भादो के महीने की सप्तमी-अष्टमी तिथि को कुमाऊं के गांवों में सातों-आठों पर्व की धूम होती है, बच्चे नए कपड़े पहन मस्ती करते, गांव भर में यहां-वहां दौड़ते हैं, औरतें नई साड़ियां पहनती हैं, पिछौड़ा पहनती हैं. भादो महीने में ऋषि पंचमी/बिरूड़ पंचमी के दिन बिरुड़े भिगाए जाते हैं बिरुड़े सात अनाजों से बनाए जाते हैं. औरतें पूरा श्रृंगार करके पिछौड़ा पहनकर कलुं (छोटा मटर जैसा), गुरुंस, उड़द, गेहूं, मक्का, गहत, मटर सात अनाजों को धोकर बड़े-बड़े तांबे के तौले में भीगाती हैं. तौलौं में गाय का गोबर और दूब घास लगाकर पेड़ के नीचे रख देती हैं दूसरे दिन सुबह औरतें पूरा श्रृंगार के साथ धारे या नौले ले जाकर इन्हें धोकर पानी बदलती हैं. तीसरे दिन यानी सप्तमी(सातुं)को भी बिरुड़े धोये जाते हैं और धारे या नौले की गमरा बनाई जाती है. औरतें सुबह से ही निर्जला व्रत रखती हैं फिर शाम को खेतों में जाकर 5 तरह के फसलें जो खेतों में उग रही है जैसे धान, बल, सौं, मक्का, तिल के पौधों (जड़ सहित) से गमरा माता बनाकर तैयार करती हैं.
(Story Saton Aathon Uttarakhand)
गमरा को डाली में फल, फूलों, गहनों व कपड़े, पिछौड़ा से सजाया जाता है.(हालांकि इस महिने सभी फल कच्चे ही होते हैं जैसे माल्टा, चूख, दाड़िम, नारिंग आदि) फिर शाम को खेतों से गमरा को डाली में रखकर पूरे श्रृंगार सहित गाना गाते हुए घर लाया जाता है. गमरा दीदी की पूजा बिरुड़े से की जाती है.
खोल दे माता खोल भवानी धर्म केवाड़ा
आहा गोरी गंगा भागीरथी को के भलो रेवाड़ा…
फिर ब्राह्मण गमरा का अभिषेक करते हैं और औरतों के दूब धागों का भी. सप्तमी के दिन शाम को औरतें हाथ में पीला धागा बांधकर कर ही, निर्जला व्रत पूरा कर पानी पीती हैं.
दूसरे दिन अष्टमी अथवा अठवाली के दिन भी व्रत होता है, गमरा को बीच में रखकर अठवाली के गीत जैसे झोड़ा, चांचरी, मांगल गीत गाते हुए सातों-आठों का त्यौहार मनाते हैं और साथ में महेश्वर को भी घर ले आते हैं. खीर, माड़े, हलुआ व अन्य सभी पकवान बनाये जाते हैं. गमरा के बालक को सभी औरते खेल खिलाती हैं. हिल्लौरी बाला, हिल्लौरी…
अष्टमी के दिन गले में लाल दूब धागा बांधने के बाद पानी पीकर निर्जला व्रत पूरा किया जाता है. प्रसाद के रूप में डाली के फल और भिगोए हुए बिरुड़े सभी गांव वालों में बांटे जाते हैं. मैंने ईजा से पूछा- ईजा यह सातों-आठों क्यों मनाते हैं? गमरा दीदी को हर साल इतने प्यार से बनाया व सजाया जाता है तो फिर विदा क्यों कर देते हैं? ईजा मुझे बताते हुए बोली हर साल यह त्यौहार कुमाऊं के कई परगना और गांवों में मनाया जाता है. मैं बहुत छोटी थी तो वह मुझे यह कहानी सुनाने लगी.
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यह कुमाऊं का प्रमुख त्यौहार है यह तो कुमाऊं के हर घर गांव में मनाया जाता है और हो भी क्यों न, गमरा पहाड़ों के राजा पर्वतराज की बेटी है इसीलिए हम सब उन्हें गमरा दीदी भी कहते हैं. इस दिन भगवान महेश्वर और गमरा की पूजा की जाती है. महेश्वर ने जब धरती के उत्थान के लिए गंगा को सिर में धारण कर लिया और संध्या को भी हिमालय पर्वत में जगह दे दी तो पूरे संसार में महेश्वर के साथ बार-बार गंगा का नाम लिया जाने लगा यह सब देख कर गमरा दीदी को अच्छा नहीं लगा. संसार में महेश्वर-संध्या और महेश्वर-गंगा की बातें होने लगी, यह गमरा को अंदर ही अंदर दुख दे रही थी और गमरा मन ही मन उदास रहने लगी. फिर ऐसे ही एक दिन महेश्वर ने गमरा को चिढ़ाते हुए कहा तुम तो पहले से ही काली थी और आजकल तो और भी काली हो गई हो देखो वह गंगा और संध्या कितनी सुंदर है यह सुनकर गमरा और भी नाराज हो गई और सब छोड़-छाड़ कैलाश से धरती की ओर प्रस्थान कर लिया. गमरा की सास ने गमरा को बहुत समझाया, ऐसे नाराज होकर मत जा तेरे बच्चे हैं बालक गणपति और कन्या सरस्वती, अपने बच्चों के लिए तो यही रुक जा, महेश्वर ने भी रोकने की कोशिश की पर गमरा नहीं मानी, बालक गणपति को अपनी सास के पास छोड़ आई और सरस्वती कन्या को अपने साथ ले आई.
जैसे ही गमरा कैलाश से हिमालय मार्ग से होते हुए धरती पर पहुंचती है गमरा के तेज से धरती में रोशनी फैल जाती है फिर पहाड़ियों से गांव की ओर आती है तो खेत खलिहान में उजाला होने लगता है खेत से घर पहुंचने पर पूरे गांव मैं उजाला हो जाता है. गमरा के आने से जब पूरा गांव प्रकाशमय हो जाता है तो सभी गांव के लोग गमरा के मायके आने से खुश हो जाते हैं गांव की औरतें गाना गाने लगती हैं.
उपजी उपजी लौली गमारा रे,
डाणा भयो उजालो,
हिमाचल है उपजी गमारा,
गाढ़ा खेत भयो उजालो,
पंचाचुली हनसालेख जा तेरो निवास,
शिव ज्यू तेरा स्वामी छन, घर तेरो कैलाश…
गमरा के आने की खबर गमरा की मां मैना देवी तक भी पहुंच जाती है यह सब सुनते ही मैना देवी परेशान हो जाती है वह सोचती है कि गमरा इस भादो के महीने में मायके क्यों आई, ना तो अभी पुराना अनाज बचा है ना ही नई फसल उगी है मैं अपनी बेटी को क्या खिलाऊंगी. आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो उसे भादो में मायके आना पड़ा. चिंतित होकर वह गमरा से पूछती है-
ए भूखा भादो गौरा,क्या रे खानी ऐछे
क्या ले जानी एछै.
असौज में उनि गौरा धान सिरौल खानी
जेठ मास उनी गौरा ग्यूं उमा खानी…
असौज में आती तो धान की सिरौली खाती, जेठ में आती तो गेहूं के उमी खाती. न कोई फल है न कोई साग. मैना देवी को परेशान देख गांव की औरतें थोड़ा-थोड़ा बचा हुआ अनाज इकट्ठा कर लेते हैं और उससे भिगा देती हैं और इसी अनाज को गमरा को खिलाया जाता है. आज भी हम सातों-आठों पर्व में विभिन्न अनाज ऐसे ही भिगाते है. जिसे बिरूड़े कहा जाता है.
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गमरा कहती है, ईजा मुझे कुछ नहीं चाहिए, तू मुझे बस दशमी की रोटी खिला देना और बाज्यू तुम मुझे पहनने के लिए घाघरा दे देना और मेरे भाई तुम मुझे ओढ़ने के लिए दो हाथ पिछौड़ी दे देना.
इजू तू मैस दिए दशमी की रोटी,
बाबू तुम मैंस दीया नौ पाट घाघरी,
भाया तुम दिया मैंस द्वि हाथ पिछौड़ी…
कैलाश में महेश्वर परेशान हो जाते हैं क्यों उन्होंने गमरा को नीचा दिखाया और क्यों उसे नाराज किया. गमरा को वापस बुलाने के लिए महेश्वर ने गमरा के बालक गणपति को छुपा दिया और गमरा को संदेश भिजवा दिया की बालक गणपति नहीं मिल रहा जब यह खबर गमरा को पता चली तो गमरा को बड़ा दुख होता है कि उसकी अनुपस्थिति में उसके ससुराल वाले उसके बालक का ध्यान नहीं रख पाए और गणपति की चिंता में वह व्याकुल होती है अपनी व्याकुलता और रोष में आकर वह धरती को श्राप देने लगती है- मायड़ी पूत नै, गायड़ी दूध नै, हिमाल ह्यू नै, गंग ज्यू बलवा नै, समुद्र पानी नै…
यह सब सुनते ही धरती डामा-डोल होने लगी, कैलाश हिलने लगा, पहाड़ गिरने लगे, हवा रुक सी गई, नदियों नालों ने अपने रास्ते बदल दिए और धरती में हाहाकार मच गया. धरती में हाहाकार सुनकर महेश्वर समझ गए यह सब गमरा की वजह से हुआ है और भगवान महेश्वर गमरा को मनाने उसके मायके के लिए निकल गए.
महेश्वर, गणपति को लाकर गमरा की गोद में रख देते हैं. अपने बालक को सही सलामत देखकर गमरा दीदी थोड़ी शांत होती हैं और अपने वचनों को वापस लेती हैं जिससे की धरती अपने पुराने रूप में वापस आ जाती है. महेश्वर, गमरा से कहते हैं देखो गमरा, गंगा और संध्या को मैंने धरती में संतुलन बनाने के लिए धारण किया है, मेरी अर्धांगिनी हमेशा से तुम ही हो और तुम ही रहोगी तुम ही आदिशक्ति हो और तुम ही से यह धरती है अब मुझे माफ कर दो और घर वापस चलो. बहुत मनाने के बाद गमरा आखिरकार मान जाती है. महेश्वर, गमरा, गणपति और सरस्वती सहित कैलाश के लिए निकल पड़ते हैं.
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जाते-जाते गमरा को अपने मायके को भी बहुत याद करती है वह जाते जाते अपने परिवार व बंधुओ के लिए शुभ वचन कहती है-
इजा बाज्यू तुम बसी रया हम घर जानू
काका काकी तुम बसी रया हम घर जानू
दादा बौजी तुम बसी रया हम घर जानू
एक की एक्कीस ह्वैजो, सौ की हजारा
हजारै की लाख ह्वैजो
लाखै की दस लाख…
इसी तरह गौरा अपने मायके वालों को धन-धान्य, दूध-धिनाली और समृद्धि का आशीर्वाद देते हुए आगे की ओर बढ़ जाती है. कहते हैं- तब के बाद पहाड़ों में किसी भी चीज की कमी नहीं हुई.
जब रास्ते में गमरा और महेश्वर जा रहे होते हैं तो महेश्वर को फिर से मजाक सूझता है वह गमरा को चिढ़ाते हुए कहते हैं गमरा तुम इतने दिन अपने मायके में रही तो वहां तो तुम्हारी बहुत खातिरदारी हुई होगी, तुम्हारे लिए तरह तरह के पकवान बने होंगे, नये वस्त्र, आभूषण और भी बहुत कुछ.
और क्या- क्या दिया तुम्हारे परिवार वालों ने, बहुत कुछ दिया भी तो होगा तुम्हें? आखिरकार पुत्री हो तुम पर्वतराज की.
इतु तू मैत रेछै गौरा,
कि खानी खाछै, कि लेजानी लेछै…
गमरा यह सब सुनकर मायूस हो जाती है और उसे महेश्वर पर फिर से क्रोध आने लगता है. गमरा भादो के महीने में अपने मायके गई थी तब अनाज की बहुत कमी थी और पर्वतराज के देश में जड़ी बूटियों, अन्न के अलावा सोना चांदी नहीं हुआ करता था जो कि वह अपनी बेटी को दे सकें. गमरा को यह सब अपने मायके का अपमान प्रतीत होता है.
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महेश्वर कहते हैं तुमने क्या-क्या खाया , तुम्हारी नाभि से सब कुछ देखा जा सकता है. गमरा, महेश्वर के सामने अपने परिवार की इज्जत रखना चाहती है तो भगवान से प्रार्थना करती है- हे ईश्वर अगर मेरे मन में कोई छल कपट नहीं है और मेरे अंदर थोड़ी सी भी सच्चाई है तो मेरे पेट में जो कुछ भी है या जो कुछ भी मैंने खाया है था वह सब खीर और पकवान में बदल जाए और जो यह सामान जो घोड़ों के साथ मेरे मायके से ससुराल जा रहा है यह सब सोना चांदी और हीरे में बदल जाए-
घास पात खाछै गौरा, खीर खंडन ह्वेज
जड़ी-बूटी, घोड़ा-गाड़ी सुना रूप ह्वेज
महेश्वर जब गमरा की नाभि से उनके अंदर देखते हैं तो पता चलता है कि उन्होंने पिछले कुछ दिनों में केवल पकवान ही पकवान खाएं हैं और उनका सामान भी हीरे जवाहरातों में बदल जाता है. यह सब देख कर महेश्वर को अपनी गलती का एहसास होता है साथ ही गमरा ईश्वर से वरदान मांगती है कि आज के बाद से कोई भी किसी की नाभि से अंदर न देख पाए और किसी को भी अपने खान-पान के कारण लज्जित न होना पड़े. महेश्वर गमरा से फिर से माफी मांगते हैं और चारों कैलाश की तरफ निकल जाते हैं.
गमरा दीदी के मायके आने और उन्हें विदा करने यह प्रक्रिया को हम हर साल मनाते हैं. गमरा दीदी को हर साल इसीलिए विदा किया जाता है ताकि वह अपने मायके फिर से आ सकें और उन्हें खुशी-खुशी हम फिर से विदा कर सकें. गमरा की विदाई के साथ ही हर परिवार अपने परिवार के लिए गमरा दीदी से सुख-समृद्धि का आशीष लेता है.
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साथ ही बालक गणपति के मिलने की खुशी में गमरा दीदी बहुत प्रसन्न होती हैं जिस कारण यह सातों-आठों का व्रत हर मां अपने बच्चों के लिए रखती है और उनके नाम का पीला धागा हाथ में और लाल दूब धागा गले में बांधती है.
यह कहानी हर गांव व क्षेत्र में कुछ अलग तरीके से सुनाई जा सकती है यह मेरी ईजा के द्वारा मुझे बचपन में सुनाई गई. सातों-आठों के कुमाऊनी लोकपर्व की कथा है यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है इसमें गमरा दीदी के पैदा होने से लेकर बाद तक की सभी घटनाओं को पारम्परिक गीतों द्वारा सुनाया जाता है. केवल एक कहानी के जरिए पूरे लोकपर्व का वर्णन नहीं किया जा सकता फिर भी यह मेरी एक छोटी सी कोशिश है.
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–पार्वती भट्ट
मूलरूप से पिथौरागढ़ की रहने वाली पार्वती भट्ट का पहाड़ से गहरा लगाव है. पार्वती भट्ट की लिखी कहानियां उनके यूट्यूब चैनल पर भी सुनी जा सकती हैं.
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