एक हिंदी फिल्म का गाना है – खुद के लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल जमाने के लिए…. जमाने के लिए न सही पर अपने करीबी मित्रों और परिवारजनों के लिए तो जीना बनता ही है. इस बात को हम एक कहानी के जरिए बेहतर समझ पाएंगे. तो पहले यह कहानी पढ़ें –
(Story Value of Friendship)
एक बार की बात है कि एक जहाज समुद्री तूफान की चपेट में आकर तहस-नहस हो गया. जहाज में से सिर्फ दो ही युवक तैरकर किनारे पहुंच पाए, हालांकि यह भी एक बियाबान निर्जन टापू था. दोनों युवक जो कि बहुत अच्छे मित्र भी थे, कुछ समझ न पाए कि उस निर्जन टापू में वे क्या करेंगे. तब दोनों ने फैसला किया कि वे प्रार्थना करेंगे और परमात्मा पर अपनी-अपनी आस्था का इम्तिहान लेंगे.
दोनों ने टापू की जमीन के दो हिस्से कर लिए और सीमा बनाकर अपने अलग-अलग हिस्से में रहने लगे. उन्होंने सबसे पहले परमात्मा से भोजन के लिए प्रार्थना की. अगली सुबह पहले युवक की सीमा में एक पेड़ पर सुंदर फल पक गए. उस युवक ने फलों को खाकर अपनी भूख मिटाई. दूसरा युवक उसे दूर से ही देखता रहा. दूसरे युवक की सीमा में जमीन बंजर ही बनी रही. कुछ दिनों बाद पहले व्यक्ति को टापू में रहते हुए बहुत अकेलापन महसूस हुआ. उसने परमात्मा से प्रार्थना की कि उसे एक सुंदर पत्नी मिल जाए. अगले दिन एक और जहाज तूफान की चपेट में आ गया और जहाज से बचकर आई सुंदर स्त्री ने तैरकर टापू में पहले युवक के इलाके में जाकर शरण ली, क्योंकि दूसरी ओर उसे बंजर ही बंजर दिखा. स्त्री के आ जाने के बाद पहले युवक ने परमात्मा से घर, कपड़ों और भोजन के लिए प्रार्थना की. अगले दिन किसी चमत्कार की तरह वहां ये सब चीजें उपलब्ध हो गईं.
उधर, दूसरे युवक के पास अब भी कुछ न था. कुछ ही दिनों में पहले युवक ने परमात्मा से एक जहाज के लिए प्रार्थना की, ताकि वह अपनी पत्नी के साथ उस निर्जन टापू को छोड़कर अपने घर जा सके. अगले दिन सुबह-सुबह ही उसे टापू में अपने इलाके के भीतर ही समुद्र किनारे एक छोटा-सा जहाज खड़ा मिला. वह अपनी पत्नी को लेकर जहाज में जा बैठा. उसने दूसरे युवक को निर्जन टापू पर अकेले छोड़ देने का फैसला किया. उसे लगा कि दूसरा युवक परमात्मा का आशीर्वाद पाने लायक नहीं था, क्योंकि परमात्मा ने उसकी एक भी प्रार्थना नहीं सुनी थी.
(Story Value of Friendship)
जहाज टापू छोड़कर जाने ही वाला था कि अचानक आकाशवाणी हुई- तुम अपने साथी को इस निर्जन टापू में अकेला छोड़कर क्यों जा रहे हो?
युवक ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह जो मुझे परमात्मा का आशीर्वाद मिला है, इस पर सिर्फ मेरा ही हक है. मेरी प्रार्थना की वजह से ही परमात्मा ने मुझे यह प्रसाद दिया है. उसकी एक भी प्रार्थना को परमात्मा ने नहीं सुना इसलिए उसे कुछ नहीं मिलना चाहिए.’
तुम यह गलत सोच रहे हो, ‘आकाश से आती आवाज ने इस पहले युवक को डपटा. इस युवक की तो बस एक ही प्रार्थना थी, जिसे मैंने स्वीकार भी कर लिया था. अगर उसने वह प्रार्थना नहीं की होती, तो तुम्हें मेरे आशीर्वाद के रूप में मुझसे एक भी चीज नहीं मिलती.’
‘कृपया मुझे भी बताइए कि उसने ऐसी क्या प्रार्थना की, जो मुझे उसकी परवाह करनी चाहिए’, पहले युवक ने आकाश से आती आवाज से पूछा.
‘उसने प्रार्थना की थी कि तुम्हारी सारी प्रार्थनाओं को मैं स्वीकार कर लूं!’ यह कहानी यहां खत्म होती है, पर इस कहानी से मिलने वाला सबक यहां से शुरू होता है. स्वार्थ इंसान को अंधा बना देता है. इतना ज्यादा कि कई बार वह अपने फायदे के लिए अपने ही मित्रों को अनदेखा करने लगता है. इस बात को याद रखें कि सदा अपने ही बारे में सोचोगे, तो अवश्य ही दुखी रहोगे. यह कहानी हमें सिखाती है कि हम अपने परिवार और मित्रजनों के लिए भी प्रार्थना करें. अपने प्रिय जनों को पीछे छोड़कर न जाएं. उन्हें अपने साथ लेकर ही आगे बढ़ें. परिवारजन और मित्रजन हमारे सफर के साथी बनेंगे, तभी हम तरक्की का सच्चा आनंद ले पाएंगे.
(Story Value of Friendship)
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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