र भूटान की सीमा से लगे डोकलाम की तरह ही है. चीन पर नजर रखने के लिए यहां 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की स्थाई निगरानी चौकी है. नेपाल कहता है कि भारत ने यहां पर काली नदी का नकली उद्गम स्थल बना कर नेपाल की भूमि पर कब्जा किया हुआ है. नेपाल काली नदी की सहायक नदी कुटी यांगती को काली नदी बताता रहा है. इसी आधार पर वह कालापानी क्षेत्र (जिसमें भारत का कुटी, गुंजी और नाभीढांग भी शामिल हैं) के लगभग 372 वर्ग किलोमीटर को नेपाल का हिस्सा बताता है. नेपाल के कुछ वामपंथी संगठन भी काफी पहले से कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताते रहे हैं. कालापानी के जिस क्षेत्र को नेपाल अपना बताता रहता है उसका नेपाल से कुछ भी लेना-देना नहीं है. इसमें कालापानी का क्षेत्र लगभग 35 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.
नेपाल का अंतिम गांव छांगरू भी कालापानी से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है. छांगरू के साथ ही चीन सीमा की ओर स्थित तिंकर गांव में भी ‘रं’ समुदाय के ही लोग रहते हैं. कहा जाता है कि भारतीय ‘रं’ समुदाय के गर्ब्याल और गुंज्याल परिवारों को यह पूरा क्षेत्र नेपाल के राजा महेन्द्र ने उपहार में भेंट किया था. आज भी गुंजी गांव वालों के पास नेपाल के राजा की मुहर वाले दस्तावेज मौजूद हैं. धारचूला (पिथौरागढ़) के एसडीएम अनिल कुमार शुक्ला भी कहते हैं कि कालापानी और नाभीढांग क्षेत्र गर्ब्याल गांव के तोक हैं. यह भूमि गर्ब्याल गांव के लोगों की है. साथ ही यह भूमि भारतीय बंदोबस्त के खतौनी और नक्शे दोनों में ही दर्ज है. गुंजी के पास स्थित लिपुलेख दर्रा भी भारत का हिस्सा है और यह क्षेत्र भी भूमि बंदोबस्त के खतौनी और नक्शे दोनों ही तरह के अभिलेखों में दर्ज है। काली नदी का उद्गम क्षेत्र कालापानी भारतीय ‘रं’ समुदाय का तीर्थ स्थल है. यहां पर काली माता का मन्दिर भी है. ये लोग वहां अस्थि विसर्जन के लिए जाते हैं. मानसरोवर यात्रा मार्ग पर स्थित गुंजी गांव से कालापानी की दूरी 9 किलोमीटर है. गुंजी और कालापानी के बीच का क्षेत्र पूरी तरह से मानव आबादी रहित है. कालापानी से अंतिम भारतीय पड़ाव नाभीढांग की दूरी भी 9 किलोमीटर है. Sugauli ki Sandhi Controversy
यहां से लिपुलेख की दूरी भी लगभग 9 किलोमीटर है. जो चीन सीमा से लगा हुआ है. भारत के लिए चीन सीमा तक पहुँचने के लिए कालापानी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. जो सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र है. भारत की उत्तराखण्ड क्षेत्र में लगभग 80 किलोमीटर सीमा नेपाल से और लगभग 344 किलोमीटर सीमा चीन से मिली हुई है. चीन के साथ अपने अति संवेदनशील रिश्तों को देखते हुए ही भारत ने चीन सीमा तक सड़क पहुँचाने के महत्वपूर्ण मुद्दे पर काम करना शुरु किया है. जिसके तहत भारत कालापानी तक सड़क निर्माण कर चुका है. केवल मालपा से बूँदी तक के ढाई किलोमीटर का हिस्सा ही कच्चा है, जिस पर तेजी के साथ कार्य हो रहा है. जिसके पूरा हो जाने पर पिथौरागढ़ से कालापानी तक वाहन आ-जा सकेंगे. जो देश की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य होगा.
कालापानी को लेकर नेपाल के साथ सीमा विवाद लगभग 60 साल पुराना है. भारत-नेपाल के रिश्तों पर गहरी नजर रखने वाले एशिया न्यूज के सम्पादक पुष्परंजन के अनुसार, कालापानी विवाद की दृष्टि से 1961, 1997 व 1998 महत्वपूर्ण कालखण्ड हैं. पहली बार सितम्बर 1961 में जब दोनों देशों के बीच कालापानी पर विवाद हुआ था तो उस समय भारत-नेपाल की सरकारों ने तय किया था कि द्विपक्षीय आधार पर इसे सुलझाया जाएगा. भारत व नेपाल के बीच सीमा का यह निर्धारण ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने सन् 1816 में सुगौली की संधि के तहत किया था. उस संधि के अनुसार, दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण काली नदी से होगा. नदी के पूर्व में नेपाल तथा पश्चिम में भारत की सीमा होगी. यह नदी लिम्पियाधुरा से निकलती है.
सुगौली संधि पर 1815 में हस्ताक्षर किये गये और 1816 में इसका अनुमोदन किया गया है. इस दौरान इससे सम्बन्ध में दस्तावेज एक-दूसरे को सौंपे थे. ये दस्तावेज भी 1961 के बाद सीमा विवाद को लेकर होने वाली बैठकों में दोनों पक्षों की ओर से रखे जाते रहे हैं. पिछले लगभग 200 साल से दोनों ही देश उस संधि के तहत अपनी देश की सीमाओं को मानते रहे हैं. बीते कई वर्षों से नेपाल के कई अतिवादी संगठन व नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कई तरह के किन्तु, परन्तु लगाते हुए सिंगोली संधि को न मानने की घोषणा करते हुये कालापानी पर नेपाल का दावा जताते रहे हैं. शायद यही कारण है कि त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रो. ज्ञानेन्द्र पौडेल ने 2013 में अपने एक शोध पत्र में लिखा कि नेपाल व भारत के बीच सीमा को लेकर 54 स्थानों पर जो विवाद की स्थिति है, उसके मूल में सुगौली की संधि ही है.
प्रो. पौडेल ने अपने शोध पत्र में यह तक लिखा था कि क्यों न नेपाल को भारत से अपने सीमा विवादों को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद लेनी चाहिए? इससे भी पता चलता है कि नेपाल भारत के साथ अपने सीमा विवाद के बारे में किस तरह की रणनीति बना रहा है? या वह भविष्य में इसको लेकर किस स्तर तक जाने की सोच सकता है. अमेरिका के प्रसिद्ध स्कॉलर और ‘नेपाल : स्ट्रैटजी फॉर सर्वाइवल’ पुस्तक के लेखक लियो इ रोज ने भी अपनी पुस्तक में माना था कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का यह पुराना एजेंडा रहा है.
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यह अलग बात है कि नेपाल की सत्ता पर चाहे राजशाही रही हो या फिर राजनैतिक दल उन्होंने कभी भी अधिकारिक तौर पर इस तरह का कोई दावा नहीं किया. भारत के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एमसी भंडारी कहते हैं, ‘लिपूलेख दर्रे से निकलने वाली लिपूगाड़ काली नदी का उद्गम स्थल है. इस पर अधिकारिक तौर पर दोनों ही देशों के बीच कभी कोई विवाद नहीं रहा है. नेपाल के कुछ अतिवादी संगठन चीन की शह पर समय-समय पर ऐसी मांग करते रहते हैं.’ पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी डॉ. विजय कुमार जोगदड़े नेपाल द्वारा कालापानी को लेकर की जा रही बयानबाजी को लेकर कहते हैं कि कालापानी क्षेत्र में सब सामान्य है. दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर किसी तरह का कोई तनाव नहीं है.
इस बीच केन्द्रीय गृह मन्त्रालय की ओर से उत्तराखण्ड सरकार को विशेष सतर्कता संदेश भेजकर नेपाल की सीमा से लगे कालापानी क्षेत्र पर ध्यान रखने को कहा गया है. जिसके बाद प्रदेश सरकार की ओर से पिथौरागढ़ व चम्पावत जिलों के प्रशासन व पुलिस को सतर्क रहने को कहा गया है, ताकि नेपाल की ओर सीमावर्ती क्षेत्र में किसी भी तरह की अनुचित गतिविधि न हो. किसी भी तरह की गतिविधि दिखाई देने पर इसकी सूचना उचित माध्यम से तत्काल केन्द्रीय गृह मन्त्रालय को देने को कहा गया है. Sugauli ki Sandhi Controversy
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काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.
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